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🌍 आज की प्रेरणा 🌍प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमणजी
प्रस्तुति - अमृतवाणी
संप्रसारण - संस्कार चैनल के माध्यम से --
आर्हत वाड्मय में कहा गया है - आदमी को चाहिए कि वह गुस्से को असफल बनाने का प्रयास करे | कुछ व्यक्तियों को गुस्सा बहुत कम आता है | केवल ज्ञानियों को तो गुस्सा आता ही नहीं | गुस्सा आये हम तो उसे असफल बनाने की चेष्टा करें और वाणी में प्रकट न होने दें | प्रकट न होने देने का मतलब है - उसके
फल नहीं लगे, वह निष्फल को गया | दूसरी बात है - हम सहन करना सीखें |कहा गया है -काच, कथीर, अधीर नर, कस्यां न उपजे प्रेम, कसणी तो धीरा सहे,का हीरा का हेम | प्रिय और अप्रिय दोनों को धारण करने का अभ्यास करना चाहिए | इससे सामूहिक जीवन सौहार्दमय बन जाता है | सहिष्णुता के अभाव में जीवन में असौहर्दमय बन जाता है | कभी छोटा बड़े को सहन कर ले और कभी बड़ा छोटे को सहन कर लें तो सब ठीक ठाक चलता रहता है तथा शांत सहवास के साथ कर्म बंधन से भी मुक्ति मिल जाती है | गालियों का जबाब मुस्कान से दिया जाय तो गालियाँ उसी प्रकार परास्त हो जाती है जैसे पानी में गिरने से अग्नि परास्त हो जाती है | हमारा गुस्सा शांत रहें व हम गुस्से की आग को उपशम के जल से शांत करते रहें |
दिनांक - १५ अप्रेल, २०१६, शुक्रवार
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🔯 गुरुवर के अमृत वचन 🔯
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