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❖ मांग... मुनि कुन्थुसागर [ आचार्य विद्यासागर जी की जीवन से जुडी घटनाएं व् कहानिया ] ❖ @ www.facebook.com/VidyasagarGmuniraaj
निष्काम भक्ति अपने आप में महत्वपूर्ण मानी जाती है. आज प्राय: देखा जाता है कि व्यक्ति कुछ न कुछ कामना, इच्छा रखकर भक्ति करता है. बहुत कम लोग हैं जो मात्र अपना कर्तव्य समाज कर प्रभु की भक्ति पूजन करते हैं. प्रभु से कुछ मांगना एक अविवेक ही है जैसे वृक्ष के सामने खड़े होकर छाया मांगना. प्रभु की भक्ति से सब कुछ प्राप्त हो जाता है. भगवान कुछ नहीं देते बल्कि, हमारी भक्ति के भावों के माध्यम से हमें प्राप्त हो जाता है.कहा भी है -
जो मन से पूजा करता है, पूजा उनको फल देती है
प्रभु पूजा भक्त पुजारी के सारे संकट हर लेती है
एक बार एक सज्जन ने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी से पूँछा - आचार्य गुरुदेव सभी लोग प्रभु के सामने कुछ ना कुछ याचना करते हैं आखिर यह सब करना चाहिए या नहीं. यदि प्रभु से कुछ मांगना है तो क्या मांगे? आचार्य गुरुदेव ने कहा - भगवान के सामने ऐसी मांग करें ताकि दुबारा मांगना न पड़े "वन्दे तदगुण लब्धये" हे प्रभु! आपको नमस्कार कर रहा हूँ मात्र आपके गुणों की प्राप्ति के लिये. प्रभु के पास रत्नत्रय रूप ऐसी निधियाँ है कि अनादी काल की निर्धनता समाप्त हो जाती है और आत्म वैभव उपलब्ध हो जाता है.
ठीक इसी प्रकार बंधुओं हमें भी वीतरागी प्रभु के चरणों में भिखारी नहीं भक्त बनाकर जाना चाहिए. क्योंकि, प्रभु की भक्ति से जब मोक्ष सुख मिल सकता है तो संसार का सुख क्यों न मिलेगा? उसकी कामना प्रभु के सामने नहीं करना चाहिए मात्र आस्था के साथ भक्ति करते जाना चाहिए. भगवान के भक्त के पास संसार की सारी संपत्तियाँ वैसे ही सिमट कर चली आती हैं जैसे बिना बुलाये सागर के पास नदी-नाले चले आते हैं.
note* अनुभूत रास्ता' यह किताब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के परम शिष्य मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी की रचना है, इसमें मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी ने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के अमूल्य विचार और शीक्षा को शब्दित किया है. इस ग्रुप में इसी किताब से रचनाए डालने का प्रयास है ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रावक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के विचारों और शीक्षा का आनंद व लाभ ले सके -Samprada Jain -Loads thanks to her for typing and sharing these precious teachings.
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✿ आचार्य आदिसागर जी परम्परा... लगभग 70 प्राचीन #rare #picture #Information
वर्तमान में विराजित 600 से अधिक दिगम्बर जैन सन्तों के परम्पराजनक गुरु आचार्य श्री आदिसागर जी अंकलीकर महाराज का जन्म सन् 1866 में कर्नाटक.के एक छोटे से गाँव अंकली में हुआ था ।कर्नाटक भारत के दक्षिण में है. दिगम्बर संतों की इन क्षेत्रों में एक समृद्ध परंपरा और जैनियों के लिए एक उल्लेखनीय इतिहास है । महाराज जी बचपन से ही बहुत धार्मिक प्रवृति वाले थे ।जब वे 15 वर्ष की आयु के थे,तब ही उनकी माता जी का स्वर्गवास हो गया और २७ साल की उम्र में उनके पिताजी का देहांत हो गया।और यही उनके वैराग्य का कारण बना और वे 6 प्रकार के आवश्यक का पालन करने लगे । 40 साल की उम्र में उन्होंने क्षुल्लक दीक्षा ले ली ।इसके बाद उन्होंने अपनी आध्यात्मिक प्रगति को आगे बढ़ाना चालू कर दिया
इन्होंने कुंथलगिरि में कुलभूषण और देशभूषण भगवन्त को साक्षी मानकर दीक्षा ग्रहण की
४७ साल की उम्र में उन्होंने मुनि दीक्षा ले ली और कपड़े सहित अपना सभी सामान त्याग कर निर्ग्रन्थ हो गए। वे बहुत बड़े तपस्वी थे । वे 7 दिन में 1 बार आहार करते थे और बाकी समय जंगल में तपस्या करते थे ।वह अपने आहार में केवल 1 ही चीज (अगर आम का रस लेते थे तो केवल आम का रस ही लिया करते थे और कुछ नहीं) लेते थे । वे गुफाओं में तपस्या करते थे । 1 बार तपस्या करते हुए उनके सामने 1 शेर आ गया था, कुछ समय बाद वो वापस चला गया और उन्हें बिलकुल भी परेशान नहीं किया ।
आचार्य श्री १०८ आदि सागर जी महाराज ने 32 मुनि दीक्षा और 40 आर्यिका दीक्षा देकर संघ का निर्माण किया।
आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी,मुनि श्री नेमी सागर जी और मुनि श्री मल्लिसागर जी इनके प्रमुख शिष्य हुए
उसके बाद के वर्षो में उन्हें मोतियाबिंद नामक रोग हो गया और उन्होंने सल्लेखना लेने का निर्णय किया और सन् 1944 सामाधि मरण किया ।
समाधि उदगांव, कुंजवन में हुई!
इनकी समाधी के समय की अन्तिम मयूर पिंछी श्री ब्रम्हनाथ पुरातन दिगम्बर जैन मंदिर, कोल्हापुर, महाराष्ट्र में सुरक्षित है!
और चरित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर महाराज जी जब अपनी गृहस्थ अवस्था में थे तो वे आचार्य श्री आदिसागर जी महाराज को अपने कंधे पर बिठा कर नदी पार करा देंते थे, और फिर वापस छोड़ कर भी आते थे, फिर महाराज से निवेदन करते थे की “मैं तो आपको नदी पार करा रहा हूँ, आप मुझे संसार सागर पार करा देना”!
हमारे लिए सारी दिगंबर परंपरा महान पूजनीय है...
आचार्य आदिसागर जी की परम्परा के पट्टाचार्य - आचार्य महावीर कीर्ति जी - वात्सल्य रत्नाकर आचार्य विमलसागर जी - तपस्वी सम्राट आचार्य सन्मति सागर जी - आचार्य सुनील सागर जी [वर्तमान पट्टाचार्य]! दिगंबर परंपरा की जय..हो...ऐसे साधू सदा जयवंत रहे...
Article written from PARAS CHANNEL documentary so if differences exist, please consider view point/perspective/side of story:) -Admin
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❖ चिन्मय सागर जी के ह्रदय उदगार विद्यासागर जी के बारे में
मैं भगवान के बारे में बोल सकता हूं,
मगर मेरे गुरू के बारे में नहीं बोल सकता
मेरे गुरू भगवान से बङकर हैं
मेरे गुरू, गुरू हैं
मेरे गुरू, लघू नहीं
मेरे गुरू, लघू नहीं
मेरे गुरू, गुरू हैं
मेरे गुरू, मेरू नहीं
मेरू तो और भी हो सकते हैं
मेरे गुरू सुमेरू हैं
मेरे गुरू, गुरू हैं
एक ही था, एक ही है, एक ही रहेगा
मेरे गुरू सरिता नहीं,
मेरे गुरू सरोवर नहीं
मेरे गुरू सागर नहीं,
मेरे गुरू विद्यासागर हैं, चैतन्य महासागर हैं
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कोटा नगरी का अद्भुत द्रश्य
नसिया जी जगत पूज्य के
आशीर्वाद से चमक उठी
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तीर्थंकर प्रतिमाये क्यूँ बननी शुरू हुई.. लॉजिक क्या था! आओ जाने...
मूर्ति पूजा के दो प्रतीक रहें—
१. अदताकार, २. तदाकार।
इन दोनों प्रतीकों में सर्वप्रथम अदताकार प्रतीकोें की मान्यता सर्वप्रचलित हुई। एक बार सम्राट भरत चक्रवर्ती भगवान ऋषभदेव के दर्शन कर कैलाशगिरि से अयोध्या वापिस आए। उस समय उनका मन भक्ति भाव से ओतप्रोत था। भगवान के दर्शन की इस घटना की स्मृति को सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने कैलाश शिखर के आकार के घंटे बनवाये और उन पर भगवान ऋषभदेव की मूर्ति का अंकन कराकर इन घंटों को राजप्रसाद के दरवाजों पर लटकवा दिया। इससे प्रति समय आते जाते भगवान के दर्शन भी होते थे और घटना की स्मृति सदैव ध्यान में रहती परन्तु इससे भी संतुष्टि न होने पर कैलाशगिरि पर ७२ जिनालय बनवायें और उनमें रत्नों की प्रतिमाएं विराजमान कराई। इतिहास में यह तदाकार प्रतीक पूजा का प्रथम प्रयास रहा। त्रेसठ शलाका पुरुषों की गाथाओं में अनेकों मंदिरों के निर्माण के एवं मूर्ति प्रतिष्ठा के बारे में उल्लेख मिलता है।
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रोम रोम से निकले प्रभुवर नाम तुम्हारा...
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🌺महत्त्वपूर्ण शंका समाधान🌺
अभी अभी whatsapp पर ऐसे messeges आ रहे हैं की कुण्डलपुर के मंदिर निर्माण पर national green tribunal द्वारा stay लगाया गया है, क्या ये खबर सत्य है?
✨मुनिश्री प्रमाणसागर जी महाराज द्वारा इस शंका का समाधान
🌺विशेष सूचना🌺
यह सब मामला महामस्तकाभिषेक महोत्सव के लिए जो बड़े बड़े पंडाल और अन्य व्यवस्थाएँ बनाई जा रही हैं उससे जुड़ा हुआ है क्योंकि वो जमीन वन विभाग के आधीन है जिसका निरिक्षण वन विभाग के अधिकारीयों को करने के लिए कहा गया है।
📢इस कोर्ट के निर्णय का बड़े बाबा के मंदिर निर्माण से कोई सम्बन्ध नहीं है । अतः श्रावक कोई भी भ्रम न रखे और सानंद महामस्तकाभिषेक महोत्सव के लिए कुण्डलपुर पधारें।
⛳इस कोर्ट के फैसले का महोत्सव पर कोई असर नहीं होगा⛳
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***धन्य हे गुरुदेव का त्याग और तपस्या***
वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी द्वारा किया गया केशलोंच झालरापाटन मे...
जय जय गुरुदेव...
"जय जिनेन्द्र"
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✿ #vidyasagar #kundalpur @:) latest picha
दिगम्बर प्राकृतिक मुद्रा, विरागी की निशानी है।
कमण्डलु पिच्छिधारी नग्न मुनिवर की कहानी है।। ।।
दिशाएँ ही बनीं अम्बर न तन पर वस्त्र ये डालें।
महाव्रत पाँच समिति और गुप्ती तीन ये पालें।।
त्रयोदश विधि चरित पालन करें जिनवर की वाणी है।।१।।
बिना बोले ही इनकी शान्त छवि ऐसा बताती है।
मुक्ति कन्यावरण में यह ही मुद्रा काम आती है।।
मोक्षपथ के पथिकजन को यही वाणी सुनानी है्ु।।२।।
यदि मुनिव्रत न पल सकता तो श्रावक धर्म मत भूलो।
देव-गुरु-शास्त्र की श्रद्धा परम कर्तव्य मत भूलो।।
बने मति ‘चन्दना’ ऐसी यही ऋषियों की वाणी है्ु।।३।।
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कुछ तथाकथित धार्मिक लोग हर चीज में गलती निकालने और मुनि निंदा में लगे हुए हे उनके लिए आचार्यश्री का सूत्र वाक्य...
परम पूज्य आचार्य श्री विमल सागरजी महाराज की जय हो...
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वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी द्वारा किया गया केशलोंच झालरापाटन मे...
रिपोर्ट अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमण्डी
जय जय गुरुदेव...
"जय जिनेन्द्र"
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卐 भक्तामर स्तोत्र (काव्य -२) 卐
यः संस्तुतः सकल वाङ्मय तत्वबोधा- ।
दुद्भूतबुद्धिपटुभिः सुरलोकनाथैः ॥
स्तोत्रैर्जगत्रितय चित्त हरैरुदारैः ।
स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥२॥
☆ अर्थ:---
सम्पूर्णश्रुतज्ञान से उत्पन्न हुई बुद्धि की कुशलता से इन्द्रों के द्वारा तीन लोक के मन को हरने वाले, गंभीर स्तोत्रों के द्वारा जिनकी स्तुति की गई है उन आदिनाथ जिनेन्द्र की निश्चय ही मैं (मानतुंग) भी स्तुति करूँगा|
☆ भावार्थ:---
सकल वाङ्मय अर्थात् श्रुत ज्ञानसे युक्त सुरेन्द्र जब भक्तिवश ऐसे मनोहारी स्तोत्रों की रचना करके भगवान की स्तुति करता है, जो तीनों लोकों के समस्त मनों - हृदयों को हरनेवाले है, तब मैं भी उस प्रथम जिनेन्द्र भगवान आदिनाथ की स्तुति के लिये कटिबध्द होता हूँ ।।
☆ चित्र परिचयः--- विशेष बुद्धिमान देवों के द्वारा वंदित, जिनेन्द्र देव का स्तवन, स्वयं को अल्पबुद्धि कहने वाले मानतुंगाचार्य करने का प्रयास कर रहे है॥2॥
|| ॐ ह्रीं अर्हं श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय नमः ||९ बार इस मंत्र का जाप करें ||
卐卐卐 जय बोलो आद्य प्रवर्तक आदि ब्रम्ह आदिम तीर्थंकर प्रजापिता देवाधिदेव १००८ आदिनाथ भगवन की जय 卐卐卐
卐卐 जय बोलो आचार्य मानतुंग स्वामी की जय 卐卐
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