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👉 साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी - संक्षिप्त परिचय
प्रस्तुति - 🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*धर्मसंघ में मुख्यमुनि के गौरवशाली पद का सृजन*
⚡आज के दुर्लभ ऐतिहासिक पल
⚡ परम श्रद्धेय *आचार्यश्री महाश्रमण* ने धर्मसंघ में *मुख्य मुनि* पद की स्थापना की ।
⚡ *मुनिश्री महावीर कुमारजी* को 'मुख्य मुनि' पद पर किया प्रतिष्ठित ।
⚡ मुनिश्री कुमारश्रमणजी के साझ को उनकी सेवा में किया नियुक्त।
⚡ पूज्यप्रवर ने फ़रमाया - "मुख्य मुनि" एवं "साध्वीवर्या" पद का सृजन कर मैं संघ के 90% कर्ज से मुक्त हो रहा हूँ ।
⚡ मुनिवृन्द की ओर से मुनिश्री दिनेशकुमार एवं मुनिश्री ऋषभकुमार ने ओढाई पछेवड़ी, किया वर्धापन ।
दिनांक:- 04-06-2016
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻"तेरापंथ संघ संवाद"🌻
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👉 पूज्य प्रवर द्वारा *मुख्यमुनि* पद हेतु लिखित सन्देश
दिनांक:- 04-06-2016
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👉 ठाणे - जीवन विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन
प्रस्तुति - 🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕आचार्य तुलसी की कृति....."श्रावक संबोध"
गतांक से आगे......
📝श्रृंखला - 30📝
लय - वंदना आनंद....
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28 - जीव और अजीव चौदह
भेद आगम-भित्ति है,
पुण्य के नव हेतु,
द्विगुणित पाप दूषित वृत्ति है।
पाँच आश्रव, पाँच संवर,
और बारह निर्जरा,
बंध चार विमोक्ष चार
विचार कर देखें जरा।।
अर्थ - आगम के आधार पर नौ तत्त्वों के अनेक भेद-प्रभेद किए गए हैं। यहां उनके 85 भेदों का उल्लेख है -
जीव 14 भेद
अजीव 14 भेद
पुण्य 9 भेद
पाप 18 भेद
आश्रव 5 भेद
संवर 5 भेद
निर्जरा 12 भेद
बंध 4 भेद
मोक्ष 4 भेद
भाष्य - जैन तत्त्वविधा के आधारभूत तत्त्व दो हैं - जीव और अजीव। यह संक्षिप्त वर्गीकरण है। कुछ विस्तार किया जाए तो तत्त्वों की संख्या नौ हो जाती है - जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष। तत्त्वार्थ सूत्र में पुण्य-पाप को स्वतंत्र नहीं माना गया है। वहां तत्त्वों की संख्या सात है।
नौ तत्त्वों को विस्तार से समझने के लिए उनके अनेक भेद-प्रभेद किए जा सकते हैं।
एक विविक्षा के अनुसार उनके 115 भेद किए जाते हैं। प्रस्तुत संदर्भ में 85 भेदों की विविक्षा की गई है। उन 85 भेदों को सामने रखकर विचार किया जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि वह विवेचन कहीं तो तत्त्व के स्वरूप को आधार बनाकर किया गया है और कहीं तत्त्व के निमित्तों को आधार मानकर किया गया है।
जीव तत्त्व के चौदह भेद उसके संसारी स्वरूप की दृष्टि से किए गए हैं।
संसारी जीव की दो अवस्थाएं हैं - व्यक्त और अव्यक्त। अपर्याप्त अवस्था अव्यक्त अवस्था है। जीव की अभिव्यक्ति पर्याप्त होने से होती है। इसी प्रकार इंद्रियां भी संसारी जीव के स्वरूपबोध में सहायक बनती हैं। पर्याप्तियों और इंद्रियों की प्रमुखता के आधार पर जीव तत्त्व के चौदह भेद हैं -
सूक्ष्म एकेन्द्रिय के दो भेद -
1. अपर्याप्त 2. पर्याप्त।
बादर एकेन्द्रिय के दो भेद -
3. अपर्याप्त 4. पर्याप्त।
द्विन्द्रिय के दो भेद -
5. अपर्याप्त 6. पर्याप्त।
त्रीन्द्रिय के दो भेद -
7. अपर्याप्त 8. पर्याप्त।
चतुरिन्द्रिय के दो भेद -
9. अपर्याप्त 10. पर्याप्त।
असंज्ञी पंचेन्द्रिय के दो भेद -
11. अपर्याप्त 12. पर्याप्त।
संज्ञी पंचेन्द्रिय के दो भेद -
13. अपर्याप्त 14. पर्याप्त।
आगे के तत्त्वों के भेद:-
क्रमशः....... कल
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕
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विशेष सुचना-~~~~~~~
*तेरापंथ धर्मसंघ में मुख्यमुनि पद का सृजन*
परम श्रद्धेय *आचार्यश्री महाश्रमण* ने आज 4 जून 2016 को तेरापंथ धर्मसंघ में *मुख्य मुनि* पद की स्थापना करते हुए मुख्य मुनि के पद पर *मुनि श्री महावीर कुमारजी* को प्रतिष्ठित किया।
मुनि श्री कुमारश्रमणजी के साझ को उनकी सेवा में नियुक्त किया।
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News in Hindi
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👉 सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश देती "अहिंसा यात्रा" का आज का प्रवास *बरपथार*
👉 नवनियुक्त साध्वीवर्या की अभिव्यक्ति
👉 आज के मुख्य प्रवचन के दृश्य
दिनांक:- 04-06-2016
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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👉 बालोतरा - 'स्वर संगम' पुस्तक के आवरण पृष्ठ का अनावरण
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👉 बोराला (महा) - शेतकारी सम्मेलन का आयोजन
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👉 विशेष सुचना
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★ पूज्य प्रवर द्वारा साध्वीवर्या को तीसरे नम्बर पर प्रतिष्ठापित किया। पूर्ण समाचार पोस्ट में।
दिनांक -4-6-16
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