24.08.2016 ►Jahaj Mandir ►Paryushan pajushan

Published: 28.08.2016
Updated: 08.01.2018

News in Hindi:

Paryushan pajushan जैन धर्म में पर्युषण पर्व का विशेष महत्व है। यह सर्वश्रेष्ठ पर्व माना जाता है। पर्युषण आत्मशुद्धि का पर्व है, कोई लौकिक त्यौहार नहीं।

इस पर्व में सम्यग दर्शन ज्ञान चारित्र की आराधना कर आत्मा को मिथ्यात्व, विषय व कषाय से मुक्त कराने का प्रयत्न पुरुषार्थ किया जाता है।

जैन आगमों में वर्णित ६ अठाई में से ये एक है। इसके अलावा ३ चातुर्मास व दो ओली की अठाइयाँ होती है। इनमें देवता-गण भी नन्दीश्वर द्वीप में जा कर आठ दिन तक भगवान की भक्ति करते हैं। देवगण परमात्मा की भक्ति के अलावा जप-तप अदि कोई धर्म कृत्य नहीं कर सकते, परंतु मनुष्य हर प्रकार की धर्मक्रिया कर सकता है। अत: पर्युषण में विशेष रूप से धर्म की आराधना करना कर्तव्य है। पर्युषण में दान, शील, तप व भाव रूप चार प्रकार के धर्म की आराधना की जाती है। इस में भी भाव धर्म की विशेष महत्ता है। दान, शील व तप रूप धर्म-क्रिया मात्र भाव-धर्म को पुष्ट करने के साधन हैं। पर्युषण में अनुकम्पा दान, सुपात्र दान व अभय दान रूप दान-धर्म, सदाचार, विषय त्याग, ब्रह्मचर्य अदि रूप शील धर्म, उपवास, आयम्बिल, विगय त्याग, रसत्याग आदि रूप बाह्य धर्म व प्रायश्चित्त, विनय, सेवा, स्वाध्याय, ध्यान व कायोत्सर्ग रूप अभ्यंतर तप की आराधना करनी चाहिए। बाह्य तप अभ्यंतर तप के लक्ष्यपूर्वक करना चाहिए । इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए की बाह्य तप कहीं आडम्बर व अहंकार का निमित्त न बन जाए। बिना आत्मा ज्ञान व आत्म लक्ष्य के किए हुए बाह्य तप को शास्त्रकारों ने बाल तप कहा है। इस प्रकार के बाल तप से आत्मशुद्धि नही होती एवं यह मोक्ष में सहायक भी नहीं बनता है। यह पर्व भाद्रपद कृष्ण १२ से प्रारम्भ हो कर भाद्रपद शुक्ला ४ को पूर्ण होता है। पर्युषण पर्व का अन्तिम दिन संवत्सरी कहलाता है। संवत्सरी पर्व पर्युषण ही नहीं जैन धर्म का प्राण है। इस दिन सांवत्सरिक प्रतिक्रमण किया जाता है जिसके द्वारा वर्ष भर में किए गए पापों का प्रायश्चित्त करते हैं। सांवत्सरिक प्रतिक्रमण के बीच में ही सभी ८४ लाख जीव योनी से क्षमा याचना की जाती है। यहाँ क्षमा याचना सभी जीवों से वैर भाव मिटा कर मैत्री करने के लिए होती है। क्षमा याचना शुद्ध ह्रदय से करने से ही फल प्रद होती है। इसे औपचारिकता मात्र नही समझना चाहिए। पर्युषण शब्द का अर्थ है एक स्थान पर निवास करना। द्रव्य से इस समय साधू साध्वी भगवंत एक स्थान पर निवास करते हैं। भाव से अपनी आत्मा में स्थिरवास करना ही वास्तविक पर्युषण है। इस लिए इस समय यथासंभव विषय एवं कषायों से दूर रह कर अपनी आत्मा में लीन होने के लिए आत्म चिंतन करना चाहिए। साथ ही सामायिक, प्रतिक्रमण, देवपूजन, गुरुभक्ति, साधर्मी वात्सल्य आदि भी यथाशक्ति करने योग्य है। इस समय कल्पसूत्र की वाचना होती है जिसमे तीन अधिकार हैं १. जिन चरित्र अधिकार, २. स्थविरावली एवं ३. साधू समाचारी। जिन चरित्र अधिकार में पश्चानुपुर्वी से तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर, पुरुषादानिय पाश्र्वनाथ, अर्हत अरिष्टनेमि व ऋषभदेव, इन चार तीर्थंकरों का विस्तार से एवं शेष २० तीर्थंकरों का संक्षेप में जीवन चरित्र वांचा जाता है। स्थविरावली में चरम तीर्थंकर महावीर स्वामी के गणधरों से ले कर आज तक के युगप्रधान आचार्यों एवं स्थविर मुनियों का जीवन चरित्र समझाया जाता है। साधू समाचारी का वांचन साधू साध्वी भगवंतों के सामने किया जाता है। पर्युषण पर्व के समय कल्पसूत्र का वाचन अवश्य सुनना चाहिए।

Sources

Jahaj Mandir.com
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Shvetambar
      • Murtipujaka
        • Jahaj Mandir [Khartar Gaccha]
          • Festivities / Holy Periods
            • Paryushan / Daslakshan
              • Culture
                • Share this page on:
                  Page glossary
                  Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
                  1. Jahaj Mandir
                  2. Jahaj Mandir.com
                  3. Mandir
                  4. Paryushan
                  5. ज्ञान
                  6. तीर्थंकर
                  7. दर्शन
                  8. भाव
                  9. महावीर
                  10. श्रमण
                  Page statistics
                  This page has been viewed 1313 times.
                  © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
                  Home
                  About
                  Contact us
                  Disclaimer
                  Social Networking

                  HN4U Deutsche Version
                  Today's Counter: