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#Glorious 😍आचार्य श्री वर्धमानसागर जी तथा आचार्य श्री सिद्धसेनसागर जी महाराज सासंघ सानिध्य में भगवान मुनिसुव्रतनाथ जी के पंचकल्यांक में तप कल्यांक से पूर्व राजा मुनिसुव्रतनाथ जी:)) #AcharyaVardhmansagar #BhagwanMuniSuvratnath
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राम राम राम बोलो! जय जय राम बोलो! बोलो बोलो जय श्री राम.. #Ram #आचार्यविद्यासागर
#RamKirtan ऐसा कीर्तन आपने आजतक नहीं सुना ओर देखा होगा.. आचार्य श्री विद्यासागर जी के मुनि-रत्नो में से एक अनूठे रत्न क्षुल्लक ध्यानसागर जी, जो जन्म से जैन नहीं थे, MBBA कर रहे थे, तब वैराग्य हुआ ओर संत बनने चल पड़े.. उनके मुख से संगीत के साथ जितेंद्र भगवान राम का कीर्तन:) must listen and share...
आचार्य श्री विद्यासागर जी के शिष्य क्षुल्लक श्री ध्यानसागर जी द्वारा भोपाल में राम कथा का विराट आयोजन... जैन क्या हिंदू क्या सब मिलकर भगवान राम, भगवान हनुमान, सती सीता आदि के जीवन चरित्र को सुन रहे हैं:)) -महापोर आलोक शर्मा
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News in Hindi
#जिज्ञासा_समाधान very Important question answer मुनि श्री सुधासागर जी द्वारा:) #shareIt
-एक जैनी को भोजन करते समय यदि मांसाहार का दर्शन भी हो रहा है, तो वह भोजन कदापि नहीं कर सकता, उसे ऐसे स्थान से हटकर ही भोजन करना चाहिए।* ज्हां सामने कोई नॉनवेज खा रहा है, अंडे खा रहा है, ऐसे व्यक्ति के सामने यदि तुम वेज खाना भी खाते हो, तो महादोष के भागी हो।
आज लोग तर्क देते हैं, कि वनस्पति आदि में भी एक इन्द्रिय जीव है, तब उन्हें खाते हैं तो मांस खाने में क्या बुराई है? *जीवो को मारकर खाना और बनस्पति को खाने में अंतर है। वनस्पति जीवो की विराधना व अन्य जीवो की विराधना में अंतर होता है। वनस्पति काय जीव एक इंद्रिय कर्मफल चेतना से जीते हैं। उनका कोई परिवार नही है, वनस्पति को उबालने के बाद उसमें एक समय तक कोई जीव की उत्पत्ति नहीं होती। मांस आदि में निरंतर अपने निगोदिया जीवो की उत्पत्ति होती रहती है। पशु आदि का सेवन करने वाले महा पापी ही कहलाएंगे।
यदि किसी श्रावक को छुआ-छूत की या संक्रमित बीमारी है, अथवा शरीर में किसी फोड़े-फुंसी आदि से कोई रिसाव हो रहा है, तो उसे अभिषेक नहीं करना चाहिए।* मात्र गंधोदक को श्रद्धा के साथ मस्तक पर लगाना चाहिए। फोड़े फुंसी आदि पर गंधोदक नहीं लगाना चाहिए।_
🥀 _*धरणेन्द्र-पद्मावती ने पार्श्वनाथ का उपसर्ग दूर किया सो वह आपकी रक्षा करने आएंगे, ये बात नही, बल्कि नाग-नागिन की रक्षा पार्श्वनाथ ने की थी, इसलिए धरणेंद्र पद्मावती को उनकी रक्षा के लिए आना पड़ा। यह उन पर पार्श्वनाथ के प्रति उपकारी भाव था।* यदि उपकारी भाव ना होता, तो उन्हें कोई बचाने नहीं आता। *भगवान सुपार्श्वनाथ पर देव ने उपसर्ग किया, परंतु वहाँ कोई उन्हें बचाने नहीं आया।उपसर्ग होते-होते उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हो गया, और उपसर्ग अपने आप दूर हो गया।*_
🥀 _*दान की घोषणा कर के नाम वापस लेना बहुत बड़ा पाप है। लोग थोड़े पैसे देकर, अपना नाम कमरा निर्माणकर्ता के रुप में लिखवाते हैं, यह भी बहुत बड़ा दोष है। आपको कम से कम उतना पैसा देना चाहिए, जितना उसके निर्माण में खर्च आया है। यदि आप कम पैसा देते हैं, तो उसके लिए निर्माण न लिखा कर, सहयोग किया शब्द लिखवाना चाहिये।*_
_जो लोग थोड़ा सी द्रव्य सामग्री देकर, अधिक चढ़ाते हैं, वह निश्चित रूप से निर्माल्य के दोषी हैं। धर्म क्षेत्र में हमेशा ध्यान रखना चाहिए, जितना उपयोग आपके द्वारा किया जा रहा है, उससे ड्योढ़ा ही देना चाहिए।_
_*📺पूज्य गुरुदेव का जिज्ञासा समाधान कार्यक्रम प्रतिदिन लाइव देखिये - जिनवाणी चैनल पर*_
_*👉🏻सायं 6 बजे से, पुनः प्रसारण अगले दिन दोपहर 2 बजे से*_
संकलन- *दिलीप जैन, शिवपुरी*
*9425488836*
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