Update
20 अप्रैल का संकल्प
*तिथि:- वैशाख कृष्णा नवमी*
संयम के शस्त्र से ही होता इच्छाओं पर वार।
मन वश में हो जाए तो बेड़ा लग जाए पार।।
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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 बापोड़ी (पुणे) - श्रीमती पदमावती सेठिया का संथारा पूर्वक देवलोक गमन
👉 जयपुर - मंगल भावना समारोह
👉 दक्षिण हावड़ा - वर्षीतप अभिनन्दन
👉 सूरत - श्री सिसोदिया अणुव्रत समिति अध्यक्ष चयनित
👉 कटक - स्वागत समारोह आयोजित
👉 गदग - टेक्नोलॉजी का ज्ञान बढ़ाएगा सशक्त पहचान कार्यशाला का आयोजन
👉 हैदराबाद:- जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 ईरोड - आध्यात्मिक मिलन एवं सुखपृछा
👉 गंगाशहर - टेक्नोलॉजी सशक्तिकरण कार्यशाला का आयोजन
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*चैतन्य केन्द्र और रंग*
अध्यात्म - विद्या में चैतन्य केन्द्रों के रंगों का भी निर्देश मिलता है । चैतन्य केन्द्रों पर रंगों का ध्यान किया जाए तो उनकी क्रिया मे भी परिवर्तन आता है । रंगों का निर्देश -----
शक्ति केन्द्र --- पीला
स्वास्थ्य केन्द्र --- नारंगी
तैजस केन्द्र ---- लाल
आन्नद केन्द्र ----- वायलेट
विशुद्धि केन्द्र ---- इंडिगो (बैगनी)
दर्शन केन्द्र ---- नीला
ज्योति केन्द्र ---- जामुनी (नीला)
ज्ञान केन्द्र ---- हरा, आसमानी
19 अप्रैल 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 33* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*परिव्राट्-पुंगव आचार्य प्रभव*
गतांक से आगे...
जम्बू ने प्रभव को आगे उद्बोधित किया--
"प्रभाव! पुत्रोत्पत्ति से पितृ-कल्याण की भावना भ्रांति मात्र है। पिता-पुत्र के संबंध अनेक बार हो चुके हैं। जन्म-जन्मांतर में पिता पुत्र का और पुत्र पिता का स्थान ग्रहण कर लेता है। परिवर्तनशील विश्व में जनक-जननी, सुत-सुता, वल्लभ-कांता आदि के संबंध शाश्वत नहीं हैं। अनादि-अनंत संसार में किसके साथ किसका संबंध नहीं हुआ है? अतः स्व-पर की कल्पना ही व्यामोह है। माता, दुहिता, भगिनी, भार्या, पुत्र, पिता बंधु-बांधव आदि संबंध भव-भवांतर में परिवर्तित होते रहते हैं, अतः इन संबंधों से आत्म-कल्याण का पथ प्रशस्त नहीं होता।
महेश्वरदत्त, गोपयुवक, कोड़ी के बदले अपने सर्वस्व को खो देने वाले वणिक आदि के उदाहरण सुनाकर एवं कुबेरदत्त, कुबेरदत्ता के दृष्टांत से एक भव के अठारह संबंधों का विचित्र लेखा-जोखा समझाकर श्रेष्ठीकुमार ने चोराधिपति के मोहानुबन्ध को शिथिल कर दिया।
जम्बू के अमृतोपम उपदेश से प्रभव का हृदय पूर्णतः झंकृत हो गया। युग-युग से तंद्रिल नयन अध्यात्म के अंजन से खुल गए। भीतर का ज्ञानदीप जल गया। वह अपने द्वारा कृत पापों के प्रति अनुताप की अग्नि में जलने लगा। उसने सोचा, हाय! कहां यह श्रेष्ठी जम्बू कुमार जो अपने अधीन विपुल धन को और भोगों को ठुकरा रहा है और कहां मैं जो मांस के टुकड़े को देखकर कुत्ते की भांति धन पर टूट पड़ा हूं...।
'इसके नयनों में मैत्री का अजस्र स्रोत छलक रहा है और मैं पापी-महापापी सहस्रों ललनाओं की मांग का सिंदूर पोंछने वाला, रक्षा बांधने को प्रतीक्षारत भगिनियों के भ्रातृ-सुख का अपहरण करने वाला, प्रिय पुत्रों के प्राणों से खेलकर माताओं को बिलखाने वाला, अपने रक्त रंजित हाथों पर अट्टाहास करने वाला मैं..... मैं कालसौकरिक कसाई से भी अधिक निर्दयी हत्यारा हूं। संयम और तप की अग्नि में स्नान किए बिना मेरा विशुद्धिकरण सर्वथा असंभव है।'
जम्बू की ज्ञानधारा से प्रभव के हृदय पर जमा कलमष धुल गया। वह अपने को धिक्कारता हुआ अध्यात्म सागर में गहराई तक चला गया। जो ऋषभदत्त की धन-राशि को लूटने आया था वह स्वयं पूर्णतः लूट गया। जम्बू के चरणों में गिरकर अपराध हेतु क्षमा मांगी और अपने साथियों को मुक्त करने के लिए आग्रह भरा निवेदन किया।
*क्या जम्बू ने सचमुच प्रभव के साथियों पर तंत्र-मंत्र विद्या का प्रयोग किया था? और उन्हें मुक्त किया या नहीं...* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 33📝
*संस्कार-बोध*
*संस्कारों का महत्त्व बतलाते दोहों में प्रयुक्त कुछ उदाहरणों का विस्तृत विवेचन*
*3. कलयुग में भी सतयुगी*
मुनि खेतसी की दीक्षा का अपना इतिहास है। उनका विवाह होने वाला था। विवाह का एक वरनोला जीमने के बाद दीक्षा के भाव जागे और वह आचार्य भिक्षु के पास दीक्षित हो गए। वे आत्मार्थी, पापभीरु, पदनिरपेक्ष और सेवाभावी साधु थे। उनके जीवन में और भी अनेक विशेषताएं थीं, जिनके कारण वे बहुत ऊंचाई तक पहुंच गए। उनकी सेवाभावना इतनी विलक्षण थी कि उसने उनको कलयुग में भी सतयुगी बना दिया। सेवाभावना से संबंधित एक घटना यहां दी जा रही है--
वृद्धावस्था की एक विवशता है-- सर्दी के दिनों में बार-बार प्रस्रवण के लिए उतना। एक रात आचार्य भिक्षु को बहुत बार उठना पड़ा। दूसरे दिन प्रातःकाल मुनि खेतसी ने निवेदन किया-- 'स्वामीजी! रात को आप बहुत बार उठे।' उनके कहने का अभिप्राय यह था कि स्वामीजी को रात में नींद कम आई, उठने से तकलीफ बढ़ी।
आचार्य भिक्षु ने उसे दूसरे अर्थ में ग्रहण किया। उन्होंने सोचा-- खेतसी को भी मेरे साथ उठना पड़ा, यह इसलिए कह रहा है। आचार्य भिक्षु बोले-- 'आज रात को तुझे जगाने का ही त्याग है।' मुनि खेतसी यह बात सुनते ही स्तब्ध रह गए। वे बोले-- 'स्वामीजी! आपने यह क्या किया? मैंने इसलिए निवेदन किया था क्या?' मुनि खेतसी ने बहुत विनय किया, पर त्याग तो बदल नहीं सकते थे। इस पर मुनि खेतसी ने बड़ी लकीर खींचते हुए कहा-- 'आपको जगाने का त्याग है तो आज रात मुझे सोने का ही त्याग है।' उन्होंने पूरी रात जागकर आचार्य भिक्षु की सेवा की। कितना विलक्षण था मुनि खेतसी का सेवाभाव!
*शिष्य-सम्बोध* जानेंगे-समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 58 - *चारित्रात्माओं के प्रवेश व जुलूस*
*घोष व नारे* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....
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*पूज्यवर का प्रेरणा पाथेय*
👉 अहिंसा यात्रा संग शांतिदूत पहुंचे लखीसराय मुख्यालय स्थित बालिका विद्यापीठ
👉 आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को दिया भाषा का ज्ञान, दोष और गुण का बताया भेद
👉 आचार्यश्री के आह्वान पर विद्यार्थियों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प
👉 प्रधानाचार्य और उपप्रधानाचार्य ने दी भावनाओं की अभिव्यक्ति प्राप्त किया आशीर्वाद
दिनांक - 18-04-2017
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*पूज्यवर का प्रेरणा पाथेय*
👉 सिरारी से लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे आदर्श मध्य विद्यालय
👉 आचार्यश्री ने मानव जीवन को अच्छा बनाने का बताया मार्ग
👉 ग्रामीणों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्प
दिनांक 17-04-2017
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