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श्रुत की आराधना ही धर्म की प्रभावना: प्रेक्षाप्राध्यापक मुनिश्री किशनलाल
हांसी, 9 अगस्त 2017।
‘जैसे श्रुत की आराधना करने से ज्ञान बढ़ता है उसी प्रकार से धर्म की आराधना करने से भी
धर्म की प्रभावना बढ़ती है’ आगम वाणी से चर्चा करते हुए आचार्यश्री महाश्रमणजी के
आज्ञानुवर्ती ‘शासनश्री’ मुनि किशनलालजी ने कहा कि गौतम गणधर ने भगवान से 35 हजार
प्रश्न पूछे जिससे श्रुत का विकास हुआ। ज्ञान, पुण्य, पाप के बारे में जानने से अज्ञान दूर
होता है। राग-द्वेष की वृत्ति कम होती है आजकल के भौतिक साधन राग-द्वेष को बढ़ाने वाले
कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं इसलिए ज्ञान की आराधना आवश्यक हो गई है। जब राग-द्वेष में
कमी आने लगती है तो चेतना के कपाट खुलने लगते हैं व्यक्ति आत्मा के बारे में सोचना
प्रारंभ करता है।
मानसिक क्लेश, पीड़ा ज्ञान पर आवरण डालती है सोच को नकारात्मक बनाती है अशांति पैदा
करती है इस प्रकार की स्थिति में अनुप्रेक्षा के प्रयोग प्रभावी हो सकते हैं अनित्य अनुप्रेक्षा हमें
राग-द्वेष से मुक्त करने का मार्ग प्रशस्त करती है, संसार में कोई भी वस्तु मानसिक पीड़ा,
स्वभाव, आदतें, बीमारियां शाश्वत नहीं है। ज्ञानी की सेवा, ज्ञानी की प्रशंसा, ज्ञान की
अनुमोदना भी ज्ञान की प्रभावना है, मुनिश्री चम्पालालजी भाई जी महाराज सेवा के कारण
‘सेवाभावी’ के पदनाम से प्रसिद्ध हो गए। महाराजा श्रेणिक का रोचक संस्मरण भी दोहराया
अतः निराशा किसी भी क्षेत्र में कोई भी अशिक्षित व्यक्ति न करे श्रुत की आराधना करो और
प्रज्ञा जगाओ।
- राहुल जैन