06.09.2022: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 06.09.2022
Updated: 07.09.2022

Updated on 07.09.2022 08:11

दोषों का प्रायश्चित्त

दोषों का प्रायश्चित्त

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Updated on 06.09.2022 13:36

मुंबई जाते समय... अहमदाबाद सूरत इस एरिया में होते होते...

मुंबई जाते समय...

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Posted on 06.09.2022 11:40

🌸 महातपस्वी महाश्रमण की मंगल सन्निधि में गुजरात विस की स्पीकर डॉ. नीमाबेन आचार्य 🌸

-आचार्यश्री ने कच्छवासियों पर बरसाई कृपा, कच्छ-सौराष्ट्र में विस्तृत प्रवास का दिया आशीष

-प्रायश्चित्त कर मन को बनाएं निर्मल: आचार्यश्री महाश्रममण

-मानवता का कल्याण कर रहे हैं आचार्यश्री महाश्रमण: डॉ. नीमाबेन आचार्य

06.09.2022, मंगलवार, छापर, चूरू (राजस्थान) :

स्वकल्याण के साथ परकल्याण के लिए सदैव तत्पर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के छापर चतुर्मास के दौरान देश-विदेश से श्रद्धालुओं के पहुंचने का क्रम निरंतर जारी है। वहीं आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में नित नवीन आयोजनों का क्रम भी चल रहा है। इसके साथ ही आचार्यश्री के दर्शनार्थियों में केवल तेरापंथी श्रद्धालु ही नहीं, बल्कि भारत सरकार के साथ कई अन्य राज्यों के अनेक राजनैतिक दलों के लोगों, सांसदों, विधायकों, मंत्रियों आदि गणमान्य लोगों के भी पहुंचने का क्रम लगा हुआ है। मंगलवार को आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में गुजरात विधानसभा की स्पीकर डॉ. नीमाबेन आचार्य भी पहुंची। उन्होंने आचार्यश्री को सभक्ति वंदन किया, प्रवचन का श्रवण किया, अपनी भावनाओं को भी अभिव्यक्त किया तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। रवाना होने से पूर्व उनका आचार्यश्री के प्रवास स्थल में विभिन्न विषयों पर वार्तालाप का भी क्रम रहा।

मंगलवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्राधारित अपने मंगल प्रवचन में विराट देव जगत के प्रकारों का वर्णन करते हुए जिस प्रकार मनुष्यों और जीवों को उनके रंग-रूप, वेशभूषा, क्षेत्र, राज्य, बोली, आदि के कारण वर्गीकृत किया जाता है उसी प्रकार देव जगत में भी अनेक प्रकाकर हैं। कोई मनुष्य और तिर्यंच कौन-सी देवगति को किस कारण से प्राप्त होते हैं-इसकी विस्तृत व्याख्या की। आचार्यश्री ने प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि सकाम साधना नहीं करनी चाहिए। अकाम निर्जरा हो तो साधु मोक्ष की ओर गति कर सकता है। विधि-निषेष में किसी प्रकार का लंघन हो जाए तो उसका प्रायश्चित्त लेकर अपनी आत्मा को निर्मल बनाने का प्रयास करना चाहिए। आलोयणा मानों आत्मा का प्रक्षालन है, जिसके माध्यम से लगे दोषों को प्रक्षालित कर उसे निर्मल बनाने का प्रयास किया जाता है। किसी प्रकार की गलती हो जाने पर सरल अंतर्मन से आलोयणा लेकर शुद्धिकरण का प्रयास किया जाता है। दोषों का प्रायश्चित्त ले लेने से आत्मा निर्मल बनी रहती है और मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ सकती है।

आचार्यश्री के दर्शनार्थ पहुंची गुजरात विधानसभा की अध्यक्ष डॉ. नीमाबेन आचार्य को आचार्यश्री ने जैन साधुचर्या व अपनी अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्यों के व उसके संकल्पों सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के विषय में जागरूक रहने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि राजनीति भी सेवा एक विशेष माध्यम है, जिसे हर कोई कर भी नहीं सकता है, लेकिन इस सेवा के कार्य में नैतिकता, ईमानदारी और प्रमाणिकता बनी रहे तो अच्छी सेवा हो सकती है। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने वर्ष 2002 और 2003 में गुजरात की यात्रा के दौरान जनता में सद्भावना के माहौल को स्थापित करने का प्रयास किया था। इस दौरान आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के दर्शन को तत्कालीन भारत के राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भी आए थे। मैंने भी वर्ष 2013 में कच्छ की यात्रा की है। गुजरात एक अच्छा राज्य है। यहां की जनता में अच्छी धार्मिकता का मौहाल बना रहे।

गुजरात विधानसभा की अध्यक्ष डॉ. नीमाबेन आचार्य ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि मैं जन-जन का कल्याण करने वाले महान संत आचार्यश्री महाश्रमणजी को वंदन करती हूं। मुझे अपार प्रसन्नता हो रही है कि मुझे आपके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपने समाज की सेवा और मानवता के कल्याण के लिए अहिंसा यात्रा के माध्यम से देश ही नहीं, विदेशों की धरती पर भी 18000 किलोमीटर की पदयात्रा की। आपकी इस यात्रा ने जन-जन का कल्याण किया है। आप ऐसे ही जन-जन का कल्याण करते रहें और हमारे गुजरात पर आपकी कृपा बनी रहे।

आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में कच्छ से पहुंचे श्रद्धालुओं संग गुजरात विधानसभा की अध्यक्ष मोहदय ने आचार्यश्री के समक्ष कच्छ में पधारने की पुरजोर प्रार्थना की तो मानों कल से ही गुजरात पर मेहरबान आचार्यश्री ने कच्छवासियों को आशीष प्रदान करते हुए कहा कि जब भी अनुकूलता होगी कच्छ-सौराष्ट्र में आने का भाव और यथानुकूलता वहां विस्तृत प्रवास करने का भी भाव है। आचार्यश्री से यह आशीर्वाद प्राप्त करते ही पूरा प्रवचन पंडाल जयघोषों से गुंजायमान हो उठा। कार्यक्रम में श्री निर्मल दुधोड़िया ने आठ की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

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