Posted on 07.09.2022 20:40
करें हम वंदन बारंबारआचार्य डालगणी के महाप्रयाण दिवस पर परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी गीत के माध्यम से ..
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आज के दिन से जुड़े हुए तीन बहुत ही महत्वपूर्ण प्रसंग पर परम गुरुदेव
आज के दिन से जुड़े हुए तीन बहुत ही महत्वपूर्ण प्रसंग पर परम गुरुदेव
🌸 बने रहें उपयोगी और कार्यकारी: युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-आचार्य डालगणी के महाप्रयाण दिवस पर आचार्यश्री ने अर्पित की अपनी प्रणति
-आज के दिन से जुड़े और दो प्रसंगों को आचार्यश्री ने किया वर्णन
-अब कोंकण पर गुरुकृपा, वर्ष 2023-24 के मध्य कोंकण क्षेत्र में विचरण करेंगे महातपस्वी महाश्रमण
07.09.2022, बुधवार, छापर, चूरू (राजस्थान) :
भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि अस्तिकाय कितने प्रकार के होते हैं? उत्तर दिया गया कि अस्तिकाय के पांच प्रकार बताए गए हैं-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय। इस दुनिया में जीव और अजीव दो तत्त्व होते हैं। इन दो तत्त्वों के सिवाय दुनिया और कुछ भी नहीं है। जैन दर्शन द्वैतवादी दर्शन है, उसने दो तत्त्व बताए हैं। इनका विस्तार किया जाए तो पांच अस्तिकाय, छह द्रव्य, नव तत्त्व भी प्रस्तुत किए जा सकते हैं। मानो ये जीव और अजीव के विस्तार हैं। अस्ति शब्द के दो अर्थ-त्रैकालिक और प्रदेश। अस्तिकायों का अस्तित्व त्रैकालिक और स्थाई होता है। प्रदेशों के समूह अस्तिकाय कहलाते हैं। पूर्व के चार अस्तिकाय अमूर्त हैं और मात्र पुद्गलास्तिकाय ही मूर्त होता है। यह मूर्तता और अमूर्तता की दृष्टि से बताया गया है। अमूर्त में स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण नहीं होते। वह अजीव, अरूपी, शाश्वत और लोक में ही होने वाला है। जीवन में उपयोगिता महत्त्वपूर्ण तत्त्व होता है। परिवार हो, समाज हो, देश हो, भले साधु संस्था हो, हर व्यक्ति की उपयोगिता निर्धारित की जाती है और उसीके अनुरूप ही व्यवहार भी किया जाता है। सभी अलग-अलग कार्यों में दक्ष होते हैं तो पूरी व्यवस्था सकुलश रूप में संचालित होती है। इसलिए आदमी को उपयोगी अथवा कार्यकारी बने रहने का प्रयास करना चाहिए।
उक्त पावन पाथेय बुधवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में उपस्थित जनता को प्रदान किया। भाद्रव शुक्ला द्वादशी के संदर्भ में पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज के दिन से तीन प्रसंग प्रसंग जुड़े हुए हैं। आज के दिन हमारे प्रथम आचार्य भिक्षु ने संथारा (अनशन) ग्रहण किया था। भिक्षु स्वामी हमारे धर्मसंघ के प्रवर्तक थे। दूसरा प्रसंग है कि हमारे धर्मसंघ के सप्तम आचार्य परम पूज्य डालगणी के वार्षिक महाप्रयाण का दिन है। आज के दिन उनका लाडनूं में महाप्रयाण हुआ था। उनके महाप्रयाण हुए को 113 वर्ष सम्पन्न हो गए। उनका मनोनयन भी पूर्व आचार्य द्वारा नहीं, मानों धर्मसंघ द्वारा वरिष्ठ मुनि कालूजी (रेलमगरा) के द्वारा किया गया था। वे तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम आचार्य थे, जिनका जन्म राजस्थान की धरती से बाहर मध्यप्रदेश के उज्जैन में हुआ था। उनकी दीक्षा भी किसी आचार्य के द्वारा नहीं, बल्कि उस समय के मुनि हीरालालजी स्वामी के द्वारा हुआ था। वे हमारे धर्मसंघ के सातवें आचार्य के रूप में 12 वर्षों तक संघ को अपनी सेवा दी। उनका अनुशासन और उनकी प्रवचनशैली विशेष थी। आज के दिन मैं उनको बारम्बार वंदन करता हूं।
आज के दिन का तीसरा प्रसंग यह है कि आज के ही दिन परम पूज्य गुरुदेव आचार्य महाप्रज्ञजी ने गंगाशहर में मुनि महाश्रमण अर्थात् मुझे अपनी पछेवड़ी धारण कराई थी। वे हमारे धर्मसंघ के दसवें आचार्य थे। उनका वैदुष्य, उनकी साधना विलक्षण थी। हमारे धर्मसंघ में सबसे ज्यादा आयुष्य प्राप्त करने वाले आचार्य थे। उनका लगभग 90 वर्षों का आयुष्य रहा। उन्होंने आगाम कार्य को कितना आगे बढ़ाया। वे कितने भाषाओं के वेत्ता थे। संस्कृत भाषा पर उनका विशेषाधिकार था। उन्होंने अपने जीवनकाल में यात्राएं भी कीं। गुजरात, महाराष्ट्र आदि-आदि क्षेत्रों में यात्राएं भी कीं। धर्मसंघ को कितना-कितना अवदान दिया। मेरा सौभाग्य है कि मुझे वर्षों तक उनके पास रहने का, उनके चरणों मंे बैठने का, उनका सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिला। उनका हाथ मेरे हाथ पर रहता तो मान लिया जाए कि वह हाथ सर पर ही आशीर्वाद के रूप में रहा करता था। इस प्रकार आज के दिन से कुल दिन प्रसंग जुड़े हुए हैं।
कार्यक्रम में आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र से पहुंचे श्रद्धालुओं की पुरजोर प्रार्थना पर आचार्यश्री ने एक बार फिर कृपा बरसाई और मुम्बई चतुर्मास और सूरत चतुर्मास के मध्य कोंकण क्षेत्र की विचरण करने की घोषणा कर दी। आचार्यश्री की घोषणा से पूरा पंडाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा। श्री निर्मल नाहटा ने आठ की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।
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07.09.2022, बुधवार, छापर, चूरू (राजस्थान) :
भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि अस्तिकाय कितने प्रकार के होते हैं? उत्तर दिया गया कि अस्तिकाय के पांच प्रकार बताए गए हैं-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय। इस दुनिया में जीव और अजीव दो तत्त्व होते हैं। इन दो तत्त्वों के सिवाय दुनिया और कुछ भी नहीं है। जैन दर्शन द्वैतवादी दर्शन है, उसने दो तत्त्व बताए हैं। इनका विस्तार किया जाए तो पांच अस्तिकाय, छह द्रव्य, नव तत्त्व भी प्रस्तुत किए जा सकते हैं। मानो ये जीव और अजीव के विस्तार हैं। अस्ति शब्द के दो अर्थ-त्रैकालिक और प्रदेश। अस्तिकायों का अस्तित्व त्रैकालिक और स्थाई होता है। प्रदेशों के समूह अस्तिकाय कहलाते हैं। पूर्व के चार अस्तिकाय अमूर्त हैं और मात्र पुद्गलास्तिकाय ही मूर्त होता है। यह मूर्तता और अमूर्तता की दृष्टि से बताया गया है। अमूर्त में स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण नहीं होते। वह अजीव, अरूपी, शाश्वत और लोक में ही होने वाला है। जीवन में उपयोगिता महत्त्वपूर्ण तत्त्व होता है। परिवार हो, समाज हो, देश हो, भले साधु संस्था हो, हर व्यक्ति की उपयोगिता निर्धारित की जाती है और उसीके अनुरूप ही व्यवहार भी किया जाता है। सभी अलग-अलग कार्यों में दक्ष होते हैं तो पूरी व्यवस्था सकुलश रूप में संचालित होती है। इसलिए आदमी को उपयोगी अथवा कार्यकारी बने रहने का प्रयास करना चाहिए।
उक्त पावन पाथेय बुधवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में उपस्थित जनता को प्रदान किया। भाद्रव शुक्ला द्वादशी के संदर्भ में पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज के दिन से तीन प्रसंग प्रसंग जुड़े हुए हैं। आज के दिन हमारे प्रथम आचार्य भिक्षु ने संथारा (अनशन) ग्रहण किया था। भिक्षु स्वामी हमारे धर्मसंघ के प्रवर्तक थे। दूसरा प्रसंग है कि हमारे धर्मसंघ के सप्तम आचार्य परम पूज्य डालगणी के वार्षिक महाप्रयाण का दिन है। आज के दिन उनका लाडनूं में महाप्रयाण हुआ था। उनके महाप्रयाण हुए को 113 वर्ष सम्पन्न हो गए। उनका मनोनयन भी पूर्व आचार्य द्वारा नहीं, मानों धर्मसंघ द्वारा वरिष्ठ मुनि कालूजी (रेलमगरा) के द्वारा किया गया था। वे तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम आचार्य थे, जिनका जन्म राजस्थान की धरती से बाहर मध्यप्रदेश के उज्जैन में हुआ था। उनकी दीक्षा भी किसी आचार्य के द्वारा नहीं, बल्कि उस समय के मुनि हीरालालजी स्वामी के द्वारा हुआ था। वे हमारे धर्मसंघ के सातवें आचार्य के रूप में 12 वर्षों तक संघ को अपनी सेवा दी। उनका अनुशासन और उनकी प्रवचनशैली विशेष थी। आज के दिन मैं उनको बारम्बार वंदन करता हूं।
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कार्यक्रम में आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र से पहुंचे श्रद्धालुओं की पुरजोर प्रार्थना पर आचार्यश्री ने एक बार फिर कृपा बरसाई और मुम्बई चतुर्मास और सूरत चतुर्मास के मध्य कोंकण क्षेत्र की विचरण करने की घोषणा कर दी। आचार्यश्री की घोषणा से पूरा पंडाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा। श्री निर्मल नाहटा ने आठ की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।
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