15.09.2022: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 15.09.2022
Updated: 15.09.2022

Updated on 15.09.2022 19:30

साध्वी धर्मयशाजी की स्मृतिसभा में साध्वीप्रमुखाजी..

साध्वी धर्मयशाजी की स्मृतिसभा में साध्वीप्रमुखाजी

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साध्वी धर्मयशाजी की स्मृतिसभा में मुख्यमुनिश्री..

साध्वी धर्मयशाजी की स्मृतिसभामें मुख्यमुनिश्री..

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साध्वी धर्मयशाजी की स्मृतिसभा

साध्वी धर्मयशाजी की स्मृतिसभा

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Posted on 15.09.2022 18:19

🌸 भगवती सूत्र से अनेक तात्त्विक बातें होती हैं प्राप्त : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸

-आचार्यश्री ने पांच क्रियाओं का किया वर्णन, हिंसा से बचने की दी प्रेरणा

-स्वभाव से सरल और भद्र हो साधु, यह उसका विशेष गुण

-साध्वी धर्मयशाजी की स्मृतिसभा का हुआ आयोजन

15.09.2022, गुरुवार, छापर, चूरू (राजस्थान) :

छापर की धरा पर वर्ष 2022 का चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में उपस्थित होने वाले श्रद्धालुओं को नित नई प्रेरणा प्राप्त हो रही है। भगवती सूत्र के आधार पर प्रवचन कर रहे आचार्यश्री जीवनोपयोगी इतनी प्रेरणाएं प्रदान कर रहे हैं कि यदि आदमी उन प्रेरणाओं को अपने जीवन में उतार ले तो उसका वर्तमान जीवन ही नहीं, आगे के कई जन्म भी संवर सकते हैं।

गुरुवार को चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुआंे को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आगमों में राजगृह नामक नगर बहुत प्रसिद्ध है। इसका कई बार नामोल्लेख हुआ है। एक बार भगवान महावीर का वहां प्रवास हो रहा था। सभा लगी, लोगों ने उनके प्रवचन सुने और फिर वे लौट गए। भगवान महावीर का एक अंतेवासी शिष्य मण्डितपुत्र जो स्वभाव से सरल और भद्र थे। साधु को सरल और भद्र होना ही चाहिए। साधु छल-कपट से रहित और प्रकृति से भद्र होना चाहिएा। उन्होंने भगवान महावीर से प्रश्न किया किया कि भगवन! क्रिया कितनी होती है। भगवान महावीर ने पांच क्रियाओं का वर्णन करते हुए कहा कि दुनिया में हिंसा चलती है। एक देश दूसरे देश पर हमला कर देता है, समाज में भी हिंसा की बात होती है तो कभी परिवार में भी हिंसा की बात हो सकती है। हिंसा की पहले भीतर में वृत्ति होती है तब कोई प्राणी हिंसा की प्रवृत्ति करता है। जिसके भीतर अविरति होती है, वह हिंसा की प्रवृत्ति करता है। इन्द्रिय विषयामें रमे व्यक्ति हिंसा करता है तो वह कायिकी क्रिया होती है। हिंसा के लिए दुनिया में अनेकानेक साधन भी हैं, अस्त्र-शस्त्र भी हैं, वह आधिकारणिकी होती है। हिंसा करने के लिए आदमी के मन में उसके प्रति आक्रोश व द्वेष का भाव भी होना चाहिए। वह आक्रोश का भाव प्रादोषिकी क्रिया होती है। आदमी हिंसा के द्वारा किसी को जान से नहीं मारता, कष्ट देता है तो वह परितापनिकी क्रिया होती है और कोई किसी को जान से ही मार दे तो फिर वह प्राणातिपात क्रिया होती है।

बिना किसी क्रिया के दुःख नहीं होता। क्रिया कारण के साथ जुड़ी हुई है। इसलिए पहले क्रिया होती है, फिर वेदना होती है, क्योंकि कार्य और कारण का मानों संबंध होता है। क्रिया की अनुभूति है वेदना। इस प्रकार आदमी को हिंसा से बचने का प्रयास करें ताकि इस प्रकार की क्रियाओं के दोष से आदमी मुक्त रह सके। आचार्यश्री ने प्रवचन के दौरान साधु-साध्वियों को अनेक प्रेरणाएं भी प्रदान कीं। इस प्रकार भगवती सूत्र से अनेक तात्त्विक ज्ञान की बातें प्राप्त होती हैं। पन्नवणा भी तत्त्वज्ञान से संदर्भित आगम है। साधु-साध्वियों को आगमों का अध्ययन करने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी ने भी श्रद्धालुआंे को उद्बोधित किया। मंगल प्रवचन के उपरान्त आज के कार्यक्रम में साध्वी धर्मयशाजी की स्मृतिसभा का आयोजन हुआ। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने उनका संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना की। आचार्यश्री की प्रेरणा से चतुर्विध धर्मसंघ ने उनकी आत्मा के लिए चार लोगस्स का ध्यान किया। साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनिश्री, साध्वी जिनप्रभाजी, साध्वी शुभ्रयशाजी, साध्वी अमितप्रभाजी, साध्वी जगवत्सलाजी, साध्वी नयश्रीजी ने उद्गार व्यक्त किए। तेरापंथी सभा बीदासर के अध्यक्ष श्री विमल लिंगा व श्रीमती चंदा गिड़िया ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस दौरान साध्वी विनीतप्रभाजी ने आचार्यश्री से मासखमण की तपस्या का प्रत्याख्यान किया तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद और पाथेय प्रदान किया। तिरुवन्नामलै के स्व. वीडीएस गौतम सेठिया के परिजनों द्वारा उनके जीवन से संदर्भित पुस्तक पूज्यचरणों में लोकार्पित की। इस संदर्भ में उनके पुत्र गणेश गौरव सेठिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। पुस्तक की लेखक श्रीमती बिंदुराय सोनी ने भी अपनी भावना व्यक्त की। साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने भी उनके जीवन के विषय में बताया। आचार्यश्री ने इस पुस्तक के संदर्भ में मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।

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