Updated on 23.09.2022 15:48
मंगलकारी मंगलपाठ परम पूज्य गुरुदेव के मुखारविंद से (23-09-2022)आओ जी आओ थे तो थली देश में आओ..
कालूयशोविलास का राजस्थनी भाषा में
आख्यान परम पूज्य गुरुदेव के मुखारविंद से जरूर जरूर सुनें
कालूयशोविलास का राजस्थनी भाषा में
आख्यान परम पूज्य गुरुदेव के मुखारविंद से जरूर जरूर सुनें
आओ जी आओ थे तो थली देश में आओ..
हमारे मुख्य मुनि महावीर है...बालक रूप में...
हमारे मुख्य मुनि महावीर है...बालक रूप में...
आचार्यश्री महाप्रज्ञजी जब मुनि थे...मुनिश्री नथमलजी स्वामी ...
आचार्यश्री महाप्रज्ञजी जब मुनि थे...
Posted on 23.09.2022 09:17
🌸 महातपस्वी महाश्रमण की ज्ञानगंगा से आंतरिक ताप मिटा रहे श्रद्धालु 🌸-आचार्यश्री ने भगवती सूत्र के माध्यम से बालमुनियों की सेवा और उनके प्रशिक्षण की दी प्रेरणा
-कालूयशोविलास का संगान और आख्यान क्रम को आचार्यश्री ने किया प्रवर्धमान
23.09.2022, शुक्रवार, छापर, चूरू (राजस्थान) :
भारत के सबसे गर्म जिले के रूप में विख्यात राजस्थान प्रदेश का चूरू जिला। जहां सामान्य से अधिक तापमान प्रायः अक्टूबर महीने तक महसूस की जाती है, किन्तु इस बार इस जिले में हुई वर्षा ने जहां वर्षों का रिकार्ड तोड़ा है तो अच्छी बरसात से किसानों को ज्यादा पैदावार होने की उम्मीद भी जगी है। स्थानीय लोगों की मानें तो इस बार वर्षा और प्रायः बादलों से आच्छादित आसमान के कारण ताप भी कम महसूस हो रहा है। वहीं चूरू जिले के छापर कस्बे में वर्ष 2022 का चतुर्मास कर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की कल्याणवाणी से निरंतर प्रवाहित होने वाली ज्ञानगंगा के अभिसिंचन ने जनता के भीतरी तापों को भी मानों कम कर रही है। ऐसे में स्थानीय लोग तो चूरू जिले में हुए इस प्राकृतिक मौसम के परिवर्तन को आचार्यश्री के मंगल पदार्पण से भी जोड़ रहे हैं कि ऐसे महासंत के आगमन और उनकी मंगलवाणी के प्रभाव से ही इस बार यहां का बाहरी मौसम भी सुहावना और जनता का आंतरिक मन भी सुहावना बन रहा है।
जन-जन के आंतरिक ताप को अपनी मंगलवाणी से हरण करने के निरंतर प्रयासरत आचार्यश्री महाश्रमणजी छापर चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण से निरंतर आगमाधारित ज्ञानगंगा को प्रवाहित कर रहे हैं। शुक्रवार को आचार्यश्री ने भगवती सूत्र आधारित अपने मंगल प्रवचन के माध्यम से श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर का एक अंतेवासी शिष्य अतिमुक्तक कुमारश्रमण जो प्रकृति से उपशांत था। उसके कषाय आदि मंद थे। वह छह वर्ष की आयु में ही साधु बन गय था। वृत्तिकार ने इस घटना को आश्चर्य माना। कुमारश्रमण् बालमुनि के रूप में था तो बाहर निकला तो तेज वर्षा के कारण जलप्रवाह हो रहा था तो बालमुनि के मन में खेलने की इच्छा जागृत हो गई। बालमुनि बहते जल प्रवाह में अपने पात्र को नौका बनाया और खुद नाविक बनकर खेलने लगा। बड़े स्थविर मुनि ने देखा और वे भगवान महावीर के पास जाकर बोले कि आपका यह बाल शिष्य कितने जन्म के बाद मोक्ष को प्राप्त करेगा? भगवान महावीर ने कहा कि मेरा अंतेवासी यह बालमुनि शिष्य इसी जन्म के बाद मोक्ष में जाएगा। इसकी अवमानना मत करो, निंदा, गर्हा मत करो, जितना हो सके इसकी सेवा करो। इसकी परिचर्या में समय नियोजित करने का प्रयास करो।
यह बालमुनि का प्रसंग भगवतीसूत्र में आया है। बाल दीक्षा तो हमारे यहां आज भी होती है, लेकिन आठ वर्ष से ऊपर के बालकों की दीक्षा होती है। भगवान महावीर ने बालमुनि की सेवा की बात बताई है। बालमुनि को संभालना और उनकी सेवा करना भी एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। जैसे वृद्धों की सेवा का महत्त्व है तो बच्चों की सेवा का भी महत्त्व है। बालमुनि की सेवा हो, अच्छा शिक्षण, प्रशिक्षण मिले तो वह अच्छा तैयार हो सकता है। प्रतिभाशाली हो तो वह बालमुनि कितनी सेवा करने वाला हो सकता है। इसके माध्यम से भगवान महावीर ने निर्देश दिया कि इसकी सेवा करो। हमारे धर्मसंघ में बालमुनियों को संत को संभालते हैं, उनकी सेवा करते हैं। वह संयम में रह जाए और अच्छा अध्ययन कर ले तो वह विशेष सेवा करने वाला बन सकता है। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी जीवन के ग्यारहवें वर्ष में साधु बन गए थे। उन्हें परम पूज्य डालगणी का सान्निध्य मिला, मुनि तुलसी का योग मिला और उनकी प्रतिभा का इतना विकास हुआ कि वे मुनि अवस्था में धर्मसंघ में एक मान्य दार्शनिक और विद्वान संत हो गए। गुरुदेव तुलसी भी बारह वर्ष की अवस्था में साधु बने और कम उम्र ही धर्मसंघ के अनुशास्ता बन गए और उन्होंने लगभग साठ वर्ष तक कितने रूपों में धर्मसंघ की सेवा की। श्रीमज्जयाचार्य तो आज के इतिहास में आचार्यों में सबसे कम उम्र में दीक्षा लेने वाले थे। बाद में कितने श्रुतधर, आगमवेत्ता आचार्य बन गए। आचार्यश्री ने प्रसंगवश मुख्यमुनि और साध्वीवर्याजी के दीक्षा वर्षों को पूछा और उनकी हुई दीक्षा के संदर्भ में भी फरमाया। अंत में आचार्यश्री ने कालूयशोविलास के आख्यान व संगान के क्रम को भी आगे बढ़ाया।
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