🌸 सत्संगति हो सकता है जीवन का कल्याण : राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-ज्योतिचरण के चरणरज से पावन हुई वलसाड की धरा
-स्वागत में उमड़े श्रद्धालु, भव्य स्वागत जुलूस संग आचार्यश्री पहुंचे सरस्वती इण्टरनेशनल स्कूल
-वलसाडवासियों ने दी भावनाओं को अभिव्यक्ति, प्राप्त किया आशीर्वाद
15.05.2023, सोमवार, वलसाड (गुजरात) :
भारत की आर्थिक राजधानी की ओर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ सोमवार को गुजरात के वलसाड में पधारे तो वलसाडवासियों ने अपने आराध्य का भव्य स्वागत किया। स्वागत जुलूस और गूंजते जयघोष उनकी प्रसन्नता को अभिव्यक्त कर रहे थे। वर्तमान समय में आम की बागवानी के प्रसिद्ध वलसाड में आचार्यश्री के आगमन से आध्यात्मिकता का वातावरण छाया हुआ था।
सोमवार को प्रातःकाल युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने डुंगरी से मंगल प्रस्थान किया। मार्ग में श्रद्धालुओं को दर्शन देते और उन पर आशीषवृष्टि करते हुए लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री वलसाड पधारे तो अपने आराध्य के स्वागत को उत्सुक वलसाडवासियो ने बुलंद जयघोष के साथ अपने गुरुदेव का अभिनंदन किया। स्वागत जुलूस के रूप में जनता आचार्यश्री के चरणों का अनुगमन करने लगी। आचार्यश्री वलसाड में स्थित सरस्वती इण्टरनेशनल स्कूल के विशाल प्रांगण में पधारे।
स्कूल प्रांगण में आयोजित मंगल प्रवचन में उपस्थित वलसाड के श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने मंगल देशना प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में साधुओं की पर्युपासना करने का महत्त्व बताया गया है। सत्संगति का मानव जीवन में परम महत्त्व है। संतों की संगति हितकारी होती है। साधु में साधना की निर्मलता होती है, इसलिए साधु चलते-फिरते तीर्थ कहे जाते हैं। ऐसे शुद्ध साधुओं के मुख दर्शन से ही पाप झड़ते हैं।
साधुओं के मंगलवाणी को सुनने का अवसर मिल जाए तो वह भी जीवन में परिवर्तन लाने वाला बन सकता है। श्रवण से ज्ञान होता है। ज्ञान प्राप्त हो जाए तो फिर विशेष ज्ञान हो सकता है। ज्ञान प्राप्ति के आदमी त्याग-प्रत्याख्यान भी कर सकता है। फिर कभी तपस्या, साधना कर मनुष्य अपनी निर्मलता को बढ़ा सकता है और निर्वाण की ओर भी गति कर सकता है। इसलिए संतों का समागम दुर्लभ बताया गया है। जहां भी अवसर मिले आर्षवाणी, भवगतवाणी, गुरुवाणी, संतवाणी श्रवण करने का प्रयास करना चाहिए। साधु न भी हों तो सज्जनों की संगति करने का प्रयास करना चाहिए। इससे आदमी की चेतना की निर्मलता बनी रह सकती है।
आचार्यश्री वलसाड आगमन के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज वलसाड में आना हुआ है। सरस्वती इण्टरनेशनल स्कूल के प्रांगण में आना हुआ है। यहां के लोगों में, विद्यार्थियों ने शिक्षा का विकास हो, शक्ति का विकास हो, चेतना निर्मल हो।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी वलसाडवासियों को उत्प्रेरित किया। आचार्यश्री के स्वागत में स्वागत में सरस्वती इण्टरनेशनल स्कूल के चेयरमेन श्री गिरिश पंड्या, स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री धर्मचन्द बोल्या, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री आनंद दक, स्थानकवासी समाज के श्री प्रदीप कोठारी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल, तेरापंथ कन्या मण्डल, वलसाड तेरापंथ समाज ने अपने-अपने स्वागत गीत का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने गीत का संगान करते हुए अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति भी दी।
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-वलसाडवासियों ने दी भावनाओं को अभिव्यक्ति, प्राप्त किया आशीर्वाद
15.05.2023, सोमवार, वलसाड (गुजरात) :
भारत की आर्थिक राजधानी की ओर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ सोमवार को गुजरात के वलसाड में पधारे तो वलसाडवासियों ने अपने आराध्य का भव्य स्वागत किया। स्वागत जुलूस और गूंजते जयघोष उनकी प्रसन्नता को अभिव्यक्त कर रहे थे। वर्तमान समय में आम की बागवानी के प्रसिद्ध वलसाड में आचार्यश्री के आगमन से आध्यात्मिकता का वातावरण छाया हुआ था।
सोमवार को प्रातःकाल युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने डुंगरी से मंगल प्रस्थान किया। मार्ग में श्रद्धालुओं को दर्शन देते और उन पर आशीषवृष्टि करते हुए लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री वलसाड पधारे तो अपने आराध्य के स्वागत को उत्सुक वलसाडवासियो ने बुलंद जयघोष के साथ अपने गुरुदेव का अभिनंदन किया। स्वागत जुलूस के रूप में जनता आचार्यश्री के चरणों का अनुगमन करने लगी। आचार्यश्री वलसाड में स्थित सरस्वती इण्टरनेशनल स्कूल के विशाल प्रांगण में पधारे।
स्कूल प्रांगण में आयोजित मंगल प्रवचन में उपस्थित वलसाड के श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने मंगल देशना प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में साधुओं की पर्युपासना करने का महत्त्व बताया गया है। सत्संगति का मानव जीवन में परम महत्त्व है। संतों की संगति हितकारी होती है। साधु में साधना की निर्मलता होती है, इसलिए साधु चलते-फिरते तीर्थ कहे जाते हैं। ऐसे शुद्ध साधुओं के मुख दर्शन से ही पाप झड़ते हैं।
साधुओं के मंगलवाणी को सुनने का अवसर मिल जाए तो वह भी जीवन में परिवर्तन लाने वाला बन सकता है। श्रवण से ज्ञान होता है। ज्ञान प्राप्त हो जाए तो फिर विशेष ज्ञान हो सकता है। ज्ञान प्राप्ति के आदमी त्याग-प्रत्याख्यान भी कर सकता है। फिर कभी तपस्या, साधना कर मनुष्य अपनी निर्मलता को बढ़ा सकता है और निर्वाण की ओर भी गति कर सकता है। इसलिए संतों का समागम दुर्लभ बताया गया है। जहां भी अवसर मिले आर्षवाणी, भवगतवाणी, गुरुवाणी, संतवाणी श्रवण करने का प्रयास करना चाहिए। साधु न भी हों तो सज्जनों की संगति करने का प्रयास करना चाहिए। इससे आदमी की चेतना की निर्मलता बनी रह सकती है।
आचार्यश्री वलसाड आगमन के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज वलसाड में आना हुआ है। सरस्वती इण्टरनेशनल स्कूल के प्रांगण में आना हुआ है। यहां के लोगों में, विद्यार्थियों ने शिक्षा का विकास हो, शक्ति का विकास हो, चेतना निर्मल हो।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी वलसाडवासियों को उत्प्रेरित किया। आचार्यश्री के स्वागत में स्वागत में सरस्वती इण्टरनेशनल स्कूल के चेयरमेन श्री गिरिश पंड्या, स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री धर्मचन्द बोल्या, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री आनंद दक, स्थानकवासी समाज के श्री प्रदीप कोठारी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल, तेरापंथ कन्या मण्डल, वलसाड तेरापंथ समाज ने अपने-अपने स्वागत गीत का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने गीत का संगान करते हुए अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति भी दी।
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