Updated on 12.07.2023 21:18
अनावश्यक पंखा नहीं चले..अनावश्यक लाइट का उपयोग नहीं..अनावश्यक पंखा नहीं चले..अनावश्यक लाइट का उपयोग नहीं..
🌸 प्राकृतिक संसाधनों के अपव्यय से बचने करें प्रयास : महातपस्वी महाश्रमण 🌸
-अग्नि, जल, वायु, विद्युत आदि के अनावश्यक आरम्भ-समारम्भ से बचने को किया उत्प्रेरित
-भगवती सूत्र के आधार पर आचार्यश्री ने अनावश्यक हिंसा के अल्पीकरण को किया व्याख्यायित
-कालूयशोविलास के संगान और सरसशैली आख्यान का क्रम भी निरंतर जारी
12.07.2023, बुधवार, मीरा रोड (ईस्ट), मुम्बई (महाराष्ट्र) :
जैन आगम भगवती सूत्र द्वारा नित्य प्रति उपस्थित जनता को जीवन का सार और सन्मार्ग दिखाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को भवगती सूत्र में वर्णित प्राकृतिक संसाधनों के आरम्भ-समारम्भ में विवेक रखने और अग्नि, वायु, जल, विद्युत आदि के व्यय के प्रति अहिंसा की दृष्टि से सजग और जागरूक रहने की प्रेरणा प्रदान की। साथ ही आचार्यश्री ने कालूयशोविलास के आख्यान के क्रम को भी आगे बढ़ाया।
बुधवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर से प्रश्न किया गया कि दो लोग में से एक अग्नि को प्रज्जवलित करता है और दूसरा उसे बुझा देता है। जो अग्नि को जला रहा है वह ज्यादा पाप क्रिया करने वाला हुआ या जो बुझाता है, वह ज्यादा पाप क्रिया करने वाला हुआ ? इन दोनों में अल्प कर्म वाला कौन और महाकर्म वाला कौन है? भगवान महावीर ने उत्तर देते हुए कहा कि जो पुरुष अग्नि को प्रज्जवलित करता है, वह महत्तर कर्म, महत्तर क्रिया, महत्तर आश्रव और महत्तर वेदना वाला और जो पुरुष उसे बुझाता है, वह अल्पतर कर्म, अल्पतर क्रिया, अल्पतर आश्रव और अल्पतर वेदना वाला होता है। इसका कारण है कि जो अग्नि प्रज्जवलित करता है, बहुतर पृथ्वीकाय का समारम्भ करता है, बहुतर अपकाय का, अल्पतर तेजसकाय, बहुतर वायुकाय, बहुतर वनस्पतिकाय और बहुत त्रसकाय का समारम्भ करता है। इस प्रकार जो अग्नि को बुझाता है वह, अल्पतर कर्म, क्रिया, आश्रव व वेदना वाला होता है।
इस अग्नि के जलाने व बुझाने यह प्रेरणा ली जा सकती है कि आदमी को अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु, वनस्पति आदि की भी अनावश्यक हिंसा न हो, इसके लिए जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। अग्नि अगर एक घंटे अनावश्यक जलती है तो उसमें वनस्पतिकाय की हिंसा, पृथ्वीकाय की हिंसा, वायुकाय के जीवों की हिसा और तेजसकाय के जीवों की हिंसा भी होती है। आखिर अनावश्यक रूप में इतनी हिंसा क्यों की जाए। जो कार्य जीवन के लिए आवश्यक हो अथवा जितनी, अग्नि, पृथ्वी और जल आदि की अपेक्षा हो उतना तो ठीक हो सकता है, किन्तु अनावश्यक रूप में इतनी हिंसा करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। अग्नि जीवन का महत्त्वपूर्ण साधन है, इसलिए इसका समुचित और औचित्याुनसार प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिए। अनावश्यक आरम्भ-समारम्भ से बचने का प्रयास करना चाहिए। अब विद्युत की ही उपयोगिता की बात की जाए तो आदमी जब तक कमरे में बैठा है, कूलर, पंखा लाइट सबकुछ ऑन हो सकता है, किन्तु घर में नहीं रहने पर इन्हें बंद कर दिया जाए तो कितनी जागरूकता की बात हो सकती है। पानी का ही अनावश्यक प्रयोग न हो। जितना आवश्यक हो, उसका प्रयोग अन्यथा जल के अपव्यय से बचने का प्रयास करना चाहिए। इसके प्रति गृहस्थों को ज्यादा जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने सरसशैली में तेरापंथ धर्मसंघ के आठवें अनुशास्ता आचार्यश्री कालूगणी के जीवनवृत्त ‘कालूयशोविलास’ का सरसशैली में गायन ही नहीं, उसका आख्यान कर लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम में साध्वीवर्याजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री ने समुपस्थित इक्कीस रंगी में भाग लेने वाले तपस्वियों और अन्य तपस्यारत लोगों को भी पूज्यप्रवर ने तपस्या का प्रत्याख्यान कराया।
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-कालूयशोविलास के संगान और सरसशैली आख्यान का क्रम भी निरंतर जारी
12.07.2023, बुधवार, मीरा रोड (ईस्ट), मुम्बई (महाराष्ट्र) :
जैन आगम भगवती सूत्र द्वारा नित्य प्रति उपस्थित जनता को जीवन का सार और सन्मार्ग दिखाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को भवगती सूत्र में वर्णित प्राकृतिक संसाधनों के आरम्भ-समारम्भ में विवेक रखने और अग्नि, वायु, जल, विद्युत आदि के व्यय के प्रति अहिंसा की दृष्टि से सजग और जागरूक रहने की प्रेरणा प्रदान की। साथ ही आचार्यश्री ने कालूयशोविलास के आख्यान के क्रम को भी आगे बढ़ाया।
बुधवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर से प्रश्न किया गया कि दो लोग में से एक अग्नि को प्रज्जवलित करता है और दूसरा उसे बुझा देता है। जो अग्नि को जला रहा है वह ज्यादा पाप क्रिया करने वाला हुआ या जो बुझाता है, वह ज्यादा पाप क्रिया करने वाला हुआ ? इन दोनों में अल्प कर्म वाला कौन और महाकर्म वाला कौन है? भगवान महावीर ने उत्तर देते हुए कहा कि जो पुरुष अग्नि को प्रज्जवलित करता है, वह महत्तर कर्म, महत्तर क्रिया, महत्तर आश्रव और महत्तर वेदना वाला और जो पुरुष उसे बुझाता है, वह अल्पतर कर्म, अल्पतर क्रिया, अल्पतर आश्रव और अल्पतर वेदना वाला होता है। इसका कारण है कि जो अग्नि प्रज्जवलित करता है, बहुतर पृथ्वीकाय का समारम्भ करता है, बहुतर अपकाय का, अल्पतर तेजसकाय, बहुतर वायुकाय, बहुतर वनस्पतिकाय और बहुत त्रसकाय का समारम्भ करता है। इस प्रकार जो अग्नि को बुझाता है वह, अल्पतर कर्म, क्रिया, आश्रव व वेदना वाला होता है।
इस अग्नि के जलाने व बुझाने यह प्रेरणा ली जा सकती है कि आदमी को अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु, वनस्पति आदि की भी अनावश्यक हिंसा न हो, इसके लिए जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। अग्नि अगर एक घंटे अनावश्यक जलती है तो उसमें वनस्पतिकाय की हिंसा, पृथ्वीकाय की हिंसा, वायुकाय के जीवों की हिसा और तेजसकाय के जीवों की हिंसा भी होती है। आखिर अनावश्यक रूप में इतनी हिंसा क्यों की जाए। जो कार्य जीवन के लिए आवश्यक हो अथवा जितनी, अग्नि, पृथ्वी और जल आदि की अपेक्षा हो उतना तो ठीक हो सकता है, किन्तु अनावश्यक रूप में इतनी हिंसा करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। अग्नि जीवन का महत्त्वपूर्ण साधन है, इसलिए इसका समुचित और औचित्याुनसार प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिए। अनावश्यक आरम्भ-समारम्भ से बचने का प्रयास करना चाहिए। अब विद्युत की ही उपयोगिता की बात की जाए तो आदमी जब तक कमरे में बैठा है, कूलर, पंखा लाइट सबकुछ ऑन हो सकता है, किन्तु घर में नहीं रहने पर इन्हें बंद कर दिया जाए तो कितनी जागरूकता की बात हो सकती है। पानी का ही अनावश्यक प्रयोग न हो। जितना आवश्यक हो, उसका प्रयोग अन्यथा जल के अपव्यय से बचने का प्रयास करना चाहिए। इसके प्रति गृहस्थों को ज्यादा जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने सरसशैली में तेरापंथ धर्मसंघ के आठवें अनुशास्ता आचार्यश्री कालूगणी के जीवनवृत्त ‘कालूयशोविलास’ का सरसशैली में गायन ही नहीं, उसका आख्यान कर लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम में साध्वीवर्याजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री ने समुपस्थित इक्कीस रंगी में भाग लेने वाले तपस्वियों और अन्य तपस्यारत लोगों को भी पूज्यप्रवर ने तपस्या का प्रत्याख्यान कराया।
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