Posted on 07.08.2023 09:42
महासभा ने अच्छा यह कार्य शुरू किया है..तेरापंथी महासभा द्वारा आयोजित NRI समिट के संदर्भ में परम पूज्य गुरुदेव
महासभा ने अच्छा यह कार्य शुरू किया है..
🌸 विदेश में रहते हुए भी जीवन में बना रहे धर्म-ध्यान का प्रभाव : महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-दो दिवसीय एनआरआई समिट का भव्य आध्यात्मिक आगाज
-महातपस्वी महाश्रमण की सन्निधि में 16 देशों के 200 से अधिक श्रद्धालु हुए उपस्थित
-श्रुत और शील सम्पन्न बने रहने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
05.08.2023, शनिवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) :
जन-जन को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति रूपी मानवीय संदेश प्रदान करने वाले, जन-जन को सन्मार्ग दिखा मानवता काल्याण करने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महामानव, महातपस्वी, राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में शनिवार को 16 देशों के लगभग 200 से अधिक श्रद्धालुजन आध्यात्मिकता की खुराक लेने को उपस्थित थे। यह पहला अवसर था जब इतने देशों में रहने वाले श्रद्धालु एक साथ अपने आराध्य की अभिवंदना, अभ्यर्थना और आध्यात्मिक शांति की प्राप्ति के लिए उपस्थित हुए थे। अवसर था जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ की संस्था शिरोमणि तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में आयोजित दो दिवसीय एनआरआई समिट का। इस समिट में आस्ट्रेलिया, आस्ट्रिया, बेल्जियम, जर्मनी, हांगकांग, इण्डोनेशिया, कतर, सिंगापुर, स्विटजरलैण्ड, थाईलैण्ड, युनाइटेड किंगडम, युनाइटेड अरब अमिरात, युनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका, बांग्लादेश व श्रीलंका से श्रद्धालु आध्यात्मिकता की खुराक प्राप्त कर अपने जीवन को उन्नत बनाने को उपस्थित थे।
मायानगरी मुम्बई के नन्दनवन आज मानों अप्रवासी भारतीय श्रद्धालुओं से गुंजायमान हो रहा था। हर रोज तो अपने देश के हजारों श्रद्धालु दिखाई देते थे, किन्तु शनिवार को भारत के अलावा 16 देशों में रहने वाले अप्रवासी तेरापंथी श्रद्धालु संस्था शिरोमणि जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के एनआरआई समिट में भाग लेने तथा अपने देव, धर्म व गुरु की निकट सन्निधि को प्राप्त करने को पहुंच रहे थे। तीर्थंकर समवसरण के विशाल मंच पर भारतीय तिरंगे के साथ अन्य सोलह देशों के ध्वज व जैन ध्वज मानों उन अप्रवासी भारतीयों का प्रतीक बने हुए थे।
राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र आगम के आधार पर पावन पाथेय प्रदान करते हुए श्रुत और शील सम्पन्न बनने की प्रेरणा प्रदान की। तदुपरान्त समुपस्थित अप्रवासी श्रद्धालुओं को पावन संदेश प्रदान करते हुए कहा कि चार प्रकार की दृष्टियां बताई गई हैं- द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। इन चारों दृष्टियों पर ध्यान दिया जाए तो ज्ञान स्पष्ट हो सकता है। क्षेत्र की दृष्टि से देखें तो लोकाकाश और अलोकाकाश दो होते हैं। लोकाकाश में ही सारे प्राणी, पुद्गल आदि अवस्थित हैं। इनमें अनेक क्षेत्र ऐसे जहां मनुष्य निवास करते हैं। भारत से बाहर के देशों में साधु-संतों का इतना मेला और संख्या भारत की तुलना में ना के बराबर है। इस दृष्टि से देखें तो भारत तो मानों धर्म क्षेत्र है। तेरापंथी महासभा द्वारा इस समिट के द्वारा बाहर रहने वाले लोगों को भी अपने धर्म से जोड़ने रखने का बहुत सुन्दर प्रयास किया गया है। परम पूज्य गुरुदेव तुलसी के समय समण श्रेणी के रूप में एक तेरापंथ धर्मसंघ को एक अवदान मिला। जिसके माध्यम से समणियां विदेशों में जाकर वहां रहने वाले लोगों को धर्म, ध्यान आदि लाभान्वित कराती हैं और अब तो तकनीक आदि के माध्यम से गुरुओं की वाणी सुनने का भी अवसर मिल रहा है तो तकनीक से कुछ क्षेत्रीय निकटता हुई है, किन्तु एक टेलीविजन पर देखने और एक साक्षात देखने और अनुभव करने की बात अलग होती है। यह महासभा का बहुत सुन्दर उपक्रम है। इससे बाहर रहने वाले लोगों से मिलना हो रहा है। वर्तमान साध्वीप्रमुखा भी पहले समणी रूप में रहते हुए विदेश यात्रा भी की हैं। हमारे साध्वीवर्या भी समण श्रेणी में रही हुई हैं। मूल बात यह है कि विदेश में रहने पर भी जीवन में धर्म-ध्यान का प्रभाव बना रहना चाहिए। कोरी भौतिकता के युग में भी आदमी का दृष्टिकोण आध्यात्मिकता से परिपूर्ण रहे। कोरी भौतिकता चिंता, कुंठा में ले जा सकती है। भले दो दिन का ही आध्यात्मिक खुराक पाकर मन को धर्म से भावित बनाने का प्रयास होता रहे, बच्चों में भी धार्मिक प्रभावना होती रहे, मंगलकामना। समिट के संदर्भ में एनआरआई समिट के संयोजक व चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-मुम्बई के स्वागताध्यक्ष श्री सुरेन्द्र बोरड़ पटावरी, सह संयोजक श्री जयेश बड़ोला व महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने अपनी अभिव्यक्ति दी।
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में स्व. चन्दनमल बैद के परिवारजनों द्वारा ‘महक चंदन की’ पुस्तक का लोकार्पण किया। आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। दूसरी ओर कार्यक्रम के दौरान आचार्यश्री की संसारपक्षीय भाई श्री सुजानमल दूगड़ की धर्मपत्नी स्व. सोनादेवी दूगड़ के देहावसान के संदर्भ में कार्यक्रम हुआ। जिसमें उनकी संसारपक्षीय पुत्री साध्वी सुमतिप्रभाजी, संसारपक्षीया भतीजी साध्वी चारित्रयशाजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। श्री सूरज दूगड़, श्री महेन्द्र दूगड़, श्रीमती मधु दूगड़, मरुधर मित्र परिषद के अध्यक्ष श्री अशोक सिंघी, सरदारशहर नागरिक संघ के अध्यक्ष श्री विमल दूगड़, श्री श्रीचंद दूगड़, महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया, श्री सुमतिचंद गोठी, चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के प्रबन्धक श्री मनोहर गोखरू ने अपनी अभिव्यक्ति दी। दूगड़ परिवार की महिलाओं ने गीत का संगान किया। आचार्यश्री ने उपस्थित लोगों को आध्यात्मिक संबल प्रदान करते हुए पावन आशीर्वाद प्रदान किया।
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-श्रुत और शील सम्पन्न बने रहने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
05.08.2023, शनिवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) :
जन-जन को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति रूपी मानवीय संदेश प्रदान करने वाले, जन-जन को सन्मार्ग दिखा मानवता काल्याण करने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महामानव, महातपस्वी, राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में शनिवार को 16 देशों के लगभग 200 से अधिक श्रद्धालुजन आध्यात्मिकता की खुराक लेने को उपस्थित थे। यह पहला अवसर था जब इतने देशों में रहने वाले श्रद्धालु एक साथ अपने आराध्य की अभिवंदना, अभ्यर्थना और आध्यात्मिक शांति की प्राप्ति के लिए उपस्थित हुए थे। अवसर था जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ की संस्था शिरोमणि तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में आयोजित दो दिवसीय एनआरआई समिट का। इस समिट में आस्ट्रेलिया, आस्ट्रिया, बेल्जियम, जर्मनी, हांगकांग, इण्डोनेशिया, कतर, सिंगापुर, स्विटजरलैण्ड, थाईलैण्ड, युनाइटेड किंगडम, युनाइटेड अरब अमिरात, युनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका, बांग्लादेश व श्रीलंका से श्रद्धालु आध्यात्मिकता की खुराक प्राप्त कर अपने जीवन को उन्नत बनाने को उपस्थित थे।
मायानगरी मुम्बई के नन्दनवन आज मानों अप्रवासी भारतीय श्रद्धालुओं से गुंजायमान हो रहा था। हर रोज तो अपने देश के हजारों श्रद्धालु दिखाई देते थे, किन्तु शनिवार को भारत के अलावा 16 देशों में रहने वाले अप्रवासी तेरापंथी श्रद्धालु संस्था शिरोमणि जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के एनआरआई समिट में भाग लेने तथा अपने देव, धर्म व गुरु की निकट सन्निधि को प्राप्त करने को पहुंच रहे थे। तीर्थंकर समवसरण के विशाल मंच पर भारतीय तिरंगे के साथ अन्य सोलह देशों के ध्वज व जैन ध्वज मानों उन अप्रवासी भारतीयों का प्रतीक बने हुए थे।
राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र आगम के आधार पर पावन पाथेय प्रदान करते हुए श्रुत और शील सम्पन्न बनने की प्रेरणा प्रदान की। तदुपरान्त समुपस्थित अप्रवासी श्रद्धालुओं को पावन संदेश प्रदान करते हुए कहा कि चार प्रकार की दृष्टियां बताई गई हैं- द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। इन चारों दृष्टियों पर ध्यान दिया जाए तो ज्ञान स्पष्ट हो सकता है। क्षेत्र की दृष्टि से देखें तो लोकाकाश और अलोकाकाश दो होते हैं। लोकाकाश में ही सारे प्राणी, पुद्गल आदि अवस्थित हैं। इनमें अनेक क्षेत्र ऐसे जहां मनुष्य निवास करते हैं। भारत से बाहर के देशों में साधु-संतों का इतना मेला और संख्या भारत की तुलना में ना के बराबर है। इस दृष्टि से देखें तो भारत तो मानों धर्म क्षेत्र है। तेरापंथी महासभा द्वारा इस समिट के द्वारा बाहर रहने वाले लोगों को भी अपने धर्म से जोड़ने रखने का बहुत सुन्दर प्रयास किया गया है। परम पूज्य गुरुदेव तुलसी के समय समण श्रेणी के रूप में एक तेरापंथ धर्मसंघ को एक अवदान मिला। जिसके माध्यम से समणियां विदेशों में जाकर वहां रहने वाले लोगों को धर्म, ध्यान आदि लाभान्वित कराती हैं और अब तो तकनीक आदि के माध्यम से गुरुओं की वाणी सुनने का भी अवसर मिल रहा है तो तकनीक से कुछ क्षेत्रीय निकटता हुई है, किन्तु एक टेलीविजन पर देखने और एक साक्षात देखने और अनुभव करने की बात अलग होती है। यह महासभा का बहुत सुन्दर उपक्रम है। इससे बाहर रहने वाले लोगों से मिलना हो रहा है। वर्तमान साध्वीप्रमुखा भी पहले समणी रूप में रहते हुए विदेश यात्रा भी की हैं। हमारे साध्वीवर्या भी समण श्रेणी में रही हुई हैं। मूल बात यह है कि विदेश में रहने पर भी जीवन में धर्म-ध्यान का प्रभाव बना रहना चाहिए। कोरी भौतिकता के युग में भी आदमी का दृष्टिकोण आध्यात्मिकता से परिपूर्ण रहे। कोरी भौतिकता चिंता, कुंठा में ले जा सकती है। भले दो दिन का ही आध्यात्मिक खुराक पाकर मन को धर्म से भावित बनाने का प्रयास होता रहे, बच्चों में भी धार्मिक प्रभावना होती रहे, मंगलकामना। समिट के संदर्भ में एनआरआई समिट के संयोजक व चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-मुम्बई के स्वागताध्यक्ष श्री सुरेन्द्र बोरड़ पटावरी, सह संयोजक श्री जयेश बड़ोला व महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने अपनी अभिव्यक्ति दी।
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