Posted on 26.08.2023 18:41
आगम मंथन प्रतियोगिता स्वाध्याय का अच्छा माध्यम है। जैन विद्या परीक्षा ज्ञान संवर्धन का माध्यम है।जैन विश्व भारती और अधिक धार्मिक-आध्यात्मिक विकास करती रहे..
🌸 अध्यात्म जगत का मौलिक तत्त्व है आत्मा : अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-भगवती सूत्र में वर्णित आठ प्रकार की आत्माओं का आचार्यश्री ने किया विवेचन
-स्वाध्याय से होती है निर्जरा और चित्त बनता है निर्मल : शांतिदूत
24.08.2023, गुरुवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) :
मायानगरी मुम्बई में भले वर्षा का दौर मंद हो गया हो, लेकिन अड़सठ वर्षों बाद अध्यात्म की गंगा को लेकर देश की आर्थिक राजधानी में वर्ष 2023 का चतुर्मास करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के श्रीमुख से निरंतर अध्यात्मवर्षा हो रही है। इस आध्यात्मिक वर्षा से जन-जन मानस को आध्यात्मिक सिंचन प्राप्त हो रहा है। कलुषित भावों से बंजर हो रहे मन को इस आध्यात्मिक बरसात से मानों पुनः मानवता के गुणों से हरा-भरा कर दिया है। इसी का प्रभाव है कि मुख्य महानगर की एरिया से बाहर की ओर चतुर्मास स्थल होने के बाद भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हो रहे हैं और गुरुमुख से होने वाली इस आध्यात्मिक वर्षा से अपने मानस को अभिसिंचित कर रहे हैं।
गुरुवार को तीर्थंकर समवसरण उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं को अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र आगम के आधार पर पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि आत्मा कितने प्रकार की होती है? उत्तर दिया गया कि आत्मा आठ प्रकार की होती है। आत्मा अध्यात्म जगत का मौलिक तत्त्व है। आत्मा है तो अध्यात्मक का जगत टिका हुआ है। आत्मवाद धर्म-अध्यात्म जगत का महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। इसलिए आत्मा को अध्यात्म जगत का मौलिक तत्त्व कहा जा सकता है।
आत्मा के आठ प्रकार होते हैं- द्रव्य आत्मा, कषाय आत्मा, योग आत्मा, उपयोग आत्मा, ज्ञान आत्मा, दर्शन आत्मा, चरित्र आत्मा और वीर्य आत्मा। इन आठ प्रकार की आत्माओं का आचार्यश्री ने विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा कि पहली आत्मा द्रव्य आत्मा होती है। यह सबसे मूल आत्मा होती है। द्रव्य आत्मा होती है, तो प्राणी की प्रत्येक गतिविधियां संचालित होती हैं। इसे ऐसा भी कहा जा सकता है कि द्रव्य आत्मा ही सभी प्रकार की आत्माओं का मूल है। शेष सभी सात आत्माएं इस द्रव्य आत्मा पर ही निर्धारित हैं। द्रव्य आत्मा मूल है और शेष सात आत्माएं पर्याय हैं। दूसरी आत्मा कषाय आत्मा है। राग, द्वेष, घृणा, ईर्ष्या, लोभ, माया से घिरी हुई आत्मा कषाय आत्मा होती है। तीसरी आत्मा योग आत्मा होती है। चौथी आत्मा उपयोग आत्मा होती है। यह आत्मा सिद्ध और संसारी दोनों में होती है। चेतना के व्यापार के उपयोग कहा जाता है। इसलिए यह उपयोग आत्मा सभी में पाई जाती है। पांचवीं प्रकार की आत्मा ज्ञान आत्मा होती है। यह आत्मा सम्यक्त्वी में हेाती है, मिथ्यात्वी में नहीं। छठी आत्मा दर्शन आत्मा है। यह आत्मा सभी आत्मा होती है। सातवीं आत्मा चरित्र आत्मा होती है। यह आत्मा केवल साधुओं में होती है। साधु के सर्व सावद्य योगों का त्याग होता है। साधु चारित्र के पालक होते हैं। इसलिए साधु में चरित्र आत्मा है। तभी तो बोलचाल की भाषा में उन्हें चारित्रात्मा भी कहा जाता है। आठवीं आत्मा वीर्य आत्मा होती है। यह सिद्धों में नहीं होती। वीर्य अर्थात् बल वहीं होता है, जहां शरीर होती है। सिद्ध, बुद्ध हो चुकी आत्माओं के पास स्थूल शरीर नहीं होता, इसलिए वहां वीर्य आत्मा नहीं होती। इस प्रकार भगवती सूत्र में आठ प्रकार की आत्माओं का वर्णन किया गया है।
मनुष्य को आत्माओं के विषय में जानकर कषाय आत्मा का त्याग और शुभ योग आत्मा को रखने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के पश्चात कालूयशोविलास में पूज्य कालूगणी द्वारा मुनि तुलसी को अधिकार सौंपने की प्रेरणा देने, उन्हें आश्वासन देने आदि के प्रसंगों का रोचकशैली में वर्णन किया। साध्वीवर्याजी ने उपस्थित जनता को सम्बोधित किया।
जैन विश्व भारती के तत्त्वावधान में पूज्य सन्निधि में त्रिदिवसीय समण संस्कृति सकाय का 23वां दीक्षांत समारोह समायोजित किया जा रहा है। उसके तीसरे दिन आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उसका मंचीय उपक्रम हुआ। जैन विश्व भारती व समण संस्कृति संकाय के पदाधिकारियों द्वारा आचार्यश्री के समक्ष गीत की प्रस्तुति की गई। समण संस्कृति संकाय के विभागाध्यक्ष श्री मालचंद बैंगानी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। जैन विश्व भारती के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कीर्तिकुमारजी ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि स्वाध्याय के द्वारा कर्म की निर्जरा भी होती है और चित्त की निर्मलता का विकास भी हो सकता है। जैन विश्व भारती के अंतर्गत समण संस्कृति संकाय जैन विद्या का अच्छा ज्ञान कराने वाला है। आगम मंथन प्रतियोगिता स्वाध्याय का अच्छा माध्यम है। जैन विद्या परीक्षा ज्ञान संवर्धन का माध्यम है। इसके द्वारा लोग अपने ज्ञान का संवर्धन करे। जैन विश्व भारती और अधिक धार्मिक-आध्यात्मिक विकास करती रहे। आचार्यश्री से आशीष प्राप्त कर सभी संभागी उत्फुल्ल नजर आ रहे थे।
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24.08.2023, गुरुवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) :
मायानगरी मुम्बई में भले वर्षा का दौर मंद हो गया हो, लेकिन अड़सठ वर्षों बाद अध्यात्म की गंगा को लेकर देश की आर्थिक राजधानी में वर्ष 2023 का चतुर्मास करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के श्रीमुख से निरंतर अध्यात्मवर्षा हो रही है। इस आध्यात्मिक वर्षा से जन-जन मानस को आध्यात्मिक सिंचन प्राप्त हो रहा है। कलुषित भावों से बंजर हो रहे मन को इस आध्यात्मिक बरसात से मानों पुनः मानवता के गुणों से हरा-भरा कर दिया है। इसी का प्रभाव है कि मुख्य महानगर की एरिया से बाहर की ओर चतुर्मास स्थल होने के बाद भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हो रहे हैं और गुरुमुख से होने वाली इस आध्यात्मिक वर्षा से अपने मानस को अभिसिंचित कर रहे हैं।
गुरुवार को तीर्थंकर समवसरण उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं को अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र आगम के आधार पर पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि आत्मा कितने प्रकार की होती है? उत्तर दिया गया कि आत्मा आठ प्रकार की होती है। आत्मा अध्यात्म जगत का मौलिक तत्त्व है। आत्मा है तो अध्यात्मक का जगत टिका हुआ है। आत्मवाद धर्म-अध्यात्म जगत का महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। इसलिए आत्मा को अध्यात्म जगत का मौलिक तत्त्व कहा जा सकता है।
आत्मा के आठ प्रकार होते हैं- द्रव्य आत्मा, कषाय आत्मा, योग आत्मा, उपयोग आत्मा, ज्ञान आत्मा, दर्शन आत्मा, चरित्र आत्मा और वीर्य आत्मा। इन आठ प्रकार की आत्माओं का आचार्यश्री ने विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा कि पहली आत्मा द्रव्य आत्मा होती है। यह सबसे मूल आत्मा होती है। द्रव्य आत्मा होती है, तो प्राणी की प्रत्येक गतिविधियां संचालित होती हैं। इसे ऐसा भी कहा जा सकता है कि द्रव्य आत्मा ही सभी प्रकार की आत्माओं का मूल है। शेष सभी सात आत्माएं इस द्रव्य आत्मा पर ही निर्धारित हैं। द्रव्य आत्मा मूल है और शेष सात आत्माएं पर्याय हैं। दूसरी आत्मा कषाय आत्मा है। राग, द्वेष, घृणा, ईर्ष्या, लोभ, माया से घिरी हुई आत्मा कषाय आत्मा होती है। तीसरी आत्मा योग आत्मा होती है। चौथी आत्मा उपयोग आत्मा होती है। यह आत्मा सिद्ध और संसारी दोनों में होती है। चेतना के व्यापार के उपयोग कहा जाता है। इसलिए यह उपयोग आत्मा सभी में पाई जाती है। पांचवीं प्रकार की आत्मा ज्ञान आत्मा होती है। यह आत्मा सम्यक्त्वी में हेाती है, मिथ्यात्वी में नहीं। छठी आत्मा दर्शन आत्मा है। यह आत्मा सभी आत्मा होती है। सातवीं आत्मा चरित्र आत्मा होती है। यह आत्मा केवल साधुओं में होती है। साधु के सर्व सावद्य योगों का त्याग होता है। साधु चारित्र के पालक होते हैं। इसलिए साधु में चरित्र आत्मा है। तभी तो बोलचाल की भाषा में उन्हें चारित्रात्मा भी कहा जाता है। आठवीं आत्मा वीर्य आत्मा होती है। यह सिद्धों में नहीं होती। वीर्य अर्थात् बल वहीं होता है, जहां शरीर होती है। सिद्ध, बुद्ध हो चुकी आत्माओं के पास स्थूल शरीर नहीं होता, इसलिए वहां वीर्य आत्मा नहीं होती। इस प्रकार भगवती सूत्र में आठ प्रकार की आत्माओं का वर्णन किया गया है।
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