01.09.2023: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 01.09.2023
Updated: 01.09.2023

Updated on 01.09.2023 20:42

"बेटी तेरापंथ की"

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Posted on 01.09.2023 13:02

दूसरों की संपत्ति हड़पने का लोभ

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🌸 दुःख से डरता है प्राणी : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸

-दुःख में भी शांति, समता व श्रद्धा को बनाए रखने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित

-कालूयशोविलास में आचार्यश्री ने कालूगणी के जीवनकाल की अंतिम घड़ी का किया वर्णन

01.09.2023, शुक्रवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) :

आर्थिक राजधानी मुम्बई, पश्चिमी देशों के लिए प्रवेश द्वार मुम्बई का मौसम वर्तमान में सामान्य-सा बना हुआ है। तीव्र धार की वर्षा को कौन कहे अब तो कई दिनों तक रिमझिम बूंदें भी नहीं आतीं। हां बादल अभी आसमान में सूर्य के साथ मानों लुका-छीपी का खेल खेल रहे हैं, इस खेल में कभी धूप तो कभी छाया का क्रम बना रहता है। दूसरी ओर मायानगरी में आध्यात्मिकता की अलख जगाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की अमृतवाणी की वर्षा निरंतर जारी है। यह वर्षा जन-जन के मानस पटल को अभिसिंचन प्रदान कर रही है।

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की इस अमृतवर्षा का लाभ उठाने के लिए मुम्बई के हर वर्ग, समाज की जनता ही नहीं, दूर-दूर क्षेत्रों में निवास करने वाले श्रद्धालु भी लगातार पहुंच रहे हैं। शुक्रवार को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि सभी प्राणी जीव होते हैं। अनंत अतीत में एक जीव ने अनंत बार जीवन-मरण कर लिया है। यह मानों कोई अनादिकाल से चली आ रही परंपरा है। जीव हमेशा थे, हैं और रहेंगे। नरक गति, तीर्यंच गति, मनुष्य गति, देवगति और मोक्ष गति भी शाश्वत है। भव्य और अभव्य जीव भी शाश्वत होते हैं। प्रश्न किया गया कि जीव विभिन्न गतियों में दुःखी, अदुःखी होता है क्या? भगवान महावीर ने कहां हां, ऐसा होता है। जीव कभी दुःखी तो कभी अदुःखी भी हो सकता है। एक ही जीवनकाल में आदमी कभी दुःखी तो कभी सुखी भी बन जाता है। कभी बहुत सुखद स्थिति बनती है तो कभी दुःखद समय भी आ जाता है।

परिवार में कलह नहीं, सौहार्दपूर्ण वातावरण हो, किसी को बीमारी न हो, धन की भी कमी न हो तो आदमी अपने जीवन में कितने सुख का अनुभव कर सकता है। दूसरी ओर परिवार में कलह, परस्पर द्वेष की भावना, परिवार के सदस्यों का बीमार होना आदि-आदि प्रतिकूलताएं आ जाती हैं तो आदमी कितना दुःखी हो जाता है। भगवान महावीर ने एक बार अपने शिष्यों से प्रश्न किया कि प्राणी को किससे डरते हैं? शिष्यों द्वारा उत्तर नहीं प्राप्त होने पर उन्होंने उद्बोध प्रदान करते हुए कहा कि सभी प्राणी दुःख से डरते हैं। दुःख में आदमी भगवान को भी याद करते हैं। आदमी को सुख के समय में भी भगवान को नहीं भूलना चाहिए। आदमी को यह ध्यान देना चाहिए कि समस्या और कठिनाई तो आ भी जाए, किन्तु मनोबल, समता, शांति और सौहार्द का भाव बना रहे। सुख आने पर कितने-कितने लोग आते हैं, मिलते हैं और दुःख और गरीबी में सिवाय श्वास के कोई आता जाता नहीं है। ऐसे में आदमी के भीतर समता, शांति बनी रहती है तो दुःख का समय गुजर जाता है। जितना संभव हो सके, आदमी को दूसरे का सहयोग भी करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में वियोग की स्थिति आए तो भी आंतरिक सुख बना रहे। परिस्थितियां कैसी भी हो धैर्य धारण करने का प्रयास होना चाहिए।

आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त कालूयशोविलास के माध्यम से पूज्य कालूगणी की रात्रि में हुई विशेष परिस्थिति और युवाचार्यश्री तुलसी को दी जाने वाली प्रेरणा का सरसशैली में वर्णन किया। एक अगस्त से 31 अगस्त तक चलने वाले सपाद कोटि जप अनुष्ठान की पूर्णता पर आचार्यश्री ने इसमें सम्मिलित लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान की।

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