12.09.2023: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 12.09.2023
Updated: 13.09.2023

Updated on 13.09.2023 11:54

खाद्य संयम दिवस पर साध्वीप्रमुखाजी का उद्बोधन

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आत्मा में निवास करने का विशेष अवसर

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Posted on 12.09.2023 15:36

🌸 पर्युषण महापर्व : महातपस्वी महाश्रमण की मंगल सन्निधि में आध्यात्मिक आगाज 🌸

-विशेष धर्माराधना का समय है पर्युषण महापर्व : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

-प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में हुआ समायोजित, आचार्यश्री ने दी प्रेरणा

-साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनिश्री के भी हुए उद्बोधन साध्वीवर्याजी ने गीत का किया संगान

-मुमुक्षुओं सहित अन्य श्रावक-श्राविकाओं ने स्वीकार की चाय-कॉफी के त्याग का संकल्प

12.09.2023, मंगलवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) :

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में मंगलवार को जैन धर्म के महापर्व पर्युषण का भव्य एवं आध्यात्मिक रूप में आगाज का हुआ। त्याग, संयम, तप के द्वारा अपने जीवन को आध्यात्मिक ऊर्जा से विशेष से भावित बनाने वाले इस अष्टदिवसीय महापर्व का प्रथम दिवस खाद्य संयम दिवस के रूप में समायोजित हुआ। इस महापर्व में शामिल होने के लिए मुम्बईवासियों के लिए अलावा देश-विदेश भी बड़ी संख्या में धर्मार्थी श्रद्धालु पहुंचे हुए हैं।

मुम्बई के नन्दनवन में पर्युषण महापर्व के प्रथम का भव्य शुभारम्भ तीर्थंकर समवसरण के विशाल मंच पर विराजमान महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने गीत का संगान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने लोगों को पर्युषण महापर्व के महत्त्व को समझाया। साध्वी सुरभिप्रभाजी आदि साध्वियों ने खाद्य संयम दिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया।

साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने जनता को खाद्य संयम दिवस के संदर्भ में उद्बोधित किया। तदुपरान्त जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के महासूर्य युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पर्युषण महापर्व के शुभारम्भ पर पावन देशना देते हुए कहा कि परम पूजनीय, परम वंदनीय वर्तमान अवसर्पिणी के अंतिम 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर हुए। उन्होंने वीतरागता और केवलज्ञान को प्राप्त किया, उसके लिए उन्होंने महावीर के भव में साधना की तो उन्होंने अपने पूर्व भवों में भी साधना की थी।

पर्युषण महापर्व का प्रारम्भ हो गया है। यह अष्टदिवसीय साधना, धर्माराधना व आत्माराधना का समय है। अध्यात्म आसेवन का यह विशेष समय है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ की परंपरा में पर्युषण पर्व का क्रम चलता है। वर्ष में एक बार यह आराधना काल आता है। इसमें चतुर्विध धर्मसंघ विशेष आराधना के क्रम से जुड़ता है। गृहस्थों को इस पर्वाराधना में गृहकार्यों को गौण कर अध्यात्म में प्रवृत्त होना चाहिए। जितना संभव हो सके, वाहन के प्रयोग से बचने का प्रयास हो। आठ दिनों तक अयथार्थ बातों से बचने का प्रयास हो। गृहस्थ अपनी वाणी का संयम करे और आहार का भी संयम करने का प्रयास करना चाहिए। धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन, स्वाध्याय, मनन के द्वारा अपने चित्त की निर्मलता को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। पर्युषण पर्व में जितना संभव हो सके, एक से एक समय सामायिक तो अवश्य करने का प्रयास हो। इन आठ दिनों का समय विशेष रूप में धर्माराधना में लगाने का प्रयास करना चाहिए।

पर्युषण महापर्व का प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में आयोजित होता है। इस संदर्भ शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि खाद्य संयम का जीवंत रूप है उपवास कर लेना। कितने गृहस्थ इस दिन साथ में पौषध भी स्वीकार कर लेते हैं। यह एक प्रेरणा का दिन है। अपनी जीवनशैली के साथ भी खाद्य संयम जुड़ जाए, तो कितना अच्छा हो सकता है। द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव को देखते हुए खाद्य का संयम सबके लिए अलग-अलग हो सकता है। उपवास, बेला, तेला आदि बड़ी-बड़ी तपस्या ही नहीं, कितना खाना, क्या खाना और क्या नहीं खाना और भूख से कम खाना भी खाद्य संयम होता है। कई-कई तो ऐसे भी होते हैं कि वर्षीतप करते-करते अन्य तपस्याएं भी कर लेते हैं। कई लोग कितनी बड़ी-बड़ी तपस्याएं कर लेते हैं। हमारे इस मुम्बई चतुर्मास में भी चारित्रात्माओं व श्रावक-श्राविकाओं द्वारा कितनी-कितनी तपस्याएं हो चुकी हैं और कितनी तपस्वी अभी भी प्रवर्धमान हैं। ऐसे तपस्वियों को साधुवाद है।

भोजन के समय बोलने का अल्पीकरण हो। आचार्यश्री ने अपने उद्बोधन के द्वारा चाय और कॉफी का त्याग करने की प्रेरणा प्रदान करते हुए मुमुक्षु अवस्था से ही ऐसे त्याग स्वीकार करने की बात फरमाई तो आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित कुछ मुमुक्षुओं ने चाय, कॉफी के त्याग कराने का आग्रह किया तो आचार्यश्री ने उन्हें पांच साल तक के लिए चाय आदि का त्याग करा दिया। फिर तो क्या श्रावक-श्राविका समाज में से भी कई लोग अपने-अपने स्थान पर चाय-काफी के त्याग के लिए खड़े हो गए। आचार्यश्री ने सभी को उनकी धारणाओं के अनुसार त्याग का संकल्प कराया। यह मानों महातपस्वी के वचनों का प्रभाव और श्रद्धालुओं की अपने आराध्य के प्रति अटूट निष्ठा के भावों को दर्शाने वाला था। कार्यक्रम के अंत में अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी धारणा के अनुसार तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया।

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पर्युषण महापर्व पर परम पूज्य गुरुदेव की विशेष प्रेरणा

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