27.09.2023: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 27.09.2023
Updated: 27.09.2023

Updated on 27.09.2023 17:52

संघगान

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Updated on 27.09.2023 16:06

घोर तपस्वी भिक्षु स्वामी

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Posted on 27.09.2023 14:27

🌸 भिक्षु के 11वें पट्टधर की मंगल सन्निधि में 221वें भिक्षु चरमोत्सव का भव्य आयोजन 🌸

-साहस, बुद्धि, श्रद्धा व आचार का संगम था भिक्षु स्वामी का जीवन : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

-इस अवसर पर आचार्यश्री ने स्वरचित गीत का भी किया संगान

-साध्वीप्रमुखाजी व मुख्यमुनिश्री ने भी दी अपनी भावांजलि

-चतुर्विध धर्मसंघ ने अपने आद्य आचार्य के स्मृति में की भावपूर्ण अभिवंदना

27.09.2023, बुधवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) :

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के संस्थापक, प्रणेता व प्रथम आचार्यश्री भिक्षु स्वामी के 221वें चरमोत्सव को भिक्षु के परंपर पट्टधर, ग्यारहवें अनुशास्ता, मानवता के मसीहा, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में मायानगरी मुम्बई के नन्दनवन में बुधवार को भव्य एवं आध्यात्मिक गरिमापूर्ण वातावरण में आयोजित हुआ। वर्तमान अनुशास्ता की मंगल सन्निधि में चतुर्विध धर्मसंघ ने अपने प्रथम अनुशास्ता के प्रति अपनी भावपूर्ण विनयांजलि अर्पित की। चारित्रात्माओं को कौन कहे, सैंकड़ों-सैंकड़ों श्रावक-श्राविकाओं ने भी उपवास, जप आदि के माध्यम से भिक्षु के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन व उनकी निकट उपासना में अपने प्रथम अनुशास्ता के प्रति अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी।

बुधवार को नन्दवन में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में 221वें भिक्षु चरमोत्सव का भव्य व आध्यात्मिक आयोजन तीर्थंकर समवसरण में किया गया। प्रातः नौ बजे प्रारम्भ हुए इस आयोजन का शुभारम्भ आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। सबसे पहले मुम्बई महानगर में कई उपनगरों में संचालित जैन श्वेताम्बर तेरापंथ युवक परिषद के सदस्यों ने गीत का संगान किया। गुरुकुलवासी साध्वीवृंद ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति के माध्यम से अपने आद्य प्रणेता की अभिवंदना की। बहिर्विहारी और वर्तमान में गुरुकुलवासी साध्वीवृंद ने भी गीत का संगान कर आचार्यश्री भिक्षु को नमन किया।

साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उपस्थित जनता को महामना आचार्यश्री भिक्षु के जीवन के अनेक प्रसंगों को सुनाया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने भी भिक्षु स्वामी के चरमोत्सव के अवसर पर उपस्थित श्रद्धालुओं को उद्बोधित किया। गुरुकुलवासी बाल व युवा संतों ने भक्तिमय गीत के द्वारा अपने प्रथम आराध्य के प्रति अपनी प्रणति अर्पित की।

आचार्यश्री भिक्षु के परंपर पट्टधर, तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने चतुर्विध धर्मसंघ को चरमोत्सव के अवसर पर पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अहिंसा, संयम और तप के सिवाय दूसरा कोई धर्म नहीं होता। इन तीनों में धर्म को समाविष्ट कर दिया गया है और जिसका मन सदैव धर्म में रमा रहता है, देवता भी उसे नमस्कार करते हैं। धर्म को सर्वोत्कृष्ट मंगल कहा गया है। अर्हत, सिद्ध और साधु को भी मंगल कहा गया है। इस संदर्भ में मेरा विचार है कि धर्म कारण रूप में मंगल है और अर्हत्, सिद्ध और साधु कार्य रूप में मंगल हैं। आज भाद्रव शुक्ला त्रयोदशी है। तेरापंथ के प्रणेता, आद्य परम पूजनीय, परम वंदनीय आचार्यश्री भिक्षु के महाप्रयाण का दिन है। यह उनके जीवन का चरम दिन है। दुनिया में मनुष्य तो बहुत जन्म लेते हैं, किन्तु कोई-कोई पुरुष महापुरुष बन जाते हैं और वे परम पूज्य भी बन जाते हैं। महामना आचार्यश्री भिक्षु का जीवनकाल साधिक 77 वर्षों का रहा। वे गृहस्थ जीवन में भी रहे। उन्होंने अपने जीवन में दो बार अभिनिष्क्रमण किया। पहली बार में वे गृहस्थावस्था का त्याग कर साधु जीवन स्वीकार किया। दूसरी बार सच्चाई की खोज व उस पथ पर आगे बढ़ने के लिए अभिनिष्क्रमण किया। कई बार सच्चाई सहज भी होती है तो कई सच्चाई श्रम साध्य भी होती है। सच्चाई को कभी प्रकट किया जा सकता है और कभी बार सच्चाई को प्रकट भी नहीं किया जा सकता।

परम पूजनीय आचार्यश्री भिक्षु में साहस था, प्रतिभा थी और अच्छी कोटि की बुद्धि भी थी। वे किसी बात का खण्डन कारण के साथ करते थे। उनमें जिनवाणी के प्रति विशेष श्रद्धा का भाव था। यह भाव भिखणजी स्वामी के ग्रंथों को देखने से भी पता चल सकता है। केवलियों के प्रति समर्पण का भाव था। साहस, बुद्धि, श्रद्धा और आचार का संगम उनके जीवन में प्रतीत हो रहा है। आज के दिन उनका महाप्रयाण सिरियारी में हुआ था। उनका जन्म स्थान कंटालिया और उनका महाप्रयाण कुछ ही दूरी पर स्थित सिरियारी के पक्की हाट में चतुर्मास के दौरान हुआ था। उनके द्वारा राजस्थानी भाषा के ग्रंथ रूपी सागर में डुबकी लगाई जाए तो कितनी ज्ञानराशि प्राप्त की जा सकती है।

समय-समय पर ऐसे विशिष्ट महापुरुष धरती पर आते हैं और सन्मार्ग दिखा जाते हैं। भिक्षु स्वामी को भारमलजी जैसे योग्य उत्तराधिकारी भी प्राप्त हुए। भाद्रव शुक्ला द्वादशी के दिन उन्होंने तिविहार अनशन किया। तदुपरान्त भाद्रव शुक्ला त्रयोदशी को संथारे में महाप्रयाण हो गया। आज हमारे धर्मसंघ के आद्य अनुशास्ता का चरमोत्सव है। आज के अवसर पर आचार्यश्री ने स्वरचित गीत ‘चरमोत्सव दिन स्वामीजी का आज’ गीत का संगान भी किया। आचार्यश्री ने स्वामी के चरणों में कोटि-कोटि वंदन करते हुए उनके जीवन से धर्म की ज्योति प्राप्त करने की प्रेरणा दी।

अंत में आचार्यश्री पट्ट से नीचे उतरकर खड़े हुए तो चतुर्विध धर्मसंघ भी अपने आराध्य का अनुगमन करते हुए खड़ा हुआ। आचार्यश्री के साथ सभी संघगान किया। संघगान के साथ ही कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

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