16.11.2023: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 16.11.2023
Updated: 17.11.2023

Updated on 17.11.2023 07:59

अणुव्रत लेखक सम्मेलन ...लेखकों को गुरुदेव की पावन प्रेरणा आशीर्वाद

अणुव्रत लेखक सम्मेलन

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Posted on 16.11.2023 15:56

🌸 इन्द्रिय प्रति संलीनता की साधना जीवन के लिए कल्याणकारी : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸

-महातपस्वी की मंगल सन्निधि में आयोजित हुआ अणुव्रत लेखक सम्मेलन

-लेख से लोगों को मिले प्रेरणा तो लेखनी हो सकती है परोपकारी : आचार्यश्री महाश्रमण

-आचार्यश्री की बात व्यवहार में उतरे तो जीवन हो सुन्दर : वरिष्ठ संपादक कै. सुन्दरचंद ठाकुर

16.11.2023, गुरुवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) :

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में नियमित रूप से आने वाले श्रद्धालुओं का तांता तो लगा ही रहता है, किन्तु समय-समय पर विभिन्न आयोजनों अथवा यथानुकूलता समाज के हर वर्ग, विचार, भाषा आदि के लोग भी आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पहुंचते हैं। चाहे को राजनैतिक व्यक्ति हो, फिल्मी जगत से हो, प्रशासनिक जगत से हो, सुरक्षा के क्षेत्र हो, उद्योग जगत से हो, शिक्षा, चिकित्सा अथवा विज्ञान के क्षेत्र से हो, सभी को आध्यात्मिक गुरु से ज्ञान प्राप्ति की अभिलाषा होती है।

गुरुवार को आध्यात्मिक अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के तत्त्वावधान में आयोजित अणुव्रत लेखक सम्मेलन में भाग लेने व आचार्यश्री की मंगल सन्निधि को प्राप्त करने के लिए देश भर से बड़ी संख्या में लेखक व साहित्यकार उपस्थित हुए। उन्होंने आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगलवाणी का श्रवण करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया तो मानों वे भी किसी महाश्रमण के अनुयायी से प्रतीत हो रहे थे।

गुरुवार को प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में तीर्थंकर समवसरण में श्रद्धालुओं की उपस्थिति के साथ-साथ देश भर से पहुंचे लेखक, वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार व साहित्यकार आदि भी उपस्थित थे। अणुव्रत अनुशास्ता, अणुव्रत यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि बाह्य तपस्या का एक प्रकार बताया गया है इन्द्रिय प्रति संलीनता अर्थात प्राप्त पांचों ज्ञानेन्द्रियों का संयम करना। वाणी का संयम आदमी मौन होकर कर सकता है, किन्तु कान का संयम करना थोड़ा कठिन हो सकता है। इसके लिए आदमी एकांत में रह सकता है, सुनने का प्रयास नहीं कर सकता है, कान को किसी प्रकार बंदकर भी अनावश्यक सुनने से बच सकता है और प्रिय और अप्रिय सुनने के बाद भी राग-द्वेष से बचकर संयम कर सकता है। आंखों को बंद कर, अथवा पट्टी अथवा अपने हाथों को आंखों के आगे कर अपनी दृष्टि का संयम किया जा सकता है। घ्राण के संयम का भी प्रयास किया जा सकता है। इसी प्रकार रसनेन्द्रिय का संयम भी करने का प्रयास करना चाहिए। बहुत ज्यादा रस ले-लेकर खाने से बचने का प्रयास किया जा सकता है। स्पर्शनेन्द्रिय से बचने के लिए स्पर्श से बचने का प्रयास किया जा सकता है। इस प्रकार आदमी अपने जीवन में इन्द्रियों का संयम कर अपने जीवन को कल्याणकारी बना सकता है।

आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी द्वारा आयोजित द्विदिवसीय अणुव्रत लेखक सम्मेलन का शुभारम्भ हुआ। इस संदर्भ में सोसायटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर ने अपनी अभिव्यक्ति दी। इस सम्मेलन में भाग लेने को पहुंचे गांधी शांति प्रतिष्ठान-दिल्ली के अध्यक्ष व लेखक श्री कुमार प्रशांत ने अपनी अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि दुनिया में इंसान तो बहुत मिल सकते हैं, किन्तु इंसानियत की कमी हो गई है। आचार्यश्री महाश्रमणजी की प्रेरणा लोगों में इंसानिय को जगा रही है। मेरा सौभाग्य है जो यहां उपस्थित हुआ, इसके लिए मैं आचार्यश्री के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। टाइम्स ग्रुप के वरिष्ठ संपादक कैप्टन सुन्दरचंद ठाकुर ने कहा कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में उपस्थित होने का दूसरी बार सौभाग्य प्राप्त हुआ है। आचार्यश्री की वाणी को यदि आदमी अपने जीवन व्यवहार में उतार ले तो जीवन में आनंद बढ़ जाएगा। कुछ दिन पूर्व अखबार में छपी आचार्यश्री की वाणी को पढ़कर मन आह्लादित हो गया। साधु-संतों की वाणी का श्रवण कर और उसे अपने जीवन में उतारने से हम सभी का जीवन श्रेष्ठ हो सकता है। मैं ऐसी महान विभूति को नमन करता हूं।

आचार्यश्री ने उपस्थित लेखकों को विशेष आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि वर्तमान समय में अणुव्रत आन्दोलन का 75वां वर्ष चल रहा है, जिसे अमृत महोत्सव वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। अणुव्रत के माध्यम से सामान्य व्यक्ति को कुछ ऊपर उठाने का प्रयास किया गया है। कोई महाव्रत के शिखरों का आरोहण न भी कर सके तो अणुव्रतों के पालन से अपने जीवन के स्तर को ऊंचा उठा सकता है। लेखक यदि अपनी लेखनी से लोगों को अच्छी प्रेरणा दे सके तो लेखनी भी परोपकारी बन सकती है। आचार्यश्री की मंगल प्रेरणा को प्राप्त कर उपस्थित लेखक, पत्रकार व साहित्यकार आदि अभिभूत नजर आ रहे थे।

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