Posted on 25.01.2024 00:59
नैतिकता की सुर सरिता में जन-जन मन पावन हो। संयममय जीवन हो ।।🌸 बदलापूर को आध्यात्मिकता से भावित करने पधारे अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-बदलापूरवासियों ने अपने आराध्य का किया भावभीना स्वागत
-स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री पहुंचे रैनी रिसॉर्ट एण्ड वाटर पार्क
-अहिंसा रूपी धर्म व नीति का हो सम्यक् पालन : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
24.01.2024, बुधवार, बदलापूर, मुम्बई (महाराष्ट्र) :
जन-जन के मानस को आध्यात्मिक प्रेरणाओं से बदलने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी बुधवार को अपनी अणुव्रत यात्रा के साथ बदलापूर में पधारे तो बदलापूर का वातावरण ही बदल गया। उल्हास नदी के तट पर बसे बदलापूर में बुधवार को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के शुभागमन का उत्साह देखते ही बन रहा था। प्रातःकाल सूर्योदय के कुछ समय पश्चात आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए उल्हासनगर से मंगल प्रस्थान किया। जन-जन को आशीर्वाद बांटते हुए आचार्यश्री ने जैसे ही बदलापूर में मंगल प्रवेश किया, श्रद्धालुओं ने बुलंद जयघोष से अपने आराध्य का अभिनंदन किया। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री बदलापूर में स्थित रैनी रिसॉर्ट एण्ड वाटर पार्क परिसर में बने रॉयल जिमखाना एण्ड क्लब के बिल्डिंग में पधारे।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बदलापूर के कृष्णाई हॉल में उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि अहिंसा एक धर्म है। साधुओं के लिए तो अहिंसा एक महाव्रत भी है। अहिंसा का पालन करना साधुओं का आध्यात्मिक धर्म भी है। पुनर्जन्म, आत्मवाद, आस्तिकवाद को मानने वाले के लिए अहिंसा धर्म है। अहिंसा एक नीति भी है। राज्य, देश व विश्व के लिए अहिंसा एक नीति है। राजनीति में किसी भी जाति, किसी भी धर्म के व्यक्ति को चुनाव जीतकर उच्च पद पर आसीन होने की बात भी अहिंसा से जुड़ी हुई है।
अहिंसा धर्म भी है और राष्ट्रीय नीति भी है। चलाकर किसी पर आक्रमण नहीं करना, अहिंसा की नीति है। परिवार की नीति में अहिंसा हो। नगर में शांति बनी रहे, कानून व्यवस्था बनी रहे। जो नियमों को नहीं मानता, किसी को कष्ट देता है तो फिर प्रशासन दण्ड देती है तो वह कार्य भी नीतिगत ही होता है। शांति की स्थापना के लिए प्रशासन द्वारा यदि अशांति फैलाने वालों पर यदि लाठी का प्रयोग करे तो वहां पर साध्य अच्छा है। साधु को कोई कष्ट भी दे दे तो भी साधु का अहिंसा का व्रत होता है तो वह उसको समता से सहन कर लेता है। इस संदर्भ में साधु पुलिस थाने या किसी प्रकार की शिकायत भी नहीं करनी चाहिए। सेना का जवान भले ही किसी देश पर आक्रमण न करे, किन्तु यदि कोई अपने देश पर आक्रमण कर दे तो उसे रोकने के लिए सैनिक शस्त्र उठाते हैं और अपने राष्ट्र, अपने देशवासियों की सुरक्षा के लिए वे शस्त्र का प्रयोग करें तो वह न्याय संगत है।
आचार्यश्री ने चतुर्दशी के संदर्भ में हाजरी का वाचन करते हुए विविध प्रेरणाएं प्रदान कीं। आचार्यश्री की आज्ञा से नवदीक्षित मुनि ध्यानमूर्तिजी व मुनि देवकुमारजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री ने मुनि ध्यानमूर्तिजी को इक्कीस कल्याणक व मुनि देवकुमारजी को एक कल्याणक बक्सीस किए। तदुपरान्त समस्त साधु-साध्वियों ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया।
आचार्यश्री ने बदलापूरवासियों को पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आज बदलापूर आए हैं। यहां आक्रोश के रूप में बदले की भावना न रहे, बल्कि सात्विक बदलाव की भावना हो। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने बदलापूरवासियों को उद्बोधित किया। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं ने स्वागत गीत का संगान किया। स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री भैरूलाल पगारिया, मूर्तिपूजक समाज की ओर से श्री सुबोध परमार व श्री पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रावक संघ के श्री राजेश खाटेड़ ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने ज्ञानार्थियों को पावन आशीर्वाद प्रदान किया। तेरापंथ युवक परिषद के सदस्यों ने भी गीत का संगान किया। संत सेवा मण्डल के सदस्यों ने आचार्यश्री से नशामुक्ति का संकल्प स्वीकार किया।
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24.01.2024, बुधवार, बदलापूर, मुम्बई (महाराष्ट्र) :
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जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बदलापूर के कृष्णाई हॉल में उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि अहिंसा एक धर्म है। साधुओं के लिए तो अहिंसा एक महाव्रत भी है। अहिंसा का पालन करना साधुओं का आध्यात्मिक धर्म भी है। पुनर्जन्म, आत्मवाद, आस्तिकवाद को मानने वाले के लिए अहिंसा धर्म है। अहिंसा एक नीति भी है। राज्य, देश व विश्व के लिए अहिंसा एक नीति है। राजनीति में किसी भी जाति, किसी भी धर्म के व्यक्ति को चुनाव जीतकर उच्च पद पर आसीन होने की बात भी अहिंसा से जुड़ी हुई है।
अहिंसा धर्म भी है और राष्ट्रीय नीति भी है। चलाकर किसी पर आक्रमण नहीं करना, अहिंसा की नीति है। परिवार की नीति में अहिंसा हो। नगर में शांति बनी रहे, कानून व्यवस्था बनी रहे। जो नियमों को नहीं मानता, किसी को कष्ट देता है तो फिर प्रशासन दण्ड देती है तो वह कार्य भी नीतिगत ही होता है। शांति की स्थापना के लिए प्रशासन द्वारा यदि अशांति फैलाने वालों पर यदि लाठी का प्रयोग करे तो वहां पर साध्य अच्छा है। साधु को कोई कष्ट भी दे दे तो भी साधु का अहिंसा का व्रत होता है तो वह उसको समता से सहन कर लेता है। इस संदर्भ में साधु पुलिस थाने या किसी प्रकार की शिकायत भी नहीं करनी चाहिए। सेना का जवान भले ही किसी देश पर आक्रमण न करे, किन्तु यदि कोई अपने देश पर आक्रमण कर दे तो उसे रोकने के लिए सैनिक शस्त्र उठाते हैं और अपने राष्ट्र, अपने देशवासियों की सुरक्षा के लिए वे शस्त्र का प्रयोग करें तो वह न्याय संगत है।
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