19.04.2024: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 19.04.2024

Posted on 19.04.2024 17:40

चिंता

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🌸 परम शांति के लिए करें अहिंसा, संयम व तप की आराधना : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸

-तेरह कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पधारे आष्टि गांव

-आष्टि गांव की जनता ने मानवता की मसीहा का किया भावभीना अभिनन्दन

-श्रमण संघ की साध्वी व ब्रह्मकुमारी आदि ने भी आचार्यश्री के स्वागत में दी भावनाओं की अभिव्यक्ति

-महातपस्वी का सान्ध्यकालीन विहार, पिंपलेश्वर इंग्लिश स्कूल मंे हुआ रात्रिकालीन प्रवास

19.04.2024, शुक्रवार, आष्टि, बीड़ (महाराष्ट्र) :

जन कल्याण के लिए महाराष्ट्र प्रदेश के शहरों, नगरों, कस्बों व गांवों को अपनी चरणरज से पावन बनाने वाले, अपने आध्यात्मिक आलोक से जन-जन के मानस में आध्यात्मिकता की ज्योति जलाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में महाराष्ट्र राज्य के बीड़ जिले की सीमा में गतिमान हैं। शुक्रवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कड़ा गांव से मंगल प्रस्थान किया। जन-जन को अपने मंगल आशीष से लाभान्वित करते हुए आचार्यश्री गंतव्य की ओर गतिमान थे। आसमान में चढ़ता सूर्य अपनी तीव्र किरणों से लोगों को पसीने से नहला रहा था, किन्तु समता के साधक आचार्यश्री इस प्राकृतिक प्रतिकूलता से सर्वथा अप्रभावी नजर आ रहे थे। लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी आष्टिगांव में स्थित पंडित जवाहरलाल नेहरू विद्यालय में पधारे। गांव में जैन समाज के लोगों तथा श्रीसंघ की ओर से आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।

विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते कहा कि आदमी शांति से जीना चाहता है, आदमी शांति में रहना चाहता है। मनुष्य को मन की शांति कितनी अच्छी लगती है। एक सुविधा होती है और दूसरी चीज शांति होती है। बाह्य संसाधनों से आदमी को सुविधा मिलती है, परन्तु आदमी को इससे मानसिक शांति मिल ही जाए, यह कहना कठिन है। धनवान आदमी के तमाम मनोनुकूल संसाधन हो सकते हैं, उसे मानसिक शांति हो ऐसा कहा नहीं जा सकता है। मानसिक शांति की प्राप्ति के लिए साधना की आवश्यकता होती है। साधु के पास बाह्य संसाधनों के नहीं होने पर भी साधना के बल पर मानसिक शांति का अनुभव कर सकता है। दुनिया में जितने भी बुद्ध और तीर्थंकर होते हैं, वे शांति पर ही स्थित होते हैं। पूर्णतया शांति प्राप्त करने वाले को ही केवलज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।

मोहनीय कर्मों को मानसिक शांति का सबसे बड़ा बाधक बताया गया है। तीर्थंकर मोहनीय कर्मों का क्षय करने वाले होते हैं। शांति की प्राप्ति में भय एक बाधा है। जिसमें डर होता है, उसे शांति की प्राप्ति नहीं हो सकती। जो अभय होता है, वहां शांति का एक भाग प्राप्त हो सकता है। गुस्सा भी अशांति का कारण बनता है। आदमी को गुस्से को छोड़ने का प्रयास करे तो शांति को प्राप्त कर सकता है। आदमी ज्यादा चिंता करता है तो भी वह अशांति को प्राप्त हो सकता है। इसलिए आदमी को चिंता नहीं, चिंतन करने का प्रयास करना चाहिए। चिंता को चिता के समान कहा गया है। चिता तो मृतक के शरीर को जलाती है और चिंता सजीव को भी जला देती है। आदमी को चिंता से मुक्त रहने का प्रयास करना चाहिए। लोभ, लालसा, कामना की पूर्ति नहीं होने पर भी अशांति की स्थिति नहीं बनती है। इसलिए आदमी को अत्यधिक लोभ, लालसा और कामना से बचने का प्रयास करना चाहिए। गुस्सा, भय, लोभ, चिंता- ये सभी अशांति के कारण होते हैं। इनसे दूर रहते हुए साधना के द्वारा जीवन को शांतिमय बनाने का प्रयास करें।

आचार्यश्री ने आगे कहा कि भगवान महावीर की जन्म जयंती निकट आ रही है। हम जैन शासन से जुड़े हुए हैं। जीवन में अध्यात्म का प्रभाव रहे। सिद्धता की प्राप्ति के लिए आदमी को कषाय मुक्ति की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा, संयम और तप की आराधना करें तो हम परम शांति को प्राप्त कर सकते हैं।

कार्यक्रम में उपस्थित श्रमण संघ की साध्वी नमिताजी ने आचार्यश्री के दर्शन के उपरान्त अपने हर्षित भावनाओं की अभिव्यक्ति देते हुए सहवर्ती साध्वीजी के साथ गीत का संगान किया। ब्रह्मकुमारजी सुशीलाजी ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। स्कूल के अध्यक्ष व माझी आमदार श्री जीवराज ढोन्ढे, जैन श्रावक संघ आष्टि के अध्यक्ष श्री सुखलाल मूथा ने भी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। जैन महिला मण्डल ने गीत का संगान किया। श्रीमती प्राची बोगावत ने भी गीत का संगान किया।

युगप्रधान आचार्यश्री ने सायंकाल भी मंगल विहार किया। लगभग 3.8 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री रात्रिकालीन प्रवास हेतु आष्टि के बाहरी में स्थित पिंपलेश्वर इंग्लिश स्कूल में पधारे।

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