24.06.2024: Acharya Shiv Muni

Published: 24.06.2024

Posted on 24.06.2024 09:18

प्रभु महावीर की दो धाराओं का मंगल मिलन
शिवाचार्य श्री जी एवं गच्छाधिपति नित्यानन्द सुरीश्वरजी का 14 वर्ष बाद मंगल मिलन
दिल्ली में सन् 2009 के चातुर्मास के पश्चात् 14 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद आत्म भवन अवध संग्रीला बलेश्वर सूरत गुजरात में दिनांक 17 जून 2024 को शुभ मंगल पावन वेला में श्रमण संघ के चतुर्थ पटट्धर आचार्य सम्राट् पूज्य श्री शिव मुनि जी एवं श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा के पंजाब केसरी आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सुरीश्वर जी महाराज के समुदाय के गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय नित्यानन्दसुरीश्वर जी महाराज आदि ठाणा-6 का मंगल मिलन हुआ। प्रातः काल की मंगल वेला में गच्छाधिपति आचार्य श्री नित्यानन्द जी महाराज की अगवानी करने हेतु युवामनीषी श्री शुभम मुनि जी, श्री शमित मुनि जी पधारे थे। दोनों महापुरुषों के मिलन से आगमों में वर्णित केशी गौतम मिलन की स्मृतियां उजागर हो गई। इस मंगल मिलन के जो साक्षी बने वह अपने आपको सौभाग्यशाली अनुभव कर रहे थे।
इस अवसर पर आचार्य श्री नित्यानन्द जी महाराज ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि आज यह मिलन मात्र देह का नहीं आत्मा का मिलन था। वैसे भी ‘साधुनां दर्शनम् पुण्यं तीर्थ भूता ही साधवः’ संत महात्मा के दर्शन ही पुण्य है, सौभाग्य का सूचक है। संत स्वयं ही तीर्थ स्वरूप है, दो तरह के तीर्थ कहे गए हैं स्थावर तीर्थ और जंगम तीर्थ। जो तीर्थ एक स्थान पर स्थिर है वे स्थावर तीर्थ कहलाते हैं जैसे पालीताणा, सम्मेदशिखर आदि वहां जाना पड़ता है। किन्तु संत चलते-फिरते तीर्थ हैं जो स्वयं चलकर हमें तिराने का निमित बनते हैं। जहां दो धाराओं का मिलन होता है वह स्थान वैसे ही तीर्थ बन जाता है। पंजाब एवं दिल्ली मिलन के बाद एक लम्बा अंतराल बीत गया इस दौरान हमारी देह की दूरी अवश्य रही किंतु दिल की दूरी नहीं थी। आचार्य सम्राट परम पूज्य शिवाचार्य जी भगवन में इतनी करुणा है इतनी कृपा है, कोमल हृदय है, इनके पास कोई भेदभाव, पक्षपात नहीं है। जहां आकर हमें आत्मीयता, प्रेम, सरलता, सादगी, पवित्रता और प्रसन्नता प्राप्त होती है। ऐसे सच्चे संतों के पास आने से मन स्वतः ही प्रसन्न हो जाता है। यदि एक सच्चे संत के दर्शन करने हों, सच्ची साधुता को देखना हो तो आचार्य भगवन के दर्शन कर लिजिए। इनकी दृष्टि पाकर हम अपने आपको सौभाग्यशाली मानते हैं। आचार्य भगवन ध्यान की साधना में अर्हनिश डूबे रहने वाले, राग से विराग और वीतरागता की साधना करने वाले, अशुभ से शुभ और शुभ से शुद्धता की ओर, आत्मा से महात्मा और महात्मा से परमात्मा की साधना में निरंतर गतिशील हैं।
इस अवसर पर श्रद्धेय शिवाचार्यजी ने फरमाया कि आज के इस अशांत वातावरण में अणु बम, एटम बम के काल में कोई शांति दे सकता है तो वह है- भगवान महावीर की वाणी। भगवान के सिद्धांत विश्व को शांति प्रदान कर सकते हैं। दुनिया युद्ध के कगार पर खड़ी है। इस युद्धमय वातावरण में प्रभु महावीर की मैत्री और करुणा को अपना लिया जाये तो सारे विश्व में सुख शांति मिल सकती है। भगवान की साधना में आत्मा शब्द को भी समझ लिया तो आपका कल्याण हो सकता है। गजसुकुमाल इतने उपसर्ग में भी आनन्द में थे। भगवान महावीर को चण्डकौशिक ने डसा तो भी वे आनन्द में थे। चन्दन बाला इतने कष्टों में भी आनंद में थी, वो अर्जुन माली छः महीने में मोक्ष चले गये, क्या साधना की? एक मात्र जीव में रमण, आत्म रमण करना ही ध्यान है। ‘जिस्म और रूह का अजीब रिश्ता है दोस्तों उम्रभर साथ रहे पर मुलाकात नहीं हुई।’ यह आत्मा आपके जीवन भर साथ रहती है किंतु आप कभी मूलाकात नहीं करते हो। चौबीस घंटे हम सिर्फ संसार का ही ध्यान करते हैं। आनन्द शांति ज्ञान हमारे ही भीतर है। उसको जानने के लिए अपने भीतर-भीतर एकान्त मौन साधना करनी पड़ेगी। आत्मा को जानने के लिए आपको ध्यान में उतरना पड़ेगा। जैसे किसी से प्रेम करने के बाद उसकी स्मृति सदैव बनी रहती है माता के अंतर में पुत्र की छवि निरंतर बनी रहती है वैसे ही हम निंरतर आत्म रमणता को प्रमुखता दे। 14 वर्ष बाद आज इतने बड़े गच्छाधिपति आचार्य श्री नित्यानन्द सुरीश्वरजी से मिलना हुआ है, परंतु ऐसा लग रहा कि हम कभी बिछड़े ही नहीं, आपकी मुस्कुराहट सदैव स्मृति पटल पर अंकित रहती है। आज के मिलन ने पूर्व की सारी स्मृतियां उजागर कर दी है। आपका अपनत्व, प्रेम, स्नेह, सरलता, सहजता, वाणी की मिठास और विनम्रता को भुलाया नहीं जा सकता। आपसे मिलने पर मूर्तिपूजक-स्थानकवासी का कोई भेद ही नहीं लगता। आपके एक संकेत पर जिनशासन के बड़े से बड़े और असंभव कार्य भी एकदम सरल हो जाते हैं, शीघ्र पूर्ण हो जाते हैं। संघ, समाज और शासन की बहुत सारी जवाबदारी, जिम्मेदारी होते हुए भी सदा शांत-प्रशांत और विनम्र बने रहते हैं यह उच्च कोटि के साधक की सिद्धि का ही लक्षण है।
इससे पूर्व आज की सभा को श्रमण संघीय प्रमुख मंत्री पूज्य श्री शिरीष मुनि जी, मुनि श्री मोक्षानन्द जी ने सम्बोधित किया था। मधुर गायक युवा मनीषी श्री शुभम मुनि जी ने मंगल मिलन पर सुमधुर भजन प्रस्तुत किया। यह बात विशेष ज्ञातव्य है कि आचार्य श्री शिवमुनि जी महाराज से मिलन हेतु गच्छाधिपति आचार्य श्री नित्यानन्द जी महाराज ने चालीस किलोमीटर की विशेष यात्र तय की।
आज की इस धर्म सभा में दिल्ली से सुभाष ओसवाल, डॉ नागेश जैन, जम्मू से गुणेन्द्रपुष्प जैन एवं सुरत, महाराष्ट्र, दिल्ली आदि स्थानों से अनेक गुरु भक्त उपस्थित थे। शिवाचार्य आत्मध्यान फाउण्डेशन की ओर से सबका आतिथ्य सत्कार किया गया।
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