After death of the father, in the presence of mother,
it is special duty of the son to be aware
of his mother's harmony of mind, peace,
insouciance and pursuit of religion.
Taken From "Roj Ki Ek Salah" - Book by Acharya Mahashraman
पिता के स्वर्गवास के बाद मां विद्यमान
रहती है तब पुत्र का मां के प्रति विशेष
फर्ज बनता है कि वह मां कि चित्तसमाधि,
शांति व निश्चिन्तता तथा धर्माराधना के
प्रति जागरूक रहे.