Short News in English
Location: | Siriyari |
Headline: | Muni Sagarmal (Shraman) Passed Away At Siriyari |
News: | Muni Sagarmal (Shraman) passed away today at 7.00 A.M at Siriyari. 86 years old Muni Sagarmal was not well since last few days. His body was kept for last darshan for devotees. Last rites also took place today. Acharya Mahashraman expressed deep shock on death of Muni Sagarmal. He told that Muni Sagarmal was great historian. Muni Sagarmal born on 18th January 1926 at ladnun. He took Diksha on 24th October 1940 at age of 13. Acharya Tulsi gave Diksha to him. He was staying in Siriyari since last 5 years. He stayed with Muni Champalal elder brother of Acharya Tulsi for 30 years. He wrote many books. |
News in Hindi
मुनि सागरमल श्रमण का महाप्रयाण
सिरियारी 23 Oct-2011जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो सिरियारी
तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य महाश्रमण के आज्ञानुवर्ती मुनि सागरमल श्रमण का रविवार को सुबह 7 बजे सिरियारी स्थित आचार्य भिक्षु समाधि स्थल संस्थान में निधन हो गया। वे 86 वर्ष के थे एवं पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे। मुनि श्रमण के देवलोकगमन के समाचार मिलते ही शोक की लहर छा गई। मुनि का पार्थिव शरीर श्रावक-श्राविकाओं के अंतिम दर्शन के लिए रखी गई। बाद में उनका विधिवत अंतिम संस्कार किया गया। मुनि के देवलोकगमन हो जाने पर तेरापंथ धर्मसंघ के अनुयायी, संस्थान के पदाधिकारी व कार्यकर्ताओं में शोक व्याप्त है।
आचार्य महाश्रमण ने केलवा से अपने संदेश में कहा कि मुनि सागरमल के देवलोकगमन से धर्मसंघ को बहुत बड़ी क्षति हुई है। मुनि तेरापंथ इतिहास के एक मनीषी संत थे। मुनि सागरमल श्रमण का जन्म 18 जनवरी 1926 को नागौर जिले के लाडनूं कस्बे में हुआ था। उनके पिता तिलोकचंद कोठारी व माता धापू बाई थीं। उन्होंने 24 अक्टूबर 1940 को 13 वर्ष की आयु में तेरापंथ धर्मसंघ के नवम आचार्य आचार्य तुलसी से लाडनूं में दीक्षा ग्रहण कर संयम पथ की ओर अग्रसर हुए। मुनि श्रमण अपने सहवर्ती मुनि मणिलाल, मुनि राजकुमार व मुनि कुशल कुमार के साथ करीब पांच वर्ष से सिरियारी में ही प्रवास कर रहे थे। निधन की सूचना मिलने के बाद से ही सिरियारी में मेवाड़, मारवाड़, थली सहित देशभर से श्रावक-श्राविकाएं सिरियारी पहुंची। मुनि का अंतिम संस्कार समाधि स्थल के मुख्य द्वार के सामने तपस्विनी नदी के किनारे किया गया।
मुनिश्री सागरमलजी "श्रमण" (लाडनू)जन्म लाडनू के कोठारी राखेचा (लेडी वाले) परिवार में सवत १९८२ माध शुक्ला ५, दिनाक १८ जनवरी १९२६ सोमवार को हुआ. उनके पिता का नाम तिलोकचंदजी और माता का नाम धापूदेवी था. सागरमलजी आदि चार भाई और एक बहन थी. दीक्षा- सागरमलजी ने १५ वर्ष की अविवाहित वय (नाबालिग) में माता परिवार को छोडकर सवत १९६७ कार्तिक कृष्णा ८, गुरूवार २४ अक्तूबर १९४० को आचार्य तुलसी के हाथो अपने बड़े भाई जयचंदलालजी के साथ दीक्षाग्रहण की.
आप २००३ के मर्यादा महोत्सव के पश्चात सेवा भावी मुनिश्री चम्पालाजी (भाईजी महाराज) की सेवा में रहने का मुनिश्री को निर्देश मिला! मुनिश्री सागरमलजी लगभग ३० वर्षो तक भाईजी महाराज की पूर्ण सतर्कता के साथ मनोनुकूल परिचर्या की. राजस्थान, मध्यप्रदेश, आंद्र प्रदेश, कर्नाटक, मद्रास, पंजाब, हरियाणा दिल्ली आदि प्रान्तों की आपने यात्रा की एवं धर्म का प्रचार-प्रसार किया. मुनि श्री सागरमलजी श्रमण (लाडनू) प्रवचनकार है! तेरापंथ के इतिहास का गहराई से जानकारी है. एवं क्षेत्र की अच्छी जानकारी है. वर्तमान में आप सिरियारी में बिराज रहे है. आपके साथ है मुनिश्री मणिलालजी,मुनि श्री राजकुमार जी, मुनिश्री कुशलकुमारजी! विगत दो सालो में आपकी तीन पुस्तके प्रकाशित हुई है.. उसमे एक है जय जय महाराज!