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तीसरा नेत्र खोलने वाली शिक्षा सार्थक: मुनि श्री मदन कुमार जी
जसोल 04 जनवरी 2013 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
आचार्य महाश्रमण के शिष्य मुनि मदनकुमार ने कहा कि विनम्रता, सहिष्णुता और कृतज्ञता जीवन निर्माण के अमूल्य तत्व है। इस साधना से जीवन सफल और सार्थक बनता है। जीवन को प्रेरक बनाने के लिए आचार की निर्मलता और विचार की उच्चता का प्रशिक्षण प्राप्त करना आवश्यक है। मुनि मदनकुमार आदर्श बाल विद्या मंदिर माजीवाला स्कूल में शिक्षा का उद्देश्य तृतीय नेत्र का विकास विषयक पर आयोजित संगोष्ठी में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि ज्ञान के साथ विवेक शक्ति का जागरण होना चाहिए। हेय और उपादेय को जानने वाला ही पवित्र जीवन का अधिकारी बनता है। मानव जीवन को दुर्लभ बताते हुए मुनि मदनकुमार ने कहा कि दो आंखें मनुष्य को प्रकृति से प्राप्त है। तीसरी आंख का खुलना मनुष्य जीवन का भाग्योदय है। प्रायोगिक और नैतिक शिक्षा को पुष्ट कर तीसरे नेत्र का उद्घाटन किया जा सकता है।
जीवन विज्ञान का पाठ्यक्रम इस दिशा में सार्थक प्रयास कर रहा है। क्षमा के महत्व को रेखांकित करते हुए मुनि ने कहा कि आवेश और उत्तेजना की परिस्थिति में भी प्रतिक्रिया और प्रतिशोध का भाव न जागे, यह पे्रक्षाध्यान की साधना से संभव है। व्यक्ति को कांच की तरह असहिष्णु नहीं, हीरे की तरह सहिष्णु बनना चाहिए। कार्यक्रम में मुनि पृथ्वीराज ने नैतिकता के विकास पर बल दिया तथा ओम सुराणा, संपतराज चौपड़ा, कांतिलाल ढेलडिय़ा, शांतिलाल बोकडिय़ा, जेठमल बुरड़, सोहनराज संकलेचा ने विचार व्यक्त किए। प्रधानाध्यापक धीरजकुमार ने आभार ज्ञापित किया।