Hindi:
07.08.2015
Palitana
सुनना भी बहुत बडी कला
पालीताणा 7 अगस्त 2015
पालीताणा स्थित जिन हरि विहार संस्था में चातुर्मास के उपलक्ष में प्रवचन में खरतर गच्छ के गणाधीश उपाध्याय मणिप्रभसागर महाराज के शिष्य मुनि मेहुलप्रभसागर महाराज ने कहा कि परमात्मा महावीर स्वामी ने उत्तराध्ययन सूत्र में चार परमांग का उपदेश दिया है। उसमें मनुष्य भव के बाद श्रुति को भी दुर्लभ कहा है। सुनना भी बहुत बडी कला है। आज विश्व में हर तरह के प्रबंधन का काँर्स करवाया जाता है पर ‘कैसे सुनना’ यह नहीं सिखाया जाता। यहीं से हमारा भटकाव प्रारंभ होता है।
उन्होंने कहा कि ‘सुनना’ अगर सीख लिया जाये तो हमारी प्रतिकि्रया में जरुर बदलाव आ सकता है। शास्त्रों में मिलते अनेक उदाहरणों से हमें ज्ञात होता है कि जिनवाणी के उपदेश श्रवण से संसार में भी हम कमलवत् रहा जा सकता है।
प्रवचन के आरम्भ में मुनि मयंकप्रभसागर महाराज ने बताया कि जो अरिहंत को वंदन करता है वह भवसागर से पार होने योग्य बन जाता है। अरिहंत ने ही उपकार कर हमें जीवन जीने की शिक्षा दी है। हर पदार्थ मेरा है और हर पदार्थ मैं हूँ। पेड पौधे, जीव जन्तु सबमें मैं हूँ।
यह अनुभव हमें वर्तमान में जीना सिखाता है। जब सबमें मैं ही हूँ, तो उसके प्रति मेरा व्यवहार वैसा ही होना चाहिये, जैसा मैं अपने साथ करता हूँ। फिर कोई पराया नहीं रहता, फिर कोई शत्रु नहीं रहता।
मुनि कल्पज्ञसागर महाराज ने कहा कि परमात्मा महावीर का जीवन और गणधर गुरु गौतमस्वामी का जीवन हमें यथार्थ की शिक्षा देता है। गौतमस्वामी को भी चलकर समवशरण में आना पडा था।
उन्होंने कहा- जिस व्यक्ति को यथार्थ बोध हो जाता है, वह व्यक्ति परम शान्ति का अधिकारी हो जाता है। यथार्थ बोध का अर्थ है- जो जैसा है, उसे वैसा ही मानना और समझना! जो मेरा है, उसे मेरा मानना और जो मेरा नहीं है, उसे मेरा नहीं मानना। उन्होंने कहा- मेरा वही है जो अनादि अनंत काल तक मेरे साथ रहे, कभी मेरा साथ न छोडे, वही तत्व मेरा है। जिसका साथ क्षणिक है, जिसका साथ समय की सीमा में बंधा है, वह मेरा नहीं है।
आज सभा के अंत में चैन्नई से आये मनुकुमार भंसाली ने गुरु भगवंतों को वंदन करके जीवन निर्माण की शिक्षा देते काव्य सुनाये। जिसकी सभी ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की।