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जिन हरि विहार में अविस्मरणीय पर्युषण
शाश्वत तीर्थाधिराज पालीताना स्थित श्री जिन हरि विहार धर्मशाला में पर्युषण महापर्व की आराधना आनंद मंगल व हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुई।
परम पूज्य गुरुदेव गणाधीश उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. के शिष्य पूज्य मुनिराज श्री मयंकप्रभसागरजी म.सा., पूज्य मुनि श्री मेहुलप्रभसागरजी म., पूज्य मुनि श्री मौनप्रभसागरजी म., पूज्य मुनि श्री मोक्षप्रभसागरजी म., पूज्य मुनि श्री मननप्रभसागरजी म. एवं पूज्य गुरुदेव मुनिराज श्री मनोज्ञसागरजी म.सा. के शिष्य पूज्य मुनि श्री कल्पज्ञसागरजी म. की निश्रा में चातुर्मास की आराधना के अंतर्गत नित्य प्रवचन व दोपहर में स्वाध्याय का कालांश चला। जिसमें चातुर्मासिक आराधना करने हेतु पधारे सभी आराधकों ने एवं विभिन्न धर्मशालाओं में रुके श्रावक-श्राविकाओं ने पूरा भाग लिया।
पूजनीया खानदेश शिरोमणि साध्वी दिव्यप्रभाश्रीजी म. आदि ठाणा चार व साध्वी प्रियदर्शनाश्रीजी म. आदि ठाणा तीन और साध्वी समदर्शिताश्रीजी म. के सानिध्य में पर्युषण महापर्व में आराधना की धूम रही।
आराधना की शृंखला में पर्युषण महापर्व की आराधना करने के लिये बाहर गांवों से लगभग छ:सौ से अधिक आराधकों का आगमन हुआ। बाड़मेर, चैन्नई, बैंगलोर, अहमदाबाद, जोधपुर, जयपुर, दिल्ली, बदलापुर, नवसारी, पाली, हैदराबाद, लखनउ, सुरत, नागौर, मुंबई, रायपुर, कवर्धा, जगदलपुर, लोहावट, रामजी का गोल, सेलम, दिल्ली सहित भारत वर्ष के विभिन्न आंचलों से आराधकों का आगमन हुआ।
हरि विहार में पर्युषण पर्वाराधना का अनोखा ठाठ रहा। प्रतिदिन प्रात: 9:30 बजे प्रवचन का आयोजन हुआ। पूज्य मुनिराज श्री मयंकप्रभसागरजी म. के श्रीमुख से प्रारंभ सुधर्म सभा में मुनि मेहुलप्रभसागरजी म. व मुनि कल्पज्ञसागरजी म. के प्रवचन के प’चात् संघ पूजन और साधर्मिक वात्सल्य का भी आयोजन रहा। ता. 12.09.2015 को दादा गुरूदेव मणिधारी जिनचन्द्रसूरिजी म.सा. की स्वर्गारोहण तिथि पर गुणानुवाद और दोपहर में मयुर मंदिर में दादागुरूदेव की पूजा पढाई गई।
ता. 14.9.2015 को 14 स्वप्न अवतरण, परमात्मा महावीर का जन्म वांचन बहुत ही आनंद हर्षोल्लास के साथ सुना। दोपहर में माधवलाल धर्मशाला में जन्म वांचन किया गया। जहां पालना जी का लाभ ज्ञानचंदजी लुणिया, पाली ने लिया। दोनों पालनाजी की रात्रि-भक्ति जिन हरि विहार में रखी गयी।
पर्युषण महापर्व में आराधकों की आराधना के लिये उपकरण सहित एकाशना आदि सुविधाऐं जिन हरि विहार समिति की ओर से नि:शुल्क थी। संवत्सरी महापर्व के दिन बारहसौ सूत्र का वांचन मुनि मेहुलप्रभसागरजी म. ने किया। तत्प’चात् पू. क्षमापर्व की महत्ता समझाई। चैत्यपरिपाटी में तीन मंदिरों की अनुष्ठान पूर्वक आराधना करवाई गई। सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में सभी ने खमत खामणा कर पर्वाधिराज की आराधना विधिवत् रूप से की।
पर्वाधिराज पर्युषण में पूज्य मुनि श्री मौनप्रभसागरजी म. ने आठ उपवास किये। पूज्य मुनि श्री कल्पज्ञसागरजी म. ने चोविहार तेला किया। पूज्या साध्वी तत्वदर्शनाश्रीजी म. ने छठ-अट्ठम तप कर तप धर्म की आराधना की।
नित्य रात्रि प्रभु-भक्ति का आयोजन संगीतकार संजय भाई ने सभी आराधकों के साथ किया।
नित्य संचालन सहित आराधकों की संपूर्ण सुविधा के लिये संघवी विजयराजजी डोसी का सकि्रय योगदान रहा। अट्ठाई, चार उपवास, तेला आदि के सभी तपस्वियों का बहुमान समिति की ओर से किया गया।
कल्पसूत्र वहोराने का लाभ- शा. पारसमलजी ताराचंदजी संकलेचा बाडमेर।
लक्ष्मी देवी के स्वपनावतरण का लाभ- संघमाता श्रीमती इचरजबाई चंपालालजी डोसी खजवाणा, बेंगलोर।
पालनाजी घर ले जाने का लाभ- शा. संपतराजजी गौरवकुमारजी धारीवाल सनावडा-सुरत।
बारसा सूत्र वहोराने का लाभ- श्री किशोरभाई झवेरी सुरत, मुंबई।
प्रेषक- भागिरथ शर्मा, महावीर छाजेड़
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