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✿ धन-तेरस Special ~ हम हर साल धन्य-त्रियोदशी [धन-तेरस] मानते है, इस साल भी मनाएंगे तो आओ जाने धन्य-त्रियोदशी क्या है और कैसे शुरू हुआ ये पर्व... [ क्या आपके दिमाग में प्रश्न नहीं आता कि ये सारे पर्व एकसाथ लाइन में कैसे आते है? जैसे धन-तेरस, भैया-दूज, गोबर्धन, रूप-चौदस और दीवाली ] Logic Behind ✿
धन्य त्रियोदशी कहो या धन तेरस या धन्य तेरस >> धन्य तेरस का बहुत महत्व है लेकिन वैसा नहीं जैसा की आज कल अन्धविश्वास के कारन हम लोग मानते है की सांसारिक लक्ष्मी तथा धन का पूजा करो नहीं, उस दिन को धन्य माना गया क्योंकि उस दिन के बाद भगवान ने योग निरोध किया तथा अमावस्या को मोक्ष प्राप्त कर लिया, योग विरोध का मतलब मन, वचन और काय की प्रवृत्ति बंद हो जाना, मतलब उस दिन से महावीर स्वामी ने समवसरन का भी त्याग कर दिया और बस पद्मासन अवस्था में एक पेड़ के निचे विराजमान हो गए और ना मन से प्रवृत्ति करेंगे ना तन से करेंगे और ना ही कुछ बोलेंगे... वीर प्रभु के योगों के निरोध से त्रयोदशी धन्य हो उठी, इसीलिये यह तिथि “ धन्य-तेरस [त्रयोदशी]” के नाम से विख्यात हुई लेकिन समय से प्रभाव से यह धन्य त्रयोदशी का नाम अन्धविश्वास में बदल गया और फिर धनतेरस में फिर सिर्फ धन की पूजा होने लगी! धन-तेरस के दिन हम लोग धन-संपत्ति, रुपये-पैसे को लक्ष्मी मान कर पूजा करते हैं जो एकदम गलत है, हमने अब सारे पर्व को बस पैसे से जोड़ लिया है, धन-तेरस! जो Wise है Intelligent है उनको इस पर विचार करना चाहिए और साधू जानो और ज्ञानीजनो से पूछना चाहिए, ग्रंथो को देखना चाहिए!
हजारो साल पहले भगवान् ने अपने जीवन को इस दिन ही धन्य कर लिया था, जिससे त्रियोदशी भी धन्य कही जाने लगी थी, आओ हम भी कुछ संयम नियम आदि जीवन में आचरण में उतार ले ताकि हम भी धन्य हो जाए! धन है या नहीं लेकिन आप आचरण से अपने को धन्य तो कर ही सकते है, आज धन्य तेरस को पावन करदे! महावीर भगवान् के आचरण से अपने जीवन को सजा लेना ही... महावीरा स्वामी को सही मायने में मानना है! इस बार हम धन्य-तेरस कुछ हटकर मनाएंगे! Thank U for your read n pls let circulate to know everybody such knowledge.
ये लेख -Nipun Jain द्वारा लिखा गया है -Admin
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❖ दिल्ली से बड़ौत रूट पर बड़ौत से दस किलोमीटर पहले सरूरपुर में भगवन पारसनाथ की प्रतिमा भूगर्भ से प्राप्त हुई है कल रात... क्षुल्लक श्री ध्यानसगर जी के सानिध्य में [ शिष्य आचार्य श्री विद्यासागर जी ] कल दोपहर से खुदाई चालु थी, यहाँ पांच वर्ष पहले आचार्य श्री कुशाग्रनंदी जी मुनिराज ने घोषणा की थी की भविष्य में यहाँ भगवान् जी निकलेंगे!! अभी ऐसी संकेत मिल रहे है की पूरा जिन मंदिर अथवा जिन-चैत्यालए जमीन के निचे मोजूद है इसलिए खुदाई चालु है!! जय हो.. ❖ सुरूरपुर कलां देहली से 50 kms, शाहदरा से 41 kms, सहारनपुर से 110 kms की दूरी पर बागपत - बडौत के बीच देहली - सहारनपुर राज्य मार्ग पर है...
है यही पार्श्व जिसे 'सुरुरपुर' में, भक्तो ने धरती खोद निकला, चिंता छीन छु मंतर हो, जप चिंतामणि पार्श्व की माला!!
CONTACT @ विपिन जैन (बॉबी) 09808277686, 09058969080 @ हर्षित जैन 08923166366, 07895943257 @ अमित जैन 09456420863 -
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✿ Diwali Special ~ हम हर साल धन्य-त्रियोदशी [धन-तेरस] मानते है, इस साल भी मनाएंगे तो आओ जाने धन्य-त्रियोदशी क्या है और कैसे शुरू हुआ ये पर्व... [ क्या आपके दिमाग में प्रश्न नहीं आता कि ये सारे पर्व एकसाथ लाइन में कैसे आते है? जैसे धन-तेरस, भैया-दूज, गोबर्धन, रूप-चौदस और दीवाली ] इसके पीछे बहुत बड़ा लॉजिक है.. जैन धर्मं के अनुसार! ✿ share maximum!
धन्य त्रियोदशी कहो या धन तेरस या धन्य तेरस >> धन्य तेरस का बहुत महत्व है लेकिन वैसा नहीं जैसा की आज कल अन्धविश्वास के कारन हम लोग मानते है की सांसारिक लक्ष्मी तथा धन का पूजा करो नहीं, उस दिन को धन्य माना गया क्योंकि उस दिन के बाद भगवान ने योग निरोध किया तथा अमावस्या को मोक्ष प्राप्त कर लिया, योग विरोध का मतलब मन, वचन और काय की प्रवृत्ति बंद हो जाना, मतलब उस दिन से महावीर स्वामी ने समवसरन का भी त्याग कर दिया और बस पद्मासन अवस्था में एक पेड़ के निचे विराजमान हो गए और ना मन से प्रवृत्ति करेंगे ना तन से करेंगे और ना ही कुछ बोलेंगे... वीर प्रभु के योगों के निरोध से त्रयोदशी धन्य हो उठी, इसीलिये यह तिथि “ धन्य-तेरस [त्रयोदशी]” के नाम से विख्यात हुई लेकिन समय से प्रभाव से यह धन्य त्रयोदशी का नाम अन्धविश्वास में बदल गया और फिर धनतेरस में फिर सिर्फ धन की पूजा होने लगी! धन-तेरस के दिन हम लोग धन-संपत्ति, रुपये-पैसे को लक्ष्मी मान कर पूजा करते हैं जो एकदम गलत है, हमने अब सारे पर्व को बस पैसे से जोड़ लिया है और इन त्यौहार का असली महत्व पता ही नहीं हमको। जो Wise है Intelligent है उनको इस पर विचार करना चाहिए और साधू जानो और ज्ञानीजनो से पूछना चाहिए, ग्रंथो को देखना चाहिए!
हजारो साल पहले भगवान् ने अपने जीवन को इस दिन ही धन्य कर लिया था, जिससे त्रियोदशी भी धन्य कही जाने लगी थी, आओ हम भी कुछ संयम नियम आदि जीवन में आचरण में उतार ले ताकि हम भी धन्य हो जाए! धन है या नहीं लेकिन आप आचरण से अपने को धन्य तो कर ही सकते है, आज धन्य तेरस को पावन करदे! महावीर भगवान् के आचरण से अपने जीवन को सजा लेना ही... महावीरा स्वामी को सही मायने में मानना है और वही उनका सच्चा पुजारी भी है! इस बार हम धन्य-तेरस कुछ हटकर मनाएंगे!
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✿ हम क्या आतंकवादी से कम है @दिवाली की रात! ✿ maximum share please to let spread true message of Diwali!
दीपावली मनाएँ पर किसी का दीप न बुझे, किसी का घर न जले। तभी सार्थक होगी दीपावली। आपकी आतिशबाजी का जोरदार धमाका पशु-पक्षियों और जानवरों की नींद ही हराम नहीं करता, बल्कि उन्हें भयभीत कर अंधा, बहरा करके मौत के मुँह में भी डालता है। विषैला और जहरीला यह बारूद का धुआँ वातावरण को प्रदूषित कर स्वास्थ्य और पर्यावरण का नाश करता है। कुछ मिनट के enjoy के लिए लाखो रुपये बर्बाद हो जाते है, अगर कही आग लग जाती है तो पता नहीं कितनी संपत्ति का नुक्सान होता है, अगर कोई जल जाता है, किसी के कोई अंग खराब हो जाता है, कभी तो शरीर में आग से इतना नुक्सान होता है जिसका कोई इलाज नहीं, गर्भस्थ शिशु को नुकसान, वायु, जल, अग्नि, ओजोन परत को नुकसान, आँखों और कानो का बुरा प्रभाव, global warming का खतरा, किसी भी धर्म में हिंसा का उपदेश नहीं, पटाके इश्वर की वाणी का अपमान!! छोटे छोटे अरबो जीव-जंतु की हत्या!! हम क्या आतंकवादी से कम है!! सोचो....और तो और पटाके बनाने की फैक्ट्री में देखो...कारीगरों की जिंदगी से खिलवाड़...!
लेकिन पैसे ने हमें अंधा कर दिया है, हमको सिर्फ अपनी ख़ुशी दिखाई देती है फिर चाहे दूसरा जिए या मरे, और अपनी ख़ुशी भी कहा, पटाको से आपके हेल्थ पर भी किसी प्रभाव पड़ता है, आप जानते ही है, इसको ज्यादा से ज्यादा शेयर!
Article written by *Nipun Jain -Admin
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❖ A Genuine appeal - आज सुबह एक छोटा बालक साईकिल पर ढेर सारी झाड़ू लेकर बेचने निकला था। -maximum share please!
मैंने देखा कि वह 10 रुपए की दो झाड़ू बेच रहा था
और बच्चा समझकर लोग उससे उन दस रुपयों में भी
मोलभाव करके, दस रुपए की तीन झाड़ू लेने परआमादा थे
मैंने भी उससे दो झाड़ू खरीद लीं, लेकिन जाते- जाते उसे सलाह दे डाली कि वह
10 रुपए की दो झाड़ू कहने की बजाय 12 रुपए की दो झाड़ू कहकर बेचे..
और सिर्फ़ एक घंटे बाद जब मैं वापस वहाँ से गुज़रा तो उस बालक ने मुझे बुलाकर धन्यवाद दिया..
क्योंकि अब उसकी झाड़ू "10 रुपए में दो" बड़े आराम से बिक रही थी…।
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मित्रों, यह बात काल्पनिक नहीं है…। बल्कि मैं तो आपसे भी आग्रह करता हूँ
कि दीपावली का समय है, सभी लोग खरीदारियों में जुटे हैं,
ऐसे समय सड़क किनारे धंधा करने वाले इन छोटे- छोटे लोगों से मोलभाव न करें…।
मिट्टी के दीपक, लक्ष्मी जी फोटो, खील- बताशे, झाड़ू, रंगोली (सफ़ेद या रंगीन), रंगीन
पन्नियाँ इत्यादि बेचने वालों से क्या मोलभाव करना??
जब हम टाटा-बिरला-अंबानी-और विदेशी कपनियों के किसी भी उत्पाद में
मोलभाव नहीं करते (कर ही नहीं सकते), तो दीपावली के समय
चार पैसे कमाने की उम्मीद में बैठे इन रेहड़ी-खोमचे-ठे ले वालों से "कठोर
मोलभाव" करना एक प्रकार का अन्याय ही है.. Please share it if you agree!
The write-up sharing by Mr. Deepak Jain [ Gurgaon, India ] Based on his experience - big thanks to him for sharing about noble cause..
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