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✿ choti diwali.. what in reall sense?? आज के दिन चतुर्दशी को भगवान महावीर ने 18000 शीलों की पूर्णता को प्राप्त किया। वे रत्नत्रय की पूर्णता को प्राप्त कर अयोगी अवस्था से निज स्वरूप में लीन हुए। इस पर्व दिवस “रूप-चौदस” के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए व्रतादि धारण कर स्वभाव में आने का प्रयास करना चाहिये।
कल दिवाली के दिन भगवान महावीर को मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति हुई और गौतम गणधर को कैवल्यज्ञान की सरस्वती की प्राप्ति हुई, इसलिए लक्ष्मी-सरस्वती का पूजन इस दिन की जाती है। जैन धर्म में लक्ष्मी का अर्थ होता है निर्वाण और सरस्वती का अर्थ होता है कैवल्यज्ञान, इसलिए प्रातःकाल जैन मंदिरों में भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण उत्सव मनाते समय भगवान की पूजा में लड्डू चढ़ाए जाते हैं। लड्डू गोल होता है, मीठा होता है, सबको प्रिय होता है। गोल होने का अर्थ होता है जिसका न आरंभ है न अंत है। अखंड लड्डू की तरह हमारी आत्मा होती है जिसका न आरंभ होता है और न ही अंत। लड्डू बनाते समय बूँदी को कड़ाही में तपना पड़ता है और तपने के बाद उन्हें चाशनी में डाला जाता है। उसी प्रकार अखंड आत्मा को भी तपश्चरण की आग में तपना पड़ता है!
पटाको से लाभ??? दीपावली मनाएँ पर किसी का दीप न बुझे, किसी का घर न जले। तभी सार्थक होगी दीपावली। आपकी आतिशबाजी का जोरदार धमाका पशु-पक्षियों और जानवरों की नींद ही हराम नहीं करता, बल्कि उन्हें भयभीत कर अंधा, बहरा करके मौत के मुँह में भी डालता है। विषैला और जहरीला यह बारूद का धुआँ वातावरण को प्रदूषित कर स्वास्थ्य और पर्यावरण का नाश करता है। कुछ मिनट के enjoy के लिए लाखो रुपये बर्बाद हो जाते है, अगर कही आग लग जाती है तो पता नहीं कितनी संपत्ति का नुक्सान होता है, अगर कोई जल जाता है, किसी के कोई अंग खराब हो जाता है, कभी तो शरीर में आग से इतना नुक्सान होता है जिसका कोई इलाज नहीं, गर्भस्थ शिशु को नुकसान, वायु, जल, अग्नि, ओजोन परत को नुकसान, आँखों और कानो का बुरा प्रभाव, global warming का खतरा, किसी भी धर्म में हिंसा का उपदेश नहीं, पटाके इश्वर की वाणी का अपमान!! छोटे छोटे अरबो जीव-जंतु की हत्या!! हम क्या आतंकवादी से कम है!! सोचो....और तो और पटाके बनाने की फैक्ट्री में देखो...कारीगरों की जिंदगी से खिलवाड़...
♫ www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse, Have DharmaLabh!
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✿ choti diwali.. what in reall sense?? आज के दिन चतुर्दशी को भगवान महावीर ने 18000 शीलों की पूर्णता को प्राप्त किया। वे रत्नत्रय की पूर्णता को प्राप्त कर अयोगी अवस्था से निज स्वरूप में लीन हुए। इस पर्व दिवस “रूप-चौदस” के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए व्रतादि धारण कर स्वभाव में आने का प्रयास करना चाहिये।
कल दिवाली के दिन भगवान महावीर को मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति हुई और गौतम गणधर को कैवल्यज्ञान की सरस्वती की प्राप्ति हुई, इसलिए लक्ष्मी-सरस्वती का पूजन इस दिन की जाती है। जैन धर्म में लक्ष्मी का अर्थ होता है निर्वाण और सरस्वती का अर्थ होता है कैवल्यज्ञान, इसलिए प्रातःकाल जैन मंदिरों में भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण उत्सव मनाते समय भगवान की पूजा में लड्डू चढ़ाए जाते हैं। लड्डू गोल होता है, मीठा होता है, सबको प्रिय होता है। गोल होने का अर्थ होता है जिसका न आरंभ है न अंत है। अखंड लड्डू की तरह हमारी आत्मा होती है जिसका न आरंभ होता है और न ही अंत। लड्डू बनाते समय बूँदी को कड़ाही में तपना पड़ता है और तपने के बाद उन्हें चाशनी में डाला जाता है। उसी प्रकार अखंड आत्मा को भी तपश्चरण की आग में तपना पड़ता है!
पटाको से लाभ??? दीपावली मनाएँ पर किसी का दीप न बुझे, किसी का घर न जले। तभी सार्थक होगी दीपावली। आपकी आतिशबाजी का जोरदार धमाका पशु-पक्षियों और जानवरों की नींद ही हराम नहीं करता, बल्कि उन्हें भयभीत कर अंधा, बहरा करके मौत के मुँह में भी डालता है। विषैला और जहरीला यह बारूद का धुआँ वातावरण को प्रदूषित कर स्वास्थ्य और पर्यावरण का नाश करता है। कुछ मिनट के enjoy के लिए लाखो रुपये बर्बाद हो जाते है, अगर कही आग लग जाती है तो पता नहीं कितनी संपत्ति का नुक्सान होता है, अगर कोई जल जाता है, किसी के कोई अंग खराब हो जाता है, कभी तो शरीर में आग से इतना नुक्सान होता है जिसका कोई इलाज नहीं, गर्भस्थ शिशु को नुकसान, वायु, जल, अग्नि, ओजोन परत को नुकसान, आँखों और कानो का बुरा प्रभाव, global warming का खतरा, किसी भी धर्म में हिंसा का उपदेश नहीं, पटाके इश्वर की वाणी का अपमान!! छोटे छोटे अरबो जीव-जंतु की हत्या!! हम क्या आतंकवादी से कम है!! सोचो....और तो और पटाके बनाने की फैक्ट्री में देखो...कारीगरों की जिंदगी से खिलवाड़...
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✿ महावीर स्वामी बसों नयन मेरे, तेरा वंदन काटे भव-बंधन मेरे! महावीर स्वामी...
चतुर्दशी [“रूप-चौदस”] की रात हुई, आज [ choti diwali ] के दिन चतुर्दशी को भगवान महावीर ने 18000 शीलों की पूर्णता को प्राप्त किया। वे रत्नत्रय की पूर्णता को प्राप्त कर अयोगी अवस्था से निज स्वरूप में लीन हुए।, मध्य-रात भी बीती और...पिछली रात को (अमावस्या की सुबह होने से पहले) वीरनाथ सर्वज्ञ परमात्मा तेरहवा गुणस्थान पार करके चौदहवें गुणस्थान में अयोगी-पने विराजमान हुए l परम शुक्लध्यान (तीसरा एवं चतुर्थ) प्रकट करके बाकी के अघाती कर्मों की संपूर्ण निर्जरा होने लगी l और क्षणभर में प्रभु सर्वज्ञ भगवान महावीर मोक्षभावरूप परिणमित हुए, तत्क्षण ही सिद्धालयरूप मोक्षपुरी में पधारे l आज भी वे सर्वज्ञ परमात्मा वहां शुद्ध स्वरूप अस्तित्वमें बिराजमान है...उन्हें अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार हो....नमस्कार हो....नमस्कार हो!
दिवाली के रात्रि में बही पूजन के समय लक्ष्मी और गणेश की पूजा की प्रथा है, उसमें भी रहस्य है. उसी दिन पावापुर में भगवान् महावीर के मोक्ष जाने के बाद सायंकाल में श्री गौतम गणधर को केवलज्ञान प्रगट हुआ था, तत्क्षण ही इन्द्रों ने आकर उनकी गन्धकुटी की रचना करके उनके केवलज्ञान की पूजा की थी. 'गणानां ईशः गणेशः, गणधरः' ये पर्यायवाची नाम श्री गौतामस्वामी के ही हैं. सब लोग इस बात को न समझकर गणेश और लक्ष्मी की पूजा करने लगे. वास्तव में गणधर देव की, केवलज्ञान महालक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए. ख़ास कर जैनों को तो यही कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का नूतन वर्ष मनाना चाहिए, और मिथ्या देवों की पूजा ना कर के गणधर एवं केवलज्ञानमहालक्ष्मी की पूजा ही करनी चाहिए. दीपक केवलज्ञान रूपी ज्योति का प्रतिक है, हमको अंधकार रूपी मोह का नाश करना है केवलज्ञान प्राप्त करने के लिए...हमें महावीर भगवान - मोक्ष लक्ष्मी तथा गौतम स्वामी - गणों में ईश की पूजा करने चाहिये, जो हम लोकिक गणेश तथा लक्ष्मी पूजा करते है वो जैन धर्मं में नहीं है, इस बारे में हम शास्त्रों तथा ग्रंथो से पढ़ सकते है तथा मुनिराज से इस बारे में पूछना चाहिये, यह गृहीत मिथायात्व कर्मबंध होता है! ऐसा भी नहीं सोचना की हम तो करते आरहे है क्या होगा अगर छोड़ दिया इन लक्ष्मी गणेश की पूजा करना! अरे अगर करते रहे तो क्या होगा ये भी तो सोचो ना! धर्मं का सही स्वरुप ग्रहण करे! इस बारे में आचार्य, साधू, विद्वान् जनों से विचार ले! सबसे बड़ी विडंबना
'हम महावीर को तो मानते है पर महावीर की नहीं! जिनवाणी को हम पढना या जानना ही नहीं चाहते
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