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कस्तूरी कुन्डल बसे, मृग ढ़ूंढ़े बन माहिं ।
ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखे नाहिं ॥
हे चैतन्य प्रभो, इसी प्रकार त्रिलोकीनाथ, अविनाशी, शाश्वत ईश्वर खुद आपके ह्रदय-कमल में ही विराजमान हैं, किन्तु आप उन्हें इस संसार के देवालय, मंदिर आदि में खोजते फिरते हो, तथा आप उन्हें देख ही नहीं पा रहे हो, फिर किसी भी दिन आप भी किसी काल रुपी हिंसक पशु के शिकार बन यह अमूल्य मानव जन्म पुनः गँवा देते हो।
अनादिकाल से यह कालचक्र चलता आ रहा है। क्या इस बात को जानकर आप इस जन्म में इस कुचक्र तो तोड़ना चाहोगे, या फिर से इसके शिकार बनना चाहोगे?
अब निर्णय आपके हाथ में है।