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🌍 आज की प्रेरणा 🌎प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण
प्रस्तुति - अमृतवाणी
संप्रसारण - संस्कार चैनल के माध्यम से -
आर्हत वाड्मय में दो शब्द आते है - साधु और असाधु,गुणों से साधु और अगुणों से असाधु| हमें मानव जीवन मिला है, इसमें सद्गुणों का विकास होना चाहिए | आचार्य सोमप्रभ सूरी ने सूक्त मुक्तावली में कहा - हमें मानव जीवन में आत्मिक सुख प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए | इसके लिए - अर्हत भगवान की पूजा करो, साधुओं के सामने झुको, आगम का ज्ञान प्राप्त करो, अधर्मिकों की संगत को छोड़ो, सुपात्र को दान दो, धन का सदुपयोग करो, महान लोगों के बतलाए हुए पथ पर चलो, क्रोध अहंकार जैसे भीतर के क्षत्रुओं पर विजय प्राप्त करो व नमस्कार महामंत्र का स्मरण करो | यदि ऐसा करोगे तो तुम्हें सात्विक सुखों की प्राप्ति होगी| दुर्जन दुखदायी व सज्जन सुखदायी होता है| एक के मिलन से दुःख व दुसरे के मिलन से सुख की प्राप्ति होती है | लेकिन तुलसीदास जी ने कहा - एक दृष्टि से दोनों ही दुखदाई हो जाते है | दुर्जन का मिलाना दुखदाई और सज्जन का बिछुड़ना दुःख दाई | एक पिता के दो पुत्र थे | बड़े पुत्र में बुरी आदतें और छोटे पुत्र में अच्छी आदतें | एक पत्रकार ने दोनों से पूछा आप दोनों में ये संस्कार कहाँ से आए? दोनों ने कहा - हमने अपने पिता से सीखे | पत्रकार ने आश्चर्य से पूछा - ऐसा कैसे हो सकता है? बड़े ने कहा मेरे पिता जी शराब पीते थे,यह देखते देखते मैं भी शराब पीना सीख गया| छोटे पुत्र ने कहा - पिताजी शराब पीते थे, उससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा कम हो गई व बीमार भी रहने लगे यह देख मुझे सबक मिल गया | तो हमें सद्गुणों को अपनाने और दुर्गुणों को छोड़ने का प्रयास करना चाहिए
दिनांक - २० दिसम्बर २०१५, रविवार
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पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य से विहार के मंगल दृश्य। आज लगभग 15 कि.मी. का विहार।
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शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य से आज के प्रवचनकालीन दृश्य।
20.12.2015
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