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🚩🚩🚩आचार्य देशना🚩🚩🚩
🇮🇳"राष्ट्रहितचिंतक"जैन आचार्य 🇮🇳
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
तिथि: फाल्गुन शुक्ल तृतिया, २५४२
गर्भ कल्याणक: श्री १००८ अरहनाथ भगवान
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आपे में न हो
तभी तो अस्वस्थ हो
अब तो आओ
भावार्थ: इस हाइकू के माध्यम से आचार्य श्री हमारे अस्वस्थ होने का कारण बता रहे हैं । हम आपे में नहीं हैं । आचार्य श्री कह रहे हैं कि हम आपे में नहीं हैं इसलिए अस्वस्थ हैं । स्वस्थ होने के लिए हमे आपे (अपने आप) में रहना होगा । आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाय तो जब तक जीव निर्वाण को प्राप्त नहीं कर लेता तब तक वह जन्म जरा मृत्यु रुपी रोग से ग्रस्त ही रहेगा और केवलज्ञान की प्राप्ति तक क्षुधा तृषा आदि रोगों से ग्रस्त रहता है । इन रोगों का कारण जीव का स्वयं को न जानना, स्व में स्थित न रहना ही है । जो जीव स्वयं की पहचान करके अपने आपे में, अपने आप में, अपने स्वरुप में स्थित रहता है वह हमेशा के लिए स्वस्थ हो जाता है । लौकिक दृष्टि से भी देखा जाए तो जो लोग आपे में नहीं रहते अर्थात क्रोध ज़्यादा करते हैं वे निश्चित ही मानसिक एवं शरीरिक रोगों से ग्रस्त रहते हैं । जो क्रोध आदि कषायों पर नियंत्रण करते हैं वे सुखी रहते हैं । एक और दृष्टि से देखा जाए तो जो अपने काम से काम रखते हैं वे भी सुखी रहते हैं जो अपने से ज़्यादा दूसरों की चिंता करते हैं वे न स्व कल्याण कर पाते, न पर का । जो स्वयं अपने आवश्यकों को पूरा करते हुए, लोक कल्याण की भावना रखते हैं वे सोलहकारण भावनाओं को भाकर तीर्थंकर प्रकृति का बंध करते हैं और उसके फलस्वरूप सम्पूर्ण पृथ्वी को धर्ममय करने वाले तीर्थंकर के रूप में जन्म लेते हैं ।
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आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ अभी कटंगी, जबलपुर के समीप विराजमान हैं ।
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"राष्ट्र हित चिंतक"आचार्य श्री के सूत्र
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