14.06.2016 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 14.06.2016
Updated: 09.01.2018

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दिनांक 14-06-2016 के विहार और पूज्य प्रवर के प्रवचन का विडियो

प्रस्तुति - अमृतवाणी

सम्प्रेषण -👇

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🌻"तेरापंथ संघ संवाद"🌻

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विशेष सुचना -
~~~~~~~

पूज्य प्रवर ने महत्ती कृपा कर गुवाहाटी में 13 जुलाई को समणी शुक्लप्रज्ञा आैर समणी रोहितप्रज्ञा को श्रेणी आरोहण (मुनि दीक्षा) का आदेश प्रदान किया है।

दिनांक - 14-06-16

प्रस्तुति - 🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻

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केसिंगा: 'मुख्य मुनि' महावीर कुमार जी एवं 'साध्वीवर्या' साध्वी श्री सम्बुद्धयशा जी का "वर्धापन" समारोह
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👉 सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश देती "अहिंसा यात्रा" का आज का पड़ाव 'लोंगनीत'
👉 पूज्यप्रवर प्रेरणादायी उद्बोधन प्रदान करते हुए..
👉 आज के "मुख्य प्रवचन" के कुछ मनोरम दृश्य..

दिनांक:- 14-06-2016

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आचार्य तुलसी की कृति....."श्रावक संबोध"

गतांक से आगे......

📝 श्रृंखला-38 📝

षड्जीवनिकाय: चारित्र का आधार

32 - पृथ्वी अप तेजस तथा,
वायु वनस्पति काय।
त्रस-जैनागम में विदित,
ये षड्जीवनिकाय।।

अर्थ - जैन आगमों में छह जीवनिकाय के ये नाम प्रसिद्ध हैं - पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय।

भाष्य - भगवान महावीर ने रत्नत्रयी - सम्यग् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र का निरूपण किया। इनमें सम्यक् चारित्र का आधार है अहिंसा। अहिंसा का प्रमुख आधार है षड्जीवनिकाय। यह उसकी विशेष देन है। इसे समझे बिना अहिंसा की पूरी बात गम्य नहीं हो सकती।
'अहिंसापयसः पालिभूतान्यन्यव्रतानि यत्' - रूपक की भाषा में अहिंसा जल है, शेष व्रत उसकी सुरक्षा के लिए पाली के समान हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से अहिंसा का महत्त्व सर्वसम्मत है ही, पर्यावरण विज्ञान ने भी अहिंसा की उपयोगिता को अपनी सहमति दी है। जब से विज्ञान ने अहिंसा के बारे में सोचना शुरू किया है, वह जीवन का अनिवार्य अंग बन गया।

पर्यावरणशुद्धि बीसवीं सदी के आखिरी दो-तीन दशकों का नारा है। पर्यावरण है क्या? पृथ्वी, पानी, वायु, वनस्पति और प्राणी - ये सब मिलकर ही पर्यावरण का निर्माण करते हैं। इनमें जब तक संतुलन रहता है, पर्यावरण ठीक रहता है। इनका असन्तुलन ही पर्यावरण को प्रदूषित करने वाला है। इसलिए भगवान महावीर ने पृथ्वी, पानी आदि के संयम की बात कही।

सामान्यतः यह कहा जाता है कि पृथ्वी में जीव होते हैं, पानी में जीव होते हैं आदि। इस सिद्धान्त के आधार पर शोध करने वाले जैव वैज्ञानिकों का अभिमत है कि एक चम्मच मिट्टी में पाँच-छह अरब से अधिक संख्या में जीव होते हैं। यह बात उस मिट्टी के बारे में कही गई है, जो निर्जीव सी दिखाई देती है। सूक्ष्मदर्शी यंत्र या माइक्रोस्कोप से देखने पर उसमें जीवों की सत्ता प्रमाणित हो जाती है। जैनदर्शन की दृष्टि से यह बहुत स्थूल बात है। जैन तीर्थंकरों के अनुसार पृथ्वी स्वयं जीव है, पानी भी स्वयं जीव है। मिट्टी की एक छोटी सी डली और पानी की एक बूँद में पृथ्वी और पानी के असंख्य-असंख्य जीव हैं। इसलिए पृथ्वी, पानी आदि का संयम चारित्रिक दृष्टि से ही नहीं, पर्यावरण को सन्तुलित रखने के लिये भी आवश्यक है।

क्रमशः....... कल

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 सूरत - पुलिस प्रशासन के साथ योगा कार्यक्रम
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👉 सिलीगुड़ी - पश्चिम बंगाल के मंत्री श्री देब से मुलाकात
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👉 वापी - रक्तदान शिविर का आयोजन
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👉 बैंगलोर - श्री लहरसिंह सिरोहिया एम. एल. सी. का सम्मान
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चेन्नई - महिला मण्डल की साधारण संगोष्ठी व प्रतियोगिताओं का आयोजन
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👉 सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश देती "अहिंसा यात्रा" का आज का प्रवास *लोंगनीत*
👉 आज लगभग 14.3 किमी का विहार
👉 आज के विहार के दृश्य

दिनांक:- 14-06-2016

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