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गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते...आओ जाने, अपने 500 शिष्य के साथ गौतम आये थे अभिमान में चूर हो... पर वीतरागता से प्रभावित हो, खुद अभिमान रहित हो चले...और महावीर स्वामी को अपना गुरु बना लिया | must read n share this awesome story:)
भगवान् महावीर स्वामी को केवलज्ञान हुआ, उनके समवशरण की रचना की गयी लेकिन तिन धन्टे हो गए और भगवान् की वाणी नहीं खीर रही और भगवान् मौन है... तब इंद्र ने अवधिज्ञान से विचार किया अगर गौतम का आगमन हो तब भगवान् की वाणी उचारित हो, तब गौतम को समवशरण में लाने के लिए इंद्र ने एक बूढ़े व्यक्त का रूप बनाया जिस बूढ़े व्यक्ति के दांत नहीं थे और लकड़ी के सहारे चलता था, और जहा वो ब्राह्मण गौतम रहता था वह गए और आवाज लगाईं, ओ ब्राह्मण कौन है यहाँ सर्व शास्त्रों का ज्ञाता जो मेरे सारे सारे प्रश्नों का उत्तर दे सकता है, और संसार में ऐसे बहुत कम मनुष्य है जो मेरे इस काव्य का सही अर्थ बना देने में समर्थ हो, और मेरे गुरु अभी मोक्ष पुरुषार्थ कर रहे है नहीं तो वो ही बता देते, तभी 500 शिष्यों द्वारा प्रेरित गौतम बोलने लगा, मैं तेरे प्रश्नों के उत्तर देता हों तुझे बड़ा अभिमान हो रहा है उस काव्य है तुझे पता नहीं मैं 500 शिष्यों से पूजित हूँ, और मेरे सामान कोई ग्यानी नहीं, और अगर मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर बता दू तो तुम क्या होगे तो वो वृद्ध व्यक्ति बोलता है मैं आपका शिष्य बन जाऊँगा लेकिन अगर आपने सही अर्थ नहीं किया तो आपको मेरे गुरु का शिष्य बनाना होगा तब गौतम भी स्वीकृति देदेता हैं, इस तरह दोनों एक प्रतिज्ञा में बांध गए और फिर उस वृद्ध मतलब सोधर्म इंद्र ने वो गंभीर शब्दों वाला वाक्य पढ़ा....
'धर्मं के दो भेद कौन कौन से है, तीन प्रकार के काल कौन कौन से है उसमे काय सही द्रव्य कौन कौन से है, काल किसे कहते है, लेश्या कितनी और कौन कौन सी है, तत्व कितने और कौन कौन से है, संयम कितने, गति कितने, पदार्थ कितने और कौन कौन से है श्रुतज्ञान, अनुयोग कितने है' उस वृद्ध व्यक्ति से सुन इस काव्य को गौतम को बड़ी ग्लानी हुई और सोचने लगा इसके गुरु से ही शाश्त्रर्थ करने में भलाई है, तो गौतम में बड़े अभिमान से कहा 'चल रे ब्राम्हण..अपने गुरु के पास चल...' वही इस विषय पर मीमांसा होगी, दोनों चल पड़ते है और गौतम रास्ते में विचार करता है की जब इसका उत्तर मुझे नहीं आता तो इसके गुरु का कहा से आता होगा और इसका गुरु जरुरी ही कोई बड़ा विद्वान् होगा, और इस तरह दोनों समवशरण में पहुचे तो इन्द्र को बड़ी प्रशन्नता हुआ की गौतम को मैं यहाँ ले आया |
तभी एक अभूतपूर्व धटना गौतम के अंतर में धटती है गौतम की की द्रष्टि मानस्तम्भ पर पड़ती है और उसका अभिमान चूर चूर हो जाता है, मानस्तम्भ में विराजित वितरागता से मोहित हो जाता है और मिथ्यात्व मिट कर...सम्यक की और बढ़ जाता है...और फिर उसने जिनेन्द्र देव [महावीर भगवान्] की बड़े शब्दों में स्तुति की और फिर विषय से विराक्त होकर अपने 500 शिष्य और दो भाइयो के साथ तीर्थंकर मुद्रा को अपना लेते है और निर्ग्रन्थ मुनि हो जाते है, तो भगवान महावीर के प्रमुख शिष्य गौतम गणधर को आज भगवान महावीर जैसे गुरु की पूर्णिमा में प्राप्ति हुई थी इसलिए यह पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा बन गई।
वाह...क्या क्षण रहे होंगे...एक जीव अभिमान में चूर हो आया था लेकिन अभिमान गलित हो गया है...मिथ्या से सम्यक्त्व की और चल पड़े..रंगते खडे कर देने वाला उत्सव रहा होगा और तो और तीर्थंकर मुद्रा को धारण कर लिया, महावीर स्वामी को अपना गुरु बनाया...वाह. हे स्वामी हमें वो क्षण कब प्राप्त हो हम भी मोक्षमार्ग के नेता के चरणों में सम्यत्व प्राप्त करे और निर्ग्रन्थ हो जाए.....
► Written by Nipun Jain From 'Bhagwan Mahavir or unka Darshan'
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News in Hindi
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✿ आज गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ के पावन चरणों में कोटि कोटि वंदन है! ✿
गुरुवर आप अनोखे चुम्बक जिसने सबको खींच लिया, कलयुग मे भी वसुंधरा को धर्माम्रत से सींच दिया |
विद्वत्ता के संग तपस्या बहुत कठिन है मिल पाना, हे गंगा यमुना के संगम मधुर आपका मुस्काना ||
अनुज युगल के साथ आपका नग्न रूप यह दिखलाता, अंगारों पर तप करके ही कंचन कंचन बन पाता |
है अद्भुत व्यक्तित्व आपका, है असीम तव गुणमाला, वर्णन मे असमर्थ हुई है पूजा की यह जयमाला ||
गुरुवर के गुणगान से होता हर्ष अपार, जयमाला भी है कहाँ, गुरु का उपसंहार |
गुरुवर विद्यासागर, गुरुवर विद्यासागर, गुरुवर विद्यासागर, गुरुवर विद्यासागर ||
ये पूजा की पंक्तिया आचार्य श्री के शिष्य क्षुल्लक श्री ध्यानसागर जी ने लिखी हैं, वे हस्तिनापुर में विराजमान हैं:)
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सुर न भटके जिंदगी का बांसुरी बनना पड़ा
पा स्वयं को भी स्वयं से अजनबी बनना पड़ा
इस सदी के पुण्यशाली जीव भटकन से बचें
इसलिए एक 'देवता' को आदमी बनना पड़ा
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भीगने का शौक है तो मेरे गुरु के दरबार पे आ जाओ
क्योंकि
बादल तो कभी कभी बरसते हैं
पर
मेरे गुरु की कृपा दिन रात बरसती है।
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#GuruPurnima #Jainism ✿ 🔶 गुरु पूर्णिमा: संत श्री ध्यानसागर जी महाराज द्वारा आइये जानें *साधु और साधु जीवन का महत्व: Lets read something beyond generally we read:) share if u feel deep:))
🔹पराश्रित सुख से उत्तम स्वाश्रित दुःख है, तभी तो साधु विषय-सुखों का त्याग करके तप के दुःख को अंगीकार करके सुखी रहते हैं।
🔹साधुत्व हृदय परिवर्तन से आता है स्थान या वेश परिवर्तन से नही।
🔹जो ऊँचा है वह हमेशा ऊँचा रहे ऐसा कोई नियम नहीं है और जो नीचा है वो हमेशा नीचा रहे ऐसा भी कोई नियम नहीं ।
🔹दीक्षा के काल में बहुत से लोगों की भावना पवित्र होती है फिर बाद में और अधिक पवित्र हो सकती है और पतित भी हो सकती है।
🔹संन्यास का जगत् यदि त्याग और आध्यात्म प्रधान हो, वहाँ चकाचौंध, मान बढ़ाई, प्रतिष्ठा, लोकपूजा, भक्तों की जमावट अपनी अपनी योजनाओ का विस्तार न हो और केवल सादगी का जीवन हो, सात्विकता हो तो फिर, साधक की सहजता का जो आनंद है सादगी का जो सौंदर्य है उसमे जिया जा सकता है ।
🔹यदि विरुद्ध दिशा में चले जाते हैं तो उपलब्धियों के संग्रह का परिग्रह बढ़ता जाता है।
🔹आध्यात्म जगत में जाने पर साधक को इनमें इतना रस नही आता और जिनको आता है वे आध्यात्म जगत् में स्थिर नहीं रह पाते ।
🔹अवसर का लाभ उठाकर यदि मनुष्य ठान ले और पुरुषार्थ करे तो फिर वहाँ से लौटकर पुनः एक आनंदपूर्ण अन्तर यात्रा प्रारम्भ हो सकती है।
🔹यदि ऐसी धारणा हो की "हम तो जानते हैं तत्वों के रहस्य को, कभी भी लौटकर अपना कल्याण कर लेंगे, हम तो भगवान के बहुत निकट है"....ये भाषा साधक की भाषा नहीं हो सकती।
🔹अनादिकाल से ना जाने कितने अवसर अपने पास आए और कई बार किनारे पर अपनी नैया डूब गई इसीलिए आध्यात्म जगत्, मोक्ष का मार्ग अभिमानी के लिए नहीं है, आडंबर प्रेमियों के लिए नहीं है,
धर्मात्मा का अभिनय करने वालों के लिए नहीं है।
🔹साधु वो है जो दुनिया को नाटक के रूप में देखता है, पर ख़ुद कभी नाटक नहीं करता। अपनी कमियाँ सहज स्वीकार करता है, उनका अंतरंग और बहिरंग मेल खाता है, अपनी छवि को अन्तस् से अलग प्रदर्शित नही करता, यही कारण है की आज साधु बहुत दुर्लभ है ।
🔹कौन असाधु है उसकी चर्चा नहीं है, साधू की दुर्लभता की यहाँ चर्चा विचारी जा रही है।
🔹आज कितनी ज़रूरत है सच्चे साधु की दुनिया को, वह एक सच्चा साधु ही जान सकता है अथवा जिन्होंने साधु संगति प्राप्त की है वो जान सकते हैं ।
🔹फिर ऐसा बहुत से लोग सोचते हैं की हमने तो प्राप्त की है संगति
अवश्य की होगी हम तो आशा करते है, भावना करते है की आपको जिनकी संगति प्राप्त है वो वास्तव में साधु हों पर...?
पर...?
यह "पर" हम आप पर छोड़ते हैं...
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