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णमोकार मन्त्र का महत्त्व -जीवंधर कुमार ने मरते हुए कुत्ते को णमोकार मंत्र सुनाया जिसके प्रभाव से वह मरकर देवगति में सुदर्शन यक्षेन्द्र हो गया। #Namokar #Namokaramantra #Jainism
किसी समय राजपुरी के उद्यान में बहुत से ब्राह्मण लोग यज्ञ कर रहे थे, एक कुत्ता आया और अत्यधिक भूखा होने से उसने यज्ञ की सामग्री खानी चाही तथा झट से किसी थाल में मुँह लगा ही दिया। बस! क्या था? एक ब्राह्मण ने गुस्से में आकर उस कुत्ते को डंडे से खूब मारा जिससे वह मरणासन्न हो गया। उधर से जीवंधरकुमार अपने मित्रों के साथ निकले। कुत्ते की दशा देखकर वे परमदयालु स्वामी वहीं बैठ गये। वे समझ गये कि अब यह कुत्ता बच नहीं सकता है। तब उन्होंने उसके कान में णमोकार मन्त्र सुनाना प्रारम्भ किया। कुत्ते को इस मन्त्र से बहुत ही शांति मिली। मित्र! यह मन्त्र संकट के समय अमोघ उपाय है। वेदना में महाऔषधि है। वह कुत्ता भी बड़े प्रेम से कान उठाकर मन्त्र को सुनता रहा। जीवंधर स्वामी बार-बार उसके ऊपर हाथ फेरकर उसे सांत्वना दे रहे थे।
इस मन्त्र के प्रभाव से वह कुत्ता मरकर सुदर्शन नाम का यक्षेन्द्र देव हो गया। अन्तर्मुहूर्त (48 मिनट) के भीतर ही भीतर उसका वैक्रियक शरीर नवयुवक के समान पूर्ण हो गया और उसे अवधिज्ञान प्रकट हो गया। तब उसने सब बातें जानकर देवगति को प्राप्त कराने वाले परमोपकारी गुरू जीवंधर कुमार के पास शीघ्र ही आकर नमस्कार किया। उस समय तक जीवंधर कुमार उस कुत्ते को मन्त्र सुना ही रहे थे। उस देव ने आकर स्वामी की खूब स्तुति की और ‘‘समय पर मुझ दास को स्मरण करना’’ ऐसा कहकर चला गया। बंधुवर! जीवंधर के जीवन में बहुत से संकट के समय आये और इस देव ने आ-आकर रक्षा की, सेवा भक्ति की, अनेकों बार इस देव ने इनको सहयोग दिया तथा जीवन भर इनका भक्त कृतज्ञ बना रहा।
इस कथा से हमें कई शिक्षाएँ मिलती हैं - कुत्ते आदि निर्दोष मूक पशुओं को मारना नहीं चाहिये व प्रत्येक जीव के प्रति करुणा भाव रखना चाहिए।किसी को संकट के समय या मरणासन्नावस्था में णमोकार मन्त्र अवश्य सुनाना चाहिये।अपने प्रति उपकार करने वाले का कृतज्ञ बनकर बार-बार प्रत्युपकार करते रहना चाहिये। महामन्त्र का सदैव जाप करना चाहिये। ।।नवकार मन्त्र हर जीव का तारणहार।।
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कंठ दिया कोयलको, तो रूप छीन लिया।
रूप दिया मोरको, तो ईच्छा छीन ली।
दि ईच्छा इन्सानको, तो संतोष छीन लिया।
दिया संतोष संतको, तो संसार छीन लिया।
दिया संसार चलाने देवी-देवताओंको, तो उनसे भी मोक्ष छीन लिया।
दिया मोक्ष उस निराकारको, तो उसका भी आकार छीन लिया।।
मत करना कभी भी ग़ुरूर अपने आप पर 'ऐ इंसान', मेरे रबने तेरे और मेरे जैसे कितने मिट्टीसे बनाके मिट्टीमें मिला दिए।।
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#Share What an horrible moment to witness.😞 Animals too have feelings!! #Animal #Nonviolence #Jainism #LoveAnimal
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*#नीमच जैन समाज का बहुत बड़ा फैसला कल बकरा ईद पर पूरी जैन समाज करेगी निर्जला उपवास और जिसको कोई प्रॉब्लम है बो करेगे बिना रस का भोजन एक टाइम जय जय गुरुदेव* कल तीनो महाराज जी का संभावना हो सकती है उपवास रहेगा 🙏🙏
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🌀 दिगम्बर 🌀
जग में ऐसो की कमी नहीं, जो देख के नंगा कर देवे ।
ऊपर से बन–ठन के रहते, अंदर शर्मिंदा कर देवे ।।
मुनिराज है बच्चों से निश्छल, मन में जिनके विकार नहीं ।
वो नग्न होकर भी निर्मल है, कोई अभद्र कहे स्वीकार नहीं ।।
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News in Hindi
#Introspection @ ❖ उत्तम त्याग - हमें वही चीज ग्रहण करना चाहिए जो हमारे लिए आवश्यक हो | अनावश्यक वस्तुएं हमारे लिए कठिनाई उत्पन्न कर सकती है -Pls share it!
एक बार नदी और तालाब के बीच चर्चा छिड गयी, तालाब ने कहा - अरे! ओ नदी तू हमेशा देती रहती है, एक दिन तो तू पूरी खाली हो जायेगी |
नदी ने कहा - भाई मैं क्या दे सकती हूँ? यात्रा पर निकली हूँ| छोटी - २ धाराएं मुझमे आकर मिल जाती और मैं बढती चली जाती हूँ | पशु पक्षी एवं प्रकृति को तृप्तकरते हुये एक एक दिन समुद्र में मिलकर / खोकर स्वयं का असीम विस्तार पा जाती हूँ, अमर हो जाती हूँ, नदी से सागर हो जाती हूँ |
यही तो मुक्ति है और एक दिन, जब गर्मी पड़ी नदी की धारा तो पतली पड़ गयी पर तालाब का तो अस्तित्व ही समाप्त हो गया | वास्तव में जो देता है वही भरता है |जो ग्रहण करता है, पर त्याग नहीं करता उसका ग्रहण ही उसे ग्रसित कर देता है, नष्ट कर देता है| सच्चा त्याग वही है जब हम, जो हमारा नहीं है या जो हम है ही नहीं से जुदा हो जाते है, छूट जाते है | ग्रहण करके छोड़ना, सामान्य रूप त्याग कहा जाता है |पर छोड़ने में तो अंहकार आ जाता है | श्रेष्ट यही है की हम ग्रहण ही न करें | लेकिन जब तक जीवन में उत्तम त्याग घटित न हो तब तक ग्रहण तो करें पर देते भीजायें, एक संतुलन बनाएं रखें |
संतुलन के लिया एक सूत्र है - H2O अर्थात् यदि हम दो ग्रहण करें तो एक छोड़ दें | ग्रहण एवं त्याग के लिए आचार्यों ने भी कुछ व्यवस्था दी है | उनके अनुसार - हमेंअपनी आय का 50 % अपने लिए रख कर, 25 % दान और 25 % भविष्य के लिए संचय करना चाहिए | द्वितीये स्थान पर 20 % दान और तृतीये स्थान पर 10 % दान करना चाहिए | कितना ग्रहण - कितना त्याग इसका संतुलन बना रहना चाहिए जिससे संक्लेश न हो, अंहकार न हो | इस पर आचार्यों ने कुछ पॉइंट्स बताएं है:-
1.हम ग्रहण कितना करें?जिससे हम भविष्य के लिए सुरक्षित रहे | जैसे किसान कुछ बीज भविष्य के लिए सुरक्षित रख लेता है और मुश्किलें आने पर भी अपने संचित बीज को कभी अन्य काम में नहीं लेता, कभी नहीं खाता | ऐसे ही भोग में इतना ही लगाएं जिससे की थोडा बहुत संचित भीहोता रहे पुण्य के रूप में | भोग से पुण्य संचित नहीं होता, पुण्य त्याग से संचित होता है | इसलिए हम इतना ही भोगें जिससे की पुण्य भी संचित हो सकें | इसकेमायने है की ऐसा भोग जिसके पीछे त्याग छिपा हुआ है वही हमारे लिए पुण्य का अर्जन करेगा|
2.ग्रहण कैसे करें?भोग या ग्रहण इस तरह करें कि दूसरो का हक़ न छीने | बारिश के दिनों में नदियों में गन्दा पानी बहुत भर जाता है ऐसे ही यदि बहुत अधिकसंपत्ति पाप के द्वारा ही संभव है |
3. ग्रहण कब तक करें? ग्रहण तब तक करें जब तक त्याग कर सकें | अर्थात् ग्रहण की एज लिमिट होना चाहिए |
4. ग्रहण करूँ या नहीं करूँ? हमें वही चीज ग्रहण करना चाहिए जो हमारे लिए आवश्यक हो | अनावश्यक वस्तुएं हमारे लिए कठिनाई उत्पन्न कर सकती है| दानदेय मन हरक विशेषे: दान देते हुए हमारे मन में हर्ष एवं कृतज्ञता का भाव होना चाहिए | विनोबा ने लिखा –किसी को यदि भूख नहीं लगती तो हम कभी अतिथि - सत्कार भी नहीं कर पाते, बहुत अच्छा हुआ की किसी को भूख लगी और हमें अतिथि -सत्कार का अवसरमिला, ऐसे अत्यंत कृतज्ञ भाव से जो दान दिया जाता है त्याग धर्म के अर्न्तगत आता है | दान देते हुए हमारे मन में अंहकार एवं दुसरे को नीचा दिखने का भाव नहींहोना चाहिए | आजकल यह प्रश्न उठाया जाता है की धर्म के स्थान पर भी पैसे का सम्मान होता है पर ऐसा नहीं है | हमारे यहाँ जब भी सम्मान होता है तो त्याग का हीहोता है | इसतरह अंहकार एवं संख्लेश से रहित कृतज्ञ भाव से किया गया त्याग हमारे मन को पवित्र करता है और हमारा जीवन उज्जवल होता है एवं मन निर्मल हो जाता है |
SOURCE - पर्युषण पर्व के पावन अवसर पर हम 108 मुनिवर क्षमासागरजी महाराज के दश धर्म पर दिए गए प्रवचनों का सारांश रूप प्रस्तुत कर रहे है. पूर्ण प्रवचन "गुरुवाणी" शीर्षक से प्रेषित पुस्तक में उपलब्ध हैं. हमें आशा है की इस छोटे से प्रयास से आप लाभ उठाएंगे और इसे पसंद भी करेंगे. इसी शृंखला में आज "उत्तम क्षमा" धर्म पर यह झलकी प्रस्तुत कर रहे हैं. --- मैत्री समूह निकुंज जैन को यह सारांश बनाने के लिए धन्यवाद प्रेषित करता है!
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