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एक असाधारण संत का असाधारण जीवन वृत #AcharyaVidyasagar #MuniKshamasagar
सुना था कि आहार में वे रस बहुत कम लेते हैं।सो देख रहा था कि ऐसा कौन-सा रस उनके भीतर झर रहा है,जो बाहर के रस को गैरजरूरी किए दे रहा है। *एक गहरी आत्म-तृप्ति जो उनके चेहरे पर बरस रही थी वही भीतरी-रस की खबर दे रही थी और मैं जान गया कि रस सब भीतर है।ये भ्रम है कि रस बाहर है।तभी तो बाहर से लवण का त्याग होते हुए भी उनका लावण्य अद्भुत है।मधुर रस से विरक्त होते हुए भी उनमें असीम माधुर्य है।देह के दीप में तेल(स्नेह)न पहुँचने पर भी उनमें आत्मस्नेह की ज्योति अमंद है।सारे फल छोड़ देने के बाद भी हम सभी लोगों के लिए,वे सचमुच,बहुत फलदायी हो गए हैं।
उनकी सन्तुलित आहार-चर्या देखकर लगा कि शरीर के प्रति उनके मन में कोई गहन अनुराग नहीं है।वे उसे मात्र सीढ़ी मानकर आत्मा की ऊँचाइयाँ छूना चाहते हैं।शरीर धर्म का साधन है।उनकी कोशिश उसे समर्थ बनाए रखकर शान्तभाव से आत्म-साधना करने की है।सोच रहा था कि शरीर को इस तरह आत्मा से अलग मानकर उसका सम्यक् उपदेश करना कितना सार्थक, किन्तु कितना दुर्लभ है।
क्रमशः...
*कुण्डलपुर(1976)*
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Health is wealth:)) follow these...
पानी में गुड डालिए, बीत जाए जब रात!
सुबह छानकर पीजिए, अच्छे हों हालात!!
धनिया की पत्ती मसल, बूंद नैन में डार!
दुखती अँखियां ठीक हों, पल लागे दो-चार!!
ऊर्जा मिलती है बहुत, पिएं गुनगुना नीर!
कब्ज खतम हो पेट की, मिट जाए हर पीर!!
प्रातः काल पानी पिएं, घूंट-घूंट कर आप!
बस दो-तीन गिलास है, हर औषधि का बाप!!
ठंडा पानी पियो मत, करता क्रूर प्रहार!
करे हाजमे का सदा, ये तो बंटाढार!!
भोजन करें धरती पर, अल्थी पल्थी मार!
चबा-चबा कर खाइए, वैद्य न झांकें द्वार!!
प्रातः- दोपहर लीजिये, जब नियमित आहार!
तीस मिनट की नींद लो, रोग न आवें द्वार!!
भोजन करके शाम को, घूमें कदम हजार!
डाक्टर, ओझा, वैद्य का, लुट जाए व्यापार!!
घूट-घूट पानी पियो, रह तनाव से दूर!
एसिडिटी, या मोटापा, होवें चकनाचूर!!
अर्थराइज या हार्निया, अपेंडिक्स का त्रास!
पानी पीजै बैठकर, कभी न आवें पास!!
रक्तचाप बढने लगे, तब मत सोचो भाय!
सौगंध राम की खाइ के, तुरत छोड दो चाय!!
सुबह खाइये कुवंर-सा, दुपहर यथा नरेश!
भोजन लीजै शाम को, जैसे रंक सुरेश!!
देर रात तक जागना, रोगों का जंजाल!
अपच,आंख के रोग सँग, तन भी रहे निढाल^^
दर्द, घाव, फोडा, चुभन, सूजन, चोट पिराइ!
बीस मिनट चुंबक धरौ, पिरवा जाइ हेराइ!!
सत्तर रोगों को करे, चूना हमसे दूर!
दूर करे ये बाझपन, सुस्ती अपच हुजूर!!
भोजन करके जोहिए, केवल घंटा डेढ!
पानी इसके बाद पी, ये औषधि का पेड!!
अलसी, तिल, नारियल, सरसों का तेल!
यही खाइए नहीं तो, हार्ट समझिए फेल!
पहला स्थान सेंधा नमक, पहाड़ी नमक सु जान!
श्वेत नमक है सागरी, ये है जहर समान!!
अल्यूमिन के पात्र का, करता है जो उपयोग!
आमंत्रित करता सदा, वह अडतालीस रोग!!
फल या मीठा खाइके, तुरत न पीजै नीर!
ये सब छोटी आंत में, बनते विषधर तीर!!
चोकर खाने से सदा, बढती तन की शक्ति!
गेहूँ मोटा पीसिए, दिल में बढे विरक्ति!!
रोज मुलहठी चूसिए, कफ बाहर आ जाय!
बने सुरीला कंठ भी, सबको लगत सुहाय!!
भोजन करके खाइए, सौंफ, गुड, अजवान!
पत्थर भी पच जायगा, जानै सकल जहान!!
लौकी का रस पीजिए, चोकर युक्त पिसान!
तुलसी, गुड, सेंधा नमक, हृदय रोग निदान!
चैत्र माह में नीम की, पत्ती हर दिन खावे!
ज्वर, डेंगू या मलेरिया, बारह मील भगावे!!
सौ वर्षों तक वह जिए, लेते नाक से सांस!
अल्पकाल जीवें, करें, मुंह से श्वासोच्छ्वास!!
सितम, गर्म जल से कभी, करिये मत स्नान!
घट जाता है आत्मबल, नैनन को नुकसान!!
हृदय रोग से आपको, बचना है श्रीमान!
सुरा, चाय या कोल्ड्रिंक, का मत करिए पान!!
अगर नहावें गरम जल, तन-मन हो कमजोर!
नयन ज्योति कमजोर हो, शक्ति घटे चहुंओर!!
तुलसी का पत्ता करें, यदि हरदम उपयोग!
मिट जाते हर उम्र में,तन में सारे रोग। 🌸
कृपया इस जानकारी को जरूर आगे बढ़ाएं....
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News in Hindi
जिज्ञाषा समाधान- मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महामुनिराज #MuniSudhasagar
👉 *मंदिर जी मैं अगर कोई पूजन अभिषेक आदि, गलत उच्चारण में कर रहा है, तो उसे बताने में कोई बुराई नहीं है। साथ ही अगर कोई अबुद्धि पूर्वक गलत उच्चारण कर रहा है, तो उसे दोष तो नही है, परन्तु बताये जाने पर उसे अपना उच्चारण सही करने का उपाय करना चाहिए।*
मोबाइल आदि पर प्रवचन आदि सुनना स्वाध्याय में नहीं आयेगा। यह आवश्यक में नहीं माना जाएगा। यह शुभ उपयोग माना जायेगा। सूतक पातक में भी मोबाइल-टीवी पर प्रवचन सुनने में कोई दोष नहीं है।*
👉 आत्म कल्याण और जन कल्याण एक सिक्के के दो पहलू हैं। *दिगम्बर मुनि की आत्म कल्याण करते हुए भी लगातार जन कल्याण में लगे हुए हैं। उनकी प्रत्येक क्रिया में जनकल्याण ही होता है।* *आज जैनी सबसे ज्यादा देश के विकास में अपना योगदान दे रहा है। देश भक्ति का अर्थ मात्र ये नही कि सीमा पर जा कर देश की रक्षा करना। बल्कि अपने कार्यों से अप्रत्यक्ष रूप से देश की मदद करना भी देश भक्ति है। जैनी अपनी कुशलता से ऐसा खर्च करता है, जिससे जन कल्याण होता ही है।*
👉 *किसी एक को पाप करने में जितना कर्म का बंध होता है। उतना ही पाप उस कार्य की अनुमोदना करने में होता है। जब भी कोई सामूहिक जनहानि होती है, ये लोग वही होते हैं, जिन्होंने कभी न कभी इसी प्रकार का सामूहिक पाप कर्म का बन्ध किया होगा।*
👉 *आत्महत्या का विचार मन में आने पर इतने बड़े पाप कर्म का बंध होता है, कि उसे न जाने कितनी बार बिना जन्म लिए मरना पड़ेगा। स्वप्न में भी कभी मरने का भाव नहीं करना चाहिए। यह बहुत ज्यादा अशुभ होता है।*
👉 भगवान के जन्म कल्याण के समय जब सौधर्म इंद्र उन्हें पांडुक शिला पर ले जा कर उनका अभिषेक करता है, तो उनके अभिषेक के जल को गृहस्थों को लेना ही चाहिए। इसका पारमार्थिक महत्व तो नही है, *परन्तु ये जल संसारी वैभव को दिलाने वाला होता है।*
👉 *बड़ों को किसी बात का उलाहना नहीं देना चाहिए । इससे हमारा पूण्य क्षीण हो जाता है।* किसी बात में फ़ैल होने पर ये सोचना चाहिए, मेरे ही पूण्य में कमी थी या मैंने पुरुषार्थ ठीक ढंग से नहीं किया। *हार नही मानना चाहिए पुनः पूरी शक्ति के साथ प्रयास करना चाहिए। एक रास्ते के बंद होने पर दूसरे कई नए रास्ते खुल जाते हैं।*
*नोट- पूज्य गुरुदेव जिज्ञासाओं को समाधान बहुत डिटेल में देते हैं। हम यहाँ मात्र उसका सार ही देते हैं। किसी को किसी सम्बंध में कोई शंका हो तो कृपया सुधाकलश app या youtube पर आज का वीडियो देख कर अपना समाधान कर सकते हैं। किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं।
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पिच्छी कमंडलुधारी गुरुवर, नमन तुम्हें हम करते हैं।
अष्टद्रव्य का थाल सजाकर, अर्घ समर्पण करते हैं।।
युग के आदर्श विद्यासागर जी के, चरणो में अभिवंदन है।
तेरी पावन प्रतिभा लखकर, मेरा मन भी पावन है।।
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