Update
99 करोड़ मुनिराज की मोक्ष स्थली सिद्ध क्षेत्रे माँगी-तुंग़ी:) #सिद्धक्षेत्रमाँगीतुंग़ी #माँगीतुंग़ी #mangitungi #Jainism #SiddhakshetraMangiTungi
Source: © Facebook
News in Hindi
भाग्य के भरोसे नहीं बैठे रहो, पुरूषार्थ करना है जरूरी #मुनिसमयसागर जी / #AcharyaVidyaSagar #MuniSamaySagar #आचार्यविद्यासागर
पुरूषार्थ के बिना कोई काम संभव नहीं है। भाग्य के भरोसे रहोगे तो तीन काल में भी कार्य संपन्न नहीं हो सकता। छोटी सी चींटी भी जब अपने मुंह में खाना लेकर पहाड़ रूपी लक्ष्य की ओर बढ़ती है, तो कई बार फिसलती है, लेकिन उसके द्वारा निरंतर प्रयास उसे सफलता दिलाते हैं। बिना कोशिश किए कोई काम नहीं हो सकता। सहयोग तो बाद में होता है पहले योग होता है। मानव पुरूषार्थ तो करता नहीं है पहले सहयोग की अपेक्षा करने लगता है। पुरूषार्थ तो उसे स्वयं करना पड़ेगा, बाद में कहीं कोई कमी को पूरा करने में सहयोग निमित्त बन जाता है। पुरूषार्थ सही दिखा में हो इसके लिए जरूरी है, मन का एकाग्रचित होना, और मन को संयमित-एकाग्रचित बनाने के लिए इंद्रियों पर विजय पाना जरूरी है। उक्त आध्यात्मिक धर्मोपदेश जैनाचार्य विद्यासागरजी महाराज के ज्येष्ठ-श्रेष्ठ शिष्य मुनिश्री समय सागरजी महाराज ने वासुपूज्य जिनालय पर आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। मुनिश्री ने कहा कि इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं होने के कारण श्रावक मंदिरों में तमाम पूजन, पाठ, भक्ति करता है लेकिन उसके बाद भी मन अन्यत्र चला जाता है। इसका कारण है धर्म पर संपूर्ण श्रद्धा, आस्था नहीं होना। इसलिए तमाम धार्मिक क्रियाएं करने के बावजूद मन नियंत्रण में नहीं रहता।
एक विद्यार्थी के लिए भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मन को स्थिर करना जरूरी है। मन जो स्थिर होगा वह किसी एक कार्य में लगाने से होगा। एक साथ दो जगह मन को लगाओगे तो सफलता प्राप्त नहीं होगी। मुनिश्री ने कहा कि लौकिक क्षेत्र में पुरूषार्थ करते हुए इंसान थकावट महसूस नहीं करता, लेकिन धार्मिक क्षेत्र में उसे जल्दी थकावट महसूस होने लगती है। जबकि धार्मिक क्षेत्र में किए गए पुरूषार्थ का आनंद लौकिक क्षेत्र से अनंत गुना ज्यादा है।
--- www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---
#Jainism #Jain #Digambara #Nirgrantha #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #RishabhaDev #Ahinsa #Nonviolence
Source: © Facebook