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*गौरवशाली क्षण*
👉 राजस्थान सरकार द्वारा गणतंत्र दिवस पर तेयुप, जयपुर को सम्मानित किया जायेगा।
👉 कालू - मिठाई बनाओ प्रतियोगिता का आयोजन
👉 दिल्ली - आध्यात्मिक मिलन
👉 दिल्ली - कम्बल व ऊनी वस्त्र वितरण
प्रसारक -🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 अहिंसा यात्रा का जलपाईगुड़ी जिले में प्रवेश
👉 पूज्यवर का प्रेरणा पाथेय
👉 आदमी को जागरूक रहकर अपने समय का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए और क्षण मात्र भी प्रमाद करने से बचने का प्रयास करना चाहिए- आचार्य श्री महाश्रमण
👉 भोटपट्टी के श्रावको को दिलाये अहिंसा यात्रा के संकल्प
👉 भोटपट्टी से पूज्यवर के आज के प्रवचन के अंश
दिनांक - 24 जनवरी 2017
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प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद 🌻
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आचार्य तुलसी की कृति...'श्रावक संबोध'
📕अपर भाग📕
📝श्रृंखला -- 200📝
*जैन-संस्कार विधि*
*44.*
शिष्टता संयम अहिंसा
साधना संस्कार हो,
और जयणा सजगता से
धर्म का व्यवहार हो।
'सेवं भंते!' 'तहत्ति गुरुवर!'
सिर झुकाकर विनय से,
बड़ों के, गुरु के वचन
स्वीकार हों स्थिर हृदय से।
की कृपा करुणा,
अनुग्रह किया, करते ही रहें,
सदा आभारी रहूं,
सद्भाव भरते ही रहें।।
*अर्थ--* श्रावक अपने जीवन में शिष्टता, संयम और अहिंसा के संस्कारों को पुष्ट करें। वे धर्म के हर व्यवहार में यतना-संयम और सजगता का परिचय दें। गुरु आदि महान् व्यक्तियों के शिक्षावचनों को शांत मन से सिर झुकाकर विनयपूर्वक स्वीकार करें। वे *'सेवं भंते!'* *'तहत गुरुवर!'* जैसे सांस्कृतिक शब्दों का प्रयोग करते हुए कहें-- *'आपने मुझ पर बड़ी कृपा की, करुणा की, अनुग्रह किया। भविष्य में भी आप इसी तरह अनुग्रह करते रहें और मेरे जीवन में सद्गुण भरते रहें। मैं सदा आपका आभारी रहूंगा।'*
*भाष्य--* साधु और श्रावक का आपस में संबंध है। श्रावक के बिना साधु का काम नहीं चलता और साधु के बिना श्रावक को आध्यात्मिक पथदर्शन नहीं मिलता। साधु खुले मुंह नहीं बोलता, मुख पर मुखवस्त्रिका रखता है। इससे तीन बातें फलित होती हैं-
*(1)* अहिंसा साधु का व्रत है। बोलते समय वायुकायिक जीवों की हिंसा से बचने में मुखवस्त्रिका उपयोगी बनती है।
*(2)* मुखवस्त्रिका वाणी-संयम का प्रतीक है। वह साधक को यह स्मरण दिलाती है कि उसे अनावश्यक नहीं बोलना है।
*(3)* प्रवचन या बातचीत करते समय मुंह से थूक न उछले, इस दृष्टि से मुखवस्त्रिका का उपयोग है।
इन तीनों बातों को ध्यान में रखकर श्रावक भी सामायिक की साधना, साधुओं के साथ वार्तालाप और धर्मचर्चा करते समय मुखवस्त्रिका या मुखवस्त्र का उपयोग करें तो सहज रूप में यतना और सजगता रखी जा सकती है।
श्रावक आपस में बातचीत करते हैं तो 'हां', 'जी' आदि शब्दों का प्रयोग करते हैं। आचार्य या साधु-साध्वियों के साथ बात करते समय भी कुछ लोग इन्हीं शब्दों का प्रयोग कर लेते हैं। ये शब्द गलत नहीं हैं, पर संस्कृति के सूचक भी नहीं हैं। जैन परम्परा में दो वाक्य विशेष रूप से प्रचलित हैं-- *'सेवं भंते!'* *'तहत्ति गुरुवर!'* ये प्राकृत भाषा के वाक्य हैं। साधारण भाषा में कहा जाता है-- *'तहत गुरुदेव!'*
*अनुग्रह और निग्रह--* ये दोनों काम गुरु के हैं। उचित काम करने पर गुरु का अनुग्रह (कृपा) उपलब्ध होता है और गलत काम होने पर निग्रह (उपालम्भ, दण्ड) मिलता है। शिष्य के लिए आवश्यक है कि वह दोनों स्थितियों में सन्तुलित रहे और गुरु के प्रति आभार प्रकट करता हुआ कहे-- *'गुरुदेव आपने कृपा की, करुणा की, अनुग्रह किया। आप मुझ पर इसी प्रकार अनुग्रह करते रहें, मेरे जीवन में सद्गुण भरते रहें, मुझे अमृत के प्याले पिलाते रहें और दिशादर्शन देते रहें। मैं आपके इस आभार को कभी नहीं भूलूंगा।'* गुरु के प्रति शिष्टाचार की यह विधि मुख्यतः साधु-साध्वियों के लिए है। क्योंकि यह लोकोपचार विनय है। विनय के सात प्रकारों में लोकोपचार विनय का भी महत्त्व है और उसे शिष्ट समाज का लक्षण माना गया है।
*श्रावक अनेक प्रकार के धार्मिक लौकिक और लोकोत्तर पर्व मनाते हैं। इन्हें कैसे मनाएं?* जानने-समझने के लिए पढ़ें... हमारी अगली पोस्ट... क्रमशः कल।
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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News in Hindi
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👉 आज के "मुख्य प्रवचन" के कुछ विशेष दृश्य..
दिनांक - 24/01/2017
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प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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दिनांक - 24/01/2017
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