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दिनांक 18 - 03- 2017 के विहार और पूज्य प्रवर के प्रवचन का विडियो
प्रस्तुति - अमृतवाणी
सम्प्रेषण -👇
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
👉 कोच्चि - टूटते परिवार कारण ओर निवारण कार्यशाला
👉 सादुलपुर - मंगल प्रवेश एवं आध्यात्मिक मिलन
👉 ऐरोली - कैसे बने आदर्श कार्यकर्त्ता
👉 कोलकाता - रास्ते की सेवा "कल्याणम्" निरंतर प्रवाहमान
👉 कटक (ओडिशा): टी पी फ द्वारा GST पर कार्यशाला का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का ओडियो:
👉 *विषय -वृतियां और विधुत*
👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*
*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
प्रसारक: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 राजसमन्द - अणुव्रत कार्यकर्ता संगोष्ठी व सम्मान समारोह
👉 चेन्नई - अणुव्रत की गूँज
👉 कटक - आध्यात्मिक मिलन समारोह आयोजित
👉 नालासोपारा (मुम्बई) - एक शाम भिक्षु के नाम
👉 गदग - आध्यात्मिक मिलन
प्रस्तुति -🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 32 - *प्रतियोगिता व साहित्य विक्रय*
*डायरेक्टरी प्रकाशन* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 7* 📝
*आचार्यों के काल का संक्षिप्त सिंहावलोकन*
*वर्तमान जैन परंपरा और तीर्थंकर महावीर*
वर्तमान जैन शासन की परंपरा भगवान् महावीर से संबंधित है। महावीर का निर्वाण विक्रम पूर्व 470 में हुआ। भगवान् महावीर के शासन में इंद्रभूति गौतम आदि 14 हजार साधु चंदनबाला आदि 36 हजार साध्वियां थीं। आनंद आदि 1 लाख 59 हजार श्रावक और जयंती आदि 3 लाख 18 हजार श्राविकाएं थीं। यह व्रत धारी श्रावक-श्राविकाओं की संख्या थी। उस युग के अनेक प्रभावी शासक भी तीर्थंकर महावीर के अनुयायी बने। सर्वज्ञ प्रभु के मार्गदर्शन में धर्म-संघ सुगठित एवं व्यवस्थित था।
*संघ व्यवस्था*
भगवान महावीर के संग की संचालन विधि सुनियोजित थी। उनके संघ में ग्यारह गणधर, नौ गण और सात पद थे। गण की शिक्षा-दीक्षा में सातों पदाधिकारियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता था। आचार्य गण संचालन का कार्य करते, उपाध्याय प्रशिक्षण की व्यवस्था करते और सूत्रार्थ वाचना करते, स्थविर श्रमणों को संयम में स्थिर करते, प्रवर्तक आचार्य द्वारा निर्दिष्ट धार्मिक प्रवृतियों का संघ में प्रवर्तन करते। गणी श्रमणों के छोटे समूह का नेतृत्व करते, गणधर दिनचर्या का ध्यान रखते और गणावच्छेदक संघ की अंतरंग व्यवस्था करते तथा धर्मशासन की प्रभावना में लगे रहते।
*समकालीन श्रमण परंपराएं*
भगवान महावीर के समकालीन श्रमण परंपरा के अन्य पांच विशाल संप्रदाय विद्यमान थे। उनमें कुछ संप्रदाय महावीर के संघ से भी अधिक विस्तृत थे। उन पांचों संप्रदायों का नेतृत्व क्रमशः 1. पूरणकाश्यप 2. मंखलिगोशालक 3. अजितकेश कंबली 4. पकुघकात्यायन 5. संजयवेलट्ठिपुत्र कर रहे थे। परिस्थितियों के वात्याचक्र से वे पांचों संप्रदाय काल के गर्भ में विलीन हो गए। वर्तमान में उनका साहित्यक रूप ही उपलब्ध है। साहित्य उपलब्ध नहीं है।
गोशालक आजीवक संप्रदाय का प्रमुख था। जैन और बौद्ध ग्रंथों में इस संप्रदाय का उल्लेख उपलब्ध है। शाक्य पुत्र गौतम बुद्ध ने धर्म की स्थापना की। वह भी श्रमण परंपरा की एक विशाल शाखा थी। समय परिवर्तन के साथ बौद्ध धारा विदेशों की ओर प्रवाहित हुई और भारत से विच्छिन्न प्रायः हो गई थी। आज भारत में बौद्धों की संख्या पुनः लाखों तक पहुंच गई है। अनेक बौद्ध श्रमण हैं फिर भी विदेशों की अपेक्षा भारत में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार कम है।
वर्तमान में अध्यात्म प्रधान इस धरा पर तीर्थंकर महावीर का संप्रदाय गौरव के साथ प्रारंभ से अब तक सदा गतिमान रहा है। यह श्रेय जैनाचार्यों की विशिष्ट क्षमताओं और प्रतिभाओं को है। भगवान् महावीर की उत्तरवर्ती आचार्य परंपरा में अनेक प्रखर प्रतिभा संपन्न, तेजस्वी, वर्चस्वी, मनस्वी और यशस्वी आचार्य हुए।
*काल-विभाजन*
लेखिका (साध्वी श्री संघमित्रा जी) ने भगवान् महावीर से अब तक के आचार्यों के काल को तीन भागों में विभक्त किया है--
*1. आगम युग*
*2. उत्कर्ष युग*
*3. नवीन युग*
*भगवान् महावीर के बाद आचार्यों की परंपरा गणधर सुधर्मा से प्रारंभ होती है। दिगंबर परंपरा में यह श्रेय गणधर गौतम को है। सुधर्मा की जैन संघ को सबसे बड़ी देन द्वादशांगी की रचना है। श्रमण-सहस्रांशु आचार्य सुधर्मा का संक्षिप्त जीवन परिचय* पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*लयबद्ध श्वास*
1. लयात्मक श्वास मस्तिष्क को उचित मात्रा में आक्सीजन पहुंचाता है। (मस्तिष्क के लिए ऑक्सीजन शरीर से तीन गुना अधिक आवश्यक है।)
2. लयबद्ध श्वास से शरीर और मस्तिष्क को आराम मिलता है।
3. अपान (कामवृत्ति) पर नियंत्रण होता है।
4. संवेद (sense energy) का नियंत्रण होता है।
5. संवेग (Emotion) पर नियंत्रण होता है।
6. विचार पर नियंत्रण होता है।
18 मार्च 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 7📝
*आचार-बोध*
*चारित्राचार के भेद प्रभेद*
*(अनुष्टुप्)*
*23.*
दशधा श्रामणो धर्मः, शीलरक्षा सुसंयमः।
भावनाथ समाचारी, दूषणानि परिषहाः।।
*24.*
असमाधिश्च शबला हेया आशातना सदा।
इमे चारित्र-आचाराः विस्तरेण विवर्णिताः।।
(युग्मम्)
*4. चारित्राचार के भेद-प्रभेद--*
चारित्राचार का विस्तृत विवेचन किया जाए तो उसके बहुत भेद-प्रभेद होते हैं।
यहां कुछ भेदों की चर्चा की गई है--
🔹श्रमण धर्म के 10 प्रकार।
🔹ब्रम्हचर्य की रक्षा के 10 प्रकार।
🔹संयम के 17 प्रकार।
🔹भावना के 25 प्रकार।
🔹सामाचारी के 10 प्रकार।
🔹भिक्षा के 47 दोष।
🔹परिषहों के 22 प्रकार।
🔹असमाधिस्थान के 20 प्रकार।
🔹शबल के 21 प्रकार।
🔹आशातना के 33 प्रकार।
*श्रमण धर्म के 10 प्रकारों* के बारे में जानेंगे-समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 आज के मुख्य प्रवचन के कुछ विशेष दृश्य..
👉 गुरुदेव मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए..
👉 प्रवचन स्थल: "पीरोछा"
दिनांक - 18/03/2017
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News in Hindi
👉 पूज्य प्रवर का आज का लगभग 13.5 किमी का विहार..
👉 आज का प्रवास - पीरोछा
👉 आज के विहार के दृश्य..
दिनांक - 18/03/2017
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18 मार्च का संकल्प
*pतिथि:- चैत्र कृष्णा षष्ठी*
सामायिक में समता भाव व जप-स्वाध्याय का क्रम ।
ज्ञानोपार्जन व कर्म निर्जरण का है ये अच्छा उपक्रम ।।
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