Update
09 अप्रैल का संकल्प
*तिथि:- चैत्र शुक्ला त्रियोदशी*
रीढ़ की हड्डी सम होती मर्यादा में आस्था ।
देती जीवन में उच्चतम लक्ष्यों का रास्ता ।।
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 फरीदाबाद - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 भुवनेश्वर - "आज के समय मे अणुव्रत के परिपेक्ष्य मे जैन धर्म की महत्ता" विषय पर कार्यशाला का आयोजन
👉 बगड़ी नगर (सुधरी) - 257 वां भिक्षु अभिनिष्क्रमण दिवस
👉 उतर हावड़ा (कोलकत्ता) - महावीर जयंती के उपलक्ष में अहिंसा रैली का आयोजन
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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दिनांक 08- 04- 2017 के विहार और पूज्य प्रवर के प्रवचन का विडियो
प्रस्तुति - अमृतवाणी
सम्प्रेषण -👇
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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
👉 *पूज्य प्रवर का प्रवास स्थल - वर्धमान मेडिकल कॉलेज, "पावापुरी" में*
👉 *गुरुदेव मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए..*
👉 *आज के मुख्य प्रवचन के कुछ विशेष दृश्य..*
दिनांक - 08/04/2017
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*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा भगवान महावीर जयंती पर प्रदत्त पावन सन्देश
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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*
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👉 परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा- भगवान महावीर जयंती पर विशेष सन्देश का वीडियो
प्रस्तुति - अमृतवाणी
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 25* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*ज्योतिपुञ्ज आचार्य जम्बू*
*अभिनिष्क्रमण और दीक्षा*
प्रभात के समय विशाल जनसमूह के साथ वैरागी जम्बू का मुनि दीक्षा स्वीकार करने के लिए घर से अभिनिष्क्रमण हुआ। वाद्य बज रहे थे। मंगल गीत गाए जा रहे थे। जम्बू का रथ आगे बढ़ रहा था। जंबूद्वीप के अधिपति अनादृत (अणाढ़िय) देव ने अभिनिष्क्रमणोत्सव मनाया। मगधाधिपति कोणिक का भी चतुरंगिणी सेना के साथ इस महोत्सव प्रसंग पर आगमन हुआ। दीक्षार्थी को संबोधित करते हुए मगध नरेश ने कहा
'धीर पुरुष जम्बू! तुम्हारा जन्म कृतार्थ हुआ। तुम्हारा कुल प्रशंसनीय बना है। मोह का परित्याग कर तुमने उत्तम मार्ग ग्रहण करने का निश्चय किया है।' *(जम्बूचरियं, उ. 6)*
नरेश ने जम्बू से कहा 'हमारे द्वारा जो करणीय है उसे मुक्त भाव से कहो।' जम्बू में प्रभव की ओर संकेत कर कहा 'राजन! यह प्रभव चोर भी वैराग्य भाव को प्राप्त कर मेरे साथ मुनि बनने जा रहा है। आपके राज्य में इसने जो अपराध किए हैं उसके लिए आप आज से इसे क्षमा कर दें।' *(जम्बूचरियं उ. 16)*
जम्बू के प्रत्युत्तर में नरेश्वर कोणिक ने कहा "आप दोनों अविघ्न भाव से श्रमण धर्म को स्वीकार करें। मैं इस महानुभाव के समग्र अपराधों को क्षमा करता हूं।" *(जम्बूचरियं उ. 16)*
नरवर कोणिक का आशीर्वाद प्राप्त कर जम्बू और प्रभव प्रसन्न हुए।
दिगंबर ग्रंथों के अनुसार जम्बू के अभिनिष्क्रमण के समय सम्राट श्रेणिक उपस्थित हुआ। श्रेष्ठी कुमार जम्बू को आभूषणों से सुसज्जित किया एवं हस्तिरत्न पर उसे बैठाया।
श्वेतांबर ग्रंथों के अनुसार सम्राट श्रेणिक का देहावसान सर्वज्ञ श्री संपन्न तीर्थंकर महावीर के समय में ही हो गया था, अतः इस प्रसंग पर नरवर कोणिक था।
राजगृह के गुणशीलचैत्य में वी. नि. 1 में आचार्य सुधर्मा द्वारा श्रेष्ठीकुमार जम्बू आदि 527 व्यक्तियों को मुनि दीक्षा प्रदान की गई।
दिगंबर ग्रंथों के अनुसार जम्बू के साथ विद्युच्चर चोर माता जिनमती और पद्मश्री आदि ने भी श्रमण-दीक्षा ग्रहण की। जिनमती आदि साध्वियों को सुप्रभा साध्वी का संरक्षण प्राप्त हुआ। आचार्य पद पर आसीन होते ही आचार्य सुधर्मा को इतने विशाल परिवार के साथ जम्बू जैसे योग्य शिष्य का मिलना शुभंकर था।
*मुनि जीवन में जम्बू*
मुनि जम्बू कुशाग्र बुद्धि के स्वामी थे। वे अपनी सर्वग्राही एवं सद्यःग्राही प्रतिभा के द्वारा आचार्य सुधर्मा के अगाध ज्ञानसिंधु को अगस्त्य ऋषि की तरह पी गए।
आगम की अधिकांश रचना जम्बू के प्रिय संबोधन से प्रारंभ हुई। *"जम्बू! सर्वज्ञ श्री वीतराग भगवान महावीर से मैंने ऐसा सुना है।"* आचार्य सुधर्मा का यह वाक्य आगमों में अत्यंत विश्रुत है।
समग्र सूत्रार्थ ज्ञाता, विश्रुत कीर्ति, विविध गुणों के धारक जम्बू ने आचार्य सुधर्मा के बाद आचार्य पद का दायित्व संभाला। आचार्य पद ग्रहण करने के समय जम्बू की अवस्था 36 वर्ष की थी। आचार्य पद ग्रहण का समय वी. नि. 20 (वी. पू. 450) है।
*पूर्व भवों में सुधर्मा और जम्बू के क्या संबंध थे...?* पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 25📝
*आचार-बोध*
*18. शबल*
जिस आचरण के आसेवन से उज्जवल चारित्र में धब्बे लग जाते हैं, उस आचरण या आचरणकर्ता को शबल कहा जाता है। शबल के 21 प्रकार हैं--
*1.* हस्तकर्म-अप्राकृतिक मैथुन सेवन करने वाला।
*2.* मैथुन का प्रतिसेवन करने वाला।
*3.* रात्रि भोजन करने वाला।
*4.* आधाकर्म आहार करने वाला।
*5.* शय्यातर पिंड खाने वाला।
*6.* बार-बार अशन आदि का परित्याग कर उसे खाने वाला।
*7.* औद्देशिक, क्रीत और सामने लाकर दिया गया आहार करने वाला।
*8.* छह महीनों में एक गण से दूसरे गण में जाने वाला।
*9.* एक महीने में तीन उदकलेप लगाने वाला- नाभिप्रमाण जल का अवगाहन करने वाला।
*10.* एक महीने में तीन माया स्थान का सेवन करने वाला- विशेष कुटिलता करने वाला।
*11.* राज्याभिषेक के अवसर पर बनने वाले विशिष्ट राजपिंड को खाने वाला।
*12.* अभिमुखतापूर्वक- जानकर प्राणातिपात करने वाला।
*13.* अभिमुखतापूर्वक असत्य संभाषण करने वाला।
*14.* अभिमुखतापूर्वक चोरी करने वाला।
*15.* अभिमुखतापूर्वक कंबल आदि का व्यवधान डाले बिना पृथ्वी पर खड़ा रहने या बैठने वाला।
*16.* अभिमुखतापूर्वक जल से स्निग्ध और रजों से संसृष्ट पृथ्वी पर खड़ा रहने या बैठने वाला।
*17.* अभिमुखतापूर्वक सचित्त शिला आदि या जीव सहित आश्रय में खड़ा रहने या बैठने वाला।
*18.* अभिमुखतापूर्वक सचित्त मूल, कंद आदि खाने वाला।
*19.* एक वर्ष में दस उदकलेप लगाने वाला।
*20.* एक वर्ष में दस माया स्थान का सेवन करने वाला।
*21.* सचित्त पानी से गीले हाथों से बार-बार आहार-पानी लेने वाला।
(समवाओ 21/1)
*आशातना* के बारे में जानेंगे-समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*ब्रह्म केन्द्र*
ब्रह्म केन्द्र का स्थान जीभ है ।तंत्र साधना के अनुसार यह ज्ञानेन्द्रिय है ।इसका कर्मेन्द्रिय जननेन्द्रिय हैं । जीभ का असंयम कामवासना को उद्दिप्त करता है । इसका संयम ब्रह्म केन्द्र की साधना में सहयोगी बनता है ।
हठयोग में जीभ और तालु के मिलन को खेचरी मुद्रा कहा जाता है । वह हठयोग की एक विशिष्ट साधना है । साधारण आदमी खेचरी मुद्रा की साधना नही कर सकता किन्तु जीभ को उलटकर तालु की ओर ले जा सकता है । यह एकाग्रता और वृत्ति परिष्कार के लिए बहुत मूल्यवान प्रयोग है ।
8 अप्रैल 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 50 - *सम्मान*
*मंच व्यवस्था* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....
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दिनांक - 08/04/2017
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📝 *श्रंखला -- 25* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*ज्योतिपुञ्ज आचार्य जम्बू*
*अभिनिष्क्रमण और दीक्षा*
प्रभात के समय विशाल जनसमूह के साथ वैरागी जम्बू का मुनि दीक्षा स्वीकार करने के लिए घर से अभिनिष्क्रमण हुआ। वाद्य बज रहे थे। मंगल गीत गाए जा रहे थे। जम्बू का रथ आगे बढ़ रहा था। जंबूद्वीप के अधिपति अनादृत (अणाढ़िय) देव ने अभिनिष्क्रमणोत्सव मनाया। मगधाधिपति कोणिक का भी चतुरंगिणी सेना के साथ इस महोत्सव प्रसंग पर आगमन हुआ। दीक्षार्थी को संबोधित करते हुए मगध नरेश ने कहा
'धीर पुरुष जम्बू! तुम्हारा जन्म कृतार्थ हुआ। तुम्हारा कुल प्रशंसनीय बना है। मोह का परित्याग कर तुमने उत्तम मार्ग ग्रहण करने का निश्चय किया है।' *(जम्बूचरियं, उ. 6)*
नरेश ने जम्बू से कहा 'हमारे द्वारा जो करणीय है उसे मुक्त भाव से कहो।' जम्बू में प्रभव की ओर संकेत कर कहा 'राजन! यह प्रभव चोर भी वैराग्य भाव को प्राप्त कर मेरे साथ मुनि बनने जा रहा है। आपके राज्य में इसने जो अपराध किए हैं उसके लिए आप आज से इसे क्षमा कर दें।' *(जम्बूचरियं उ. 16)*
जम्बू के प्रत्युत्तर में नरेश्वर कोणिक ने कहा "आप दोनों अविघ्न भाव से श्रमण धर्म को स्वीकार करें। मैं इस महानुभाव के समग्र अपराधों को क्षमा करता हूं।" *(जम्बूचरियं उ. 16)*
नरवर कोणिक का आशीर्वाद प्राप्त कर जम्बू और प्रभव प्रसन्न हुए।
दिगंबर ग्रंथों के अनुसार जम्बू के अभिनिष्क्रमण के समय सम्राट श्रेणिक उपस्थित हुआ। श्रेष्ठी कुमार जम्बू को आभूषणों से सुसज्जित किया एवं हस्तिरत्न पर उसे बैठाया।
श्वेतांबर ग्रंथों के अनुसार सम्राट श्रेणिक का देहावसान सर्वज्ञ श्री संपन्न तीर्थंकर महावीर के समय में ही हो गया था, अतः इस प्रसंग पर नरवर कोणिक था।
राजगृह के गुणशीलचैत्य में वी. नि. 1 में आचार्य सुधर्मा द्वारा श्रेष्ठीकुमार जम्बू आदि 527 व्यक्तियों को मुनि दीक्षा प्रदान की गई।
दिगंबर ग्रंथों के अनुसार जम्बू के साथ विद्युच्चर चोर माता जिनमती और पद्मश्री आदि ने भी श्रमण-दीक्षा ग्रहण की। जिनमती आदि साध्वियों को सुप्रभा साध्वी का संरक्षण प्राप्त हुआ। आचार्य पद पर आसीन होते ही आचार्य सुधर्मा को इतने विशाल परिवार के साथ जम्बू जैसे योग्य शिष्य का मिलना शुभंकर था।
*मुनि जीवन में जम्बू*
मुनि जम्बू कुशाग्र बुद्धि के स्वामी थे। वे अपनी सर्वग्राही एवं सद्यःग्राही प्रतिभा के द्वारा आचार्य सुधर्मा के अगाध ज्ञानसिंधु को अगस्त्य ऋषि की तरह पी गए।
आगम की अधिकांश रचना जम्बू के प्रिय संबोधन से प्रारंभ हुई। *"जम्बू! सर्वज्ञ श्री वीतराग भगवान महावीर से मैंने ऐसा सुना है।"* आचार्य सुधर्मा का यह वाक्य आगमों में अत्यंत विश्रुत है।
समग्र सूत्रार्थ ज्ञाता, विश्रुत कीर्ति, विविध गुणों के धारक जम्बू ने आचार्य सुधर्मा के बाद आचार्य पद का दायित्व संभाला। आचार्य पद ग्रहण करने के समय जम्बू की अवस्था 36 वर्ष की थी। आचार्य पद ग्रहण का समय वी. नि. 20 (वी. पू. 450) है।
*पूर्व भवों में सुधर्मा और जम्बू के क्या संबंध थे...?* पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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*18. शबल*
जिस आचरण के आसेवन से उज्जवल चारित्र में धब्बे लग जाते हैं, उस आचरण या आचरणकर्ता को शबल कहा जाता है। शबल के 21 प्रकार हैं--
*1.* हस्तकर्म-अप्राकृतिक मैथुन सेवन करने वाला।
*2.* मैथुन का प्रतिसेवन करने वाला।
*3.* रात्रि भोजन करने वाला।
*4.* आधाकर्म आहार करने वाला।
*5.* शय्यातर पिंड खाने वाला।
*6.* बार-बार अशन आदि का परित्याग कर उसे खाने वाला।
*7.* औद्देशिक, क्रीत और सामने लाकर दिया गया आहार करने वाला।
*8.* छह महीनों में एक गण से दूसरे गण में जाने वाला।
*9.* एक महीने में तीन उदकलेप लगाने वाला- नाभिप्रमाण जल का अवगाहन करने वाला।
*10.* एक महीने में तीन माया स्थान का सेवन करने वाला- विशेष कुटिलता करने वाला।
*11.* राज्याभिषेक के अवसर पर बनने वाले विशिष्ट राजपिंड को खाने वाला।
*12.* अभिमुखतापूर्वक- जानकर प्राणातिपात करने वाला।
*13.* अभिमुखतापूर्वक असत्य संभाषण करने वाला।
*14.* अभिमुखतापूर्वक चोरी करने वाला।
*15.* अभिमुखतापूर्वक कंबल आदि का व्यवधान डाले बिना पृथ्वी पर खड़ा रहने या बैठने वाला।
*16.* अभिमुखतापूर्वक जल से स्निग्ध और रजों से संसृष्ट पृथ्वी पर खड़ा रहने या बैठने वाला।
*17.* अभिमुखतापूर्वक सचित्त शिला आदि या जीव सहित आश्रय में खड़ा रहने या बैठने वाला।
*18.* अभिमुखतापूर्वक सचित्त मूल, कंद आदि खाने वाला।
*19.* एक वर्ष में दस उदकलेप लगाने वाला।
*20.* एक वर्ष में दस माया स्थान का सेवन करने वाला।
*21.* सचित्त पानी से गीले हाथों से बार-बार आहार-पानी लेने वाला।
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*ब्रह्म केन्द्र*
ब्रह्म केन्द्र का स्थान जीभ है ।तंत्र साधना के अनुसार यह ज्ञानेन्द्रिय है ।इसका कर्मेन्द्रिय जननेन्द्रिय हैं । जीभ का असंयम कामवासना को उद्दिप्त करता है । इसका संयम ब्रह्म केन्द्र की साधना में सहयोगी बनता है ।
हठयोग में जीभ और तालु के मिलन को खेचरी मुद्रा कहा जाता है । वह हठयोग की एक विशिष्ट साधना है । साधारण आदमी खेचरी मुद्रा की साधना नही कर सकता किन्तु जीभ को उलटकर तालु की ओर ले जा सकता है । यह एकाग्रता और वृत्ति परिष्कार के लिए बहुत मूल्यवान प्रयोग है ।
8 अप्रैल 2000
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*श्रावक सन्देशिका*
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News in Hindi
👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 8.5 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - पावापुरी*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*
दिनांक - 08/04/2017
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