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👉 जयपुर - स्वच्छता प्रशिक्षण सेमिनार व मदर्स डे स्पेशल महिला मंडल (शहर) द्वारा अभियान
👉 जालना - महाराष्ट्रीय स्तरीय ज्ञानशाला संस्कार निर्माण शिविर
👉 नोखा - जैन संस्कार विधि के बढते चरण
👉 रामामंडी - सुखद-सहकार कार्यशाला
👉 फरीदाबाद - आचार्य श्री महाश्रमणजी के जन्मदिवस व पट्टोत्सव पर विविध कार्यक्रमों का आयोजन
👉 श्री डूंगरगढ़ - युवा दिवस पर कार्यक्रम आयोजित
👉 सादुलपुर-राजगढ़ - अणुव्रत आचार संहिता पट्ट भेंट
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*वृत्ति का रूपांतरण*
वृत्ति को बदलना सहज - सरल नही है । यदि उसका रूपांतरण न हो तो धर्म करने का अर्थ भी सीमित हो जाता है । इसलिए धर्म के मनीषियों ने वृत्ति रूपांतरण के उपायों पर विचार किया । उन उपायों में प्रतिपक्ष भावना और प्रतिपक्ष भावना के चित्र का निर्माण बहुत महत्वपूर्ण प्रयोग है । क्रोध की वृत्ति का रूपांतरण करने के लिए क्षमा की भावना एक उपाय है । क्षमा के चित्र का निर्माण करना अधिक शक्तिशाली उपाय है । इन उपायों का आलम्बन लेकर वृत्ति रूपांतरण के कठिन कार्य को सुगम बनाया जा सकता है ।
13 मई 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 54📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
(दोहा)
*49.*
पाली के बाजार का,
करें याद इतिहास।
स्थिरयोगी शिशु जीत मुनि,
बढ़ा विपुल विश्वास।।
*अर्थ*
*21. पाली के बाजार का...*
विक्रम संवत 1875 की बात है। उन दिनों मुनि हेमराजजी (सिरियारी) का पाली में प्रवास था। वे पाली के बाजार की दुकान में ठहरे हुए थे। एक दिन दुकान के सामने नाटक होने लगा। शहर के बड़े-बूढ़े, बच्चे, युवक आदि सभी नाटक देख रहे थे। संत अपने काम में लगे हुए थे। मुनि हेमराजजी के सहयोगी संतो में मुनि जीत भी थे। उनकी अवस्था मात्र चौदह वर्ष की थी। वे उस समय लेखन कर रहे थे। लिखते समय नाटक की ओर दृष्टि उठ जाना अस्वाभाविक बात नहीं थी। किंतु मुनि जीत इस प्रकार लिख रहे थे मानो सामने कुछ भी नहीं हो। नाटक के दृश्य और शब्द उनको अपनी ओर आकृष्ट नहीं कर पाए।
नाटक देखने वालों में एक वृद्ध व्यक्ति की आंखें मुनि जीत पर टिकीं। उसने नाटक देखना छोड़ मुनि जीत पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया। संभवतः उसने यह सोचा होगा कि छोटे साधु नाटक देखेंगे तो उन्हें तेरापंथ की आलोचना करने का एक अवसर मिल जाएगा। किंतु किशोर मुनि जीत की स्थितप्रज्ञता ने उसको प्रभावित कर लिया।
नाटक संपन्न हुआ। वृद्ध व्यक्ति लोगों के बीच खड़ा होकर बोला-- 'तेरापंथ की नींव सौ वर्ष की पक्की हो गई।' लोगों ने उसके कथन का अभिप्राय जानना चाहा। उसने कहा-- 'इस संघ के एक छोटे-से साधु में इतने गहरे संस्कार हैं! यह अपने कार्य में पूरी तरह दत्तचित्त है। हम बूढ़े-बूढ़े लोग नाटक देख रहे हैं और इस बालक साधु का मन कितना सुस्थिर है! जिस संघ में ऐसे साधु हैं, उसे कम से कम सौ वर्षों तक तो कोई हिला भी नहीं सकता।' वृद्ध की बात सुन अनेक लोगों ने आश्चर्यभरी दृष्टि से दुकान की ओर देखा। जीत मुनि उसी रुप में एकाग्रता के साथ लेखनकार्य कर रहे थे। उन्होंने देखा-- उस बालक साधु में तेरापंथ का उजला भविष्य प्रतिबिंबित हो रहा है।
*पूज्य जयाचार्य और मुनि सतीदासजी के परस्पर विशेष सौहार्द* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 54* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*भवाब्धिपोत आचार्य भद्रबाहु*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
आगमनिधि की सुरक्षा के लिए श्रमण संघाटक नेपाल पहुंचा। करबद्ध होकर श्रमणों में भद्रबाहु से प्रार्थना की। "संघ का निवेदन है कि आप वहां पधारकर मुनियों को दृष्टिवात की ज्ञान राशि से लाभान्वित करें।" भद्रबाहु ने अपनी साधना में विक्षेप समझते हुए इसे अस्वीकार कर दिया।
तित्थोगालिय पइन्ना के अनुसार संघ के दायित्व से उदासीन होकर आचार्य भद्रबाहु निरपेक्ष स्वरों में बोलते हैं
*सो भणति एव भणिए असिट्ठ किलिट्ठएण वयणेणं।*
*न हु ता अहं समत्थो इण्हि मे वायणं दाउं*
*।।28।।*
*अप्पट्ठे आउत्तस्स मज्झ किं वायणाए कायव्वं।*
*एवं च भणियमेत्ता रोसस्स वसं गया साहू*
*।।29।।*
श्रमणों! मेरा आयुष्यकाल कम रह गया है। इतने कम समय में अतिक्लिष्ट दृष्टिवाद की वाचना देने में मैं असमर्थ हूं। मैं समग्र भावेन आत्म हितार्थ अपने को नियुक्त कर चुका हूं। अब मुझे संघ को वाचना देकर करना भी क्या है?
भद्रबाहु के इस निराशाजनक उत्तर से श्रमण दुःखी हुए और उन्होंने संघीय विधि-विधानों की भूमिका पर आचार्य भद्रबाहु से प्रश्न किया
*एवं भणंतस्स तुहं को दंडो होई तं मुणसु*
*।।30।।*
संघ की प्रार्थना अस्वीकृत करने पर आपको क्या प्रायश्चित्त करना होगा? हमारी इस जिज्ञासा का आप समाधान करें।
आवश्यक चूर्णी के अनुसार समागत श्रमण संघाटक ने अपनी ओर से आचार्य भद्रबाहु के सामने कोई नया प्रश्न उपस्थित नहीं किया। आचार्य भद्रबाहु द्वारा वाचना प्रदान की अस्वीकृति पाकर वह संघ के पास लौटा और उसने सारा संवाद कहा। संघ को इससे क्षोभ हुआ पर दृष्टिवाद की वाचना आचार्य भद्रबाहु के अतिरिक्त और किसी से संभव नहीं थी। संघ के द्वारा विशेष प्रशिक्षण पाकर श्रमण संघाटक पुनः नेपाल में आचार्य भद्रबाहु के पास पहुंचा और उन्होंने विनम्र स्वरों में पूछा "संघ का प्रश्न है कि जो संघ की आज्ञा को अस्वीकृत कर दे उसके लिए किस प्रकार के प्रायश्चित्त का विधान है?"
पूर्वश्रुतसंपन्न श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु भी इस प्रश्न पर शास्त्रीय विधि-विधानों का चिंतन करते हुए गंभीर हो गए। श्रुतकेवली कभी मिथ्या भाषण नहीं करते। आचार्य भद्रबाहु के द्वारा यथार्थ निरूपण होगा, यह सब को दृढ़ विश्वास था। वैसा ही हुआ। आचार्य भद्रबाहु ने स्पष्ट घोषणा की "जो आगम वाचना प्रदान करने के लिए स्वीकृति नहीं देता है, जो संघ शासन का अपमान करता है, वह संघ से बहिष्कृत करने योग्य है।"
भद्रबाहु द्वारा उत्तर सुनकर श्रमण संघाटक ने उच्चघोष से कहा "आपने संघ की बात को अस्वीकृत किया है, अतः आप भी उस दंड के योग्य हैं।" तित्थोगालिय पइन्ना में इस प्रसंग पर श्रुत-निह्नव होने की घोषणा के साथ श्रमण संघ द्वारा 12 प्रकार के संभोग विच्छेद का उल्लेख भी है।
*क्या आचार्य भद्रबाहु को संघ ने बहिष्कृत कर दिया या आचार्य भद्रबाहु ने संघ की प्रार्थना को स्वीकार किया...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 10.5 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - तुमानि(पश्चिम बंगाल)*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*
दिनांक - 13/05/2017
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👉 चिदम्बरम (तमिलनाडु) - आध्यात्मिक मिलन
👉 हिसार - बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ अभियान
👉 केसिंगा (ओडिशा) - नशा मुक्ति अभियान
👉 केसिंगा (ओडिशा) - प्रेक्षा वाहिनी द्वारा प्रेक्षाध्यान कक्षा
👉 चेन्नई - पंचदिवसीय दक्षिणांचल बाल संस्कार निर्माण शिविर का शुभारंभ
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