Update
👉 हलारा (प.बंगाल) - *अणुव्रत महासमिति पदाधिकारी श्री चरणों मे..*
👉 हलारा (प.बंगाल) - *साध्वी प्रमुखा श्री जी द्वारा अणुव्रत पत्रिका का निरीक्षण..*
👉 चेन्नई: *श्री धर्मीचंद लुंकड़ सभा के अध्यक्ष निर्वाचित..*
👉 कुम्हारी (दुर्ग, छत्तीसगढ़) - आध्यात्मिक मिलन
👉 पटना - टेक्नोलॉजी का ज्ञान-बढ़ाएगा सशक्त पहचान पर कार्यशाला का आयोजन
👉 श्री डूंगरगढ़ - त्रि-दिवसीय कन्या संस्कार निर्माण शिविर के समापन समारोह का कार्यक्रम
👉 भादरा - जैन सम्मान समारोह
👉 रायपुर - मुनि श्री का मंगल प्रवेश
👉 पेटलावद: मप्र-छत्तीसगढ़ स्तरीय पांच दिवसिय "संस्कार निर्माण शिविर" का समापन्न
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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30 मई का संकल्प
*तिथि:- ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी*
एकाग्रचित्त हो करते जब हम प्रभु का सुमिरन ।
संग कायक्लेश अभ्यास से होता कर्म निर्जरण ।।
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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*पूज्यवर का प्रेरणा पाथेय*
*शांति का संदेश देते अहिंसा यात्रा संग हलारा पहुंचे शांतिदूत*
👉 *गर्मी और उमस बरकरार, पेड़ों ने मार्ग में धूप से किया बचाव*
👉 *अझापुर से लगभग दस किमी का विहार कर आचार्यश्री हलारा स्थित सेठिया कोल्ड स्टोरेज पहुंचे*
👉 *अनासक्ति की साधना कर जीवन को सुख बनाने का आचार्यश्री ने दिया ज्ञान*
👉 *उपस्थित कर्मियों ने स्वीकार किए अहिंसा यात्रा के संकल्प, श्रद्धालुओं ने दी भावाभिव्यक्ति*
दिनांक 29-05-2017
📝 धर्म संघ की तटस्थ व सटीक जानकारी आप तक पहुचाएं
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*संभेद प्रणिधान -- [ 2 ]*
संभेद परिधान की प्रक्रिया का ज्ञान आवश्यक है । अर्हं का जप या ध्यान करने वाले साधक को अर्हं के वलय की कल्पना करनी चाहिए । शरीर के चारों ओर अर्हं का वलय बना हुआ है और स्वयं उस वलय के मध्य स्थित है । इस विधि से अर्हं के साथ संश्लेष हो जाता है ।
संभेद प्रणिधान का अभ्यास अभेद प्रणिधान की पृष्ठभूमि बन जाता है ।
29 मई 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 67* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*भवाब्धिपोत आचार्य भद्रबाहु*
*साहित्य*
*व्यवहार-सूत्र*
यह तृतीय छेद सूत्र है। इसके दस उद्देशक हैं और लगभग 300 सूत्र हैं। वृहत्कल्प की भांति यह सूत्र गद्यात्मक है। इसमें मुनि आचार संहिता का निरूपण है तथा साधु-साध्वियों के पारस्परिक व्यवहार की अनेक शिक्षाएं और विधान हैं। आचार-शुद्धि की दृष्टि से कई प्रकार के प्रायश्चित का उल्लेख है।
प्रायश्चित के विभिन्न प्रकारों को समझने के लिए इस सूत्र का पहला, दूसरा उद्देशक आचार्य, उपाध्याय आदि की योग्यताओं को समझने के लिए, तृतीय उद्देशक आचार्य, उपाध्याय की महत्ता को समझने के लिए, चतुर्थ उद्देशक प्रवर्त्तनी की महत्ता को समझने के लिए, पंचम उद्देशक आचार्य, उपाध्याय के विशेषाधिकार को समझने के लिए, षष्ठ उद्देशक आचार्य, उपाध्याय की आज्ञा का महत्त्व समझने के लिए, सप्तम उद्देशक स्थविरों के उपकरण विशेष का बोध करने, अष्टम उद्देशक द्वादश भिक्षु प्रतिमाओं को समझने के लिए, नवम उद्देशक आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा, जीत इन पांच व्यवहारों का, तीन प्रकार के स्थविरों का, दीक्षा पर्याय के आधार पर आगम-वाचना ग्रहण करने के क्रम का एवं दशम उद्देशक वैयावृत्य (सेवाधर्म) के दस प्रकारों का ज्ञान करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
व्यवहार पक्ष को उजागर करने वाला यह व्यवहार सूत्र श्रमण और श्रमणियों के लिए विशेष उपयोगी है।
*निशीथ*
निशीथ छेदसूत्र है। छेदसूत्रों में इसका क्रम चौथा है। वृहत्कल्प और व्यवहार की भांति यह आचार्य भद्रबाहु की गद्यरचना है। ग्रंथ के 20 उद्देशक हैं एवं सूत्र की संख्या लगभग 1500 है। इसमें विशेष गोपनीय दोषो की चर्चा है, जो छद्मस्थता के कारण साधक के जीवन में संभव है। दोष विशुद्धि के लिए प्रायश्चित का विधान है। ग्रंथ में प्रायश्चित के चार प्रकार बताए हैं—
*(1)* गुरु-मास (मासगुरु)
*(2)* लघुमास (मासलघु)
*(3)* गुरु चातुर्मासिक
*(4)* लघु चातुर्मासिक।
प्रथम उद्देशक में गुरुमासिक प्रायश्चित का वर्णन है। द्वितीय उद्देशक से लेकर पांचवे उद्देशक तक लघुमासिक प्रायश्चित का, छठे से ग्यारहवें तक गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित का और आगे के उद्देशकों में लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित का वर्णन है। गुरुमास प्रायश्चित में उपवास, लघुमास प्रायश्चित में एकासन आदि दिए जाते हैं।
एक साथ कई दोष-आचरण करने पर अथवा दोष विशुद्धि के लिए प्राप्त प्रायश्चित विधि का तप पूर्ण होने से पूर्व किसी अन्य दोष का सेवन कर लेने पर विशेष प्रकार की तप-विधि का उल्लेख है। एक समान दोष सेवन करने पर मायापूर्वक आलोचना करने वाले को अधिक और सरल हृदय से आलोचना करने वाले के लिए कम प्रायश्चित का विधान है। बड़ा दोष सेवन करने पर उत्कृष्टतः षण्मासिक प्रायश्चित का विधान आगमों में है।
निशीथ का अर्थ है अप्रकाश। प्रायश्चित विषयक बातें सबके समक्ष गोपनीय और अप्रकाशनीय हैं। इन गोपनीय बिंदुओं का इस सूत्र में उल्लेख होने के कारण इस सूत्र का नाम निशीथ है। निश्चित और व्यवहार दोनों का विषय प्रायः समान है।
*आचार्य भद्रबाहु के जीवन वैशिष्ट्य, समय-संकेत और आचार्य-काल के बारे में संक्षिप्त जानकारी* प्राप्त करेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 67📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
(नवीन छन्द)
*60.*
खिलते गुलाब-सी जो कोमल,
मघवा गणपति की सहोदरी,
थी सरस्वती का रुप सुघड़,
आभा उसकी गण में निखरी।
वह सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति,
अंतर्मुखता की बाट बही,
साध्वीप्रमुखा श्री लाडांजी,
हर स्थिति में जो समरूप रही।।
*32. खिलते गुलाब-सी...*
तेरापंथ धर्मसंघ की द्वितीय साध्वीप्रमुखा गुलाब पंचम आचार्यश्री मघवा की छोटी बहन थीं। शरीर से कोमल, मन से सरल और बुद्धि की भंडार साध्वी गुलाब तेरापंथ धर्मसंघ में सबसे कम वय में दीक्षित होने वाली साध्वी थीं। वे पापभीरू, आचारनिष्ठ और अनुशासनकुशल साध्वी थीं। उनके शरीर की त्वचा इतनी पारदर्शी थी कि वे पानी पीतीं तो पानी गले से नीचे उतरता हुआ दिखाई देता था। मघवा और गुलाब— भाई-बहनों की वह सुंदर जोड़ी यौगलिक युग के युगलों की स्मृति दिलाने वाली थी।
साध्वी गुलाब एक प्रतिभासंपन्न साध्वी थीं। उनकी व्याख्यानशैली आकर्षक थी। वे पन्नों को उल्टा और सीधा दोनों ओर से पढ़ने में कुशल थीं। उनकी मेघा और स्मरण शक्ति इतनी विलक्षण थी कि वे एक साथ पांच-सात गाथाओं को सुनकर ज्यों का त्यों दोहरा देती थीं। संस्कृत पढ़ने वाली और पद्य रचना करने वाली साध्वियों में प्रथम स्थान उनका था। विद्वान लोग उनके दर्शन कर उन्हें सरस्वती का रूप मानते थे। उनकी लिपि बहुत सुंदर थी और प्रतिलिपि करने में उन्हें पूरी दक्षता प्राप्त थी। श्रीमज्जयाचार्य ने सबसे बड़े जैन आगम *'भगवती सूत्र'* की राजस्थानी भाषा में जोड़ (पद्यबद्ध भाष्य) की। उसकी प्रतिलिपि साध्वी गुलाब ने की। जयाचार्य आशु कविता के रूप में पद्य बोलते और साध्वी गुलाब प्रायः एक बार सुनकर उन्हें लिपिबद्ध कर लेतीं। *'भगवती जोड़'* के संपादन-काल में अनुभव हुआ की गुलाब सती ने उसको लिखकर कितना कठिन काम किया था। उनके हाथ से लिखी हुई *'भगवती जोड़'* की वह सुंदर प्रति आज भी हमारे धर्मसंघ के 'पुस्तक भंडार' में सुरक्षित है।
विक्रम संवत 1927 में साध्वीप्रमुखा सरदारांजी का स्वर्गवास होने पर श्रीमज्जयाचार्य ने साध्वी गुलाब को साध्वीप्रमुखा के रूप में नियुक्त किया। इस गरिमापूर्ण दायित्व का उन्होंने पूरी निष्ठा से वहन किया। लगभग 11 वर्ष तक उन्होंने जयाचार्य के युग में साध्वीप्रमुखा के रूप में काम किया। जयाचार्य के बाद मघवागणी की सेवा का मौका उनको केवल 4 वर्ष ही मिला।
विक्रम संवत 1942 में मघवागणी के साथ उनका चातुर्मास्य जोधपुर में था। वहां कविराज ने मघवागणी के दर्शन किए। उन्होंने उनको साध्वीप्रमुखा गुलाब के दर्शन करने की प्रेरणा दी। उनके दर्शन करने के बाद कविराजजी बोले— 'महाराज! मैं देश में बहुत घुमा हूं। अनेक राजघरानों (रावलों) में जाने का अवसर मिला है। मैंने अनेक महिलाएं देखी हैं, पर ऐसी महिला नहीं देखी। यह तो साक्षात् सरस्वती का रुप है।'
*महिलाओं को रूढ़िमुक्त बनाने में अविस्मरणीय योगदान देने वालीं साध्वीप्रमुखा लाडांजी के जीवन प्रसंग* से प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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