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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 83📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
*संस्कारी श्रावक*
*50. रूपशशि (रूपचन्दजी)*
सुजानगढ़ के श्रद्धालु, तत्त्वज्ञ, विवेक संपन्न और दृढ़धर्मी श्रावकों में रूपचंदजी सेठिया का नाम प्रथम पंक्ति में रखा जा सकता है। उन्होंने अपने जीवन में संयम के जितने प्रयोग किए, कम व्यक्ति कर पाते हैं। वे पूज्य डालगणी के कृपापात्र और विश्वासपात्र श्रावक थे। उनके जीवन के अनेक प्रसंग प्रेरक और पठनीय हैं। यहां केवल एक घटना का उल्लेख किया जा रहा है—
पूज्य डालगणी अस्वस्थ हो गए। उत्तराधिकारी के निर्वाचन को लेकर साधुओं ने उन्हें निवेदन किया। साध्वियों में भी निवेदन किया। उन्होंने सबकी बात सुनी फिर पूछा— 'रूपचंद जी आए या नहीं?' रूपचंद जी को सूचना मिली। वे बैली में बैठकर सुजानगढ़ से लाडनूं आए। उनसे एकांत में परामर्श किया। उसके बाद उत्तराधिकारी के बारे में निर्णय लेने का मानस बनाया।
डालगणी उत्तराधिकारी का पत्र लिखने के लिए तैयार हुए। साध्वी प्रमुखा जेठांजी वहां से उठकर बाहर चली गईं। मुनि मगनलालजी दूर चले गए। रूपचंदजी उठकर जाने लगे तो डालगणी बोले— 'जाने की अपेक्षा नहीं है।' रूपचंदजी ने कहा— 'आपकी कृपा है, पर मेरा रहने का विचार नहीं है। क्योंकि यहां से बाहर जाते ही लोग पूछेंगे। यह बात प्रकट करनी नहीं है। इस स्थिति में या तो मुझे झूठ बोलना पड़े या मौन रहना पड़े। मैं इस दुविधा में क्यों जाऊं?' वे इतने विवेकी श्रावक थे। रूपचंदजी के कुंदनमलजी, छगनमलजी आदि चार पुत्र थे। चारों पुत्रों का बड़ा परिवार है। पूरे परिवार में अच्छे संस्कार हैं।
*51. श्री• (श्रीचंदजी)*
सरदारशहर के प्रसिद्ध गधैया परिवार में जेठमलजी गधैया ने तेरापंथ की गुरुधारणा स्वीकार की। उससे पहले वे टालोकर छोगजी-चतुर्भुजजी से संबंध रखते थे। उनके पुत्र थे श्रीचंदजी। शरीर जितना छोटा, मन उतना ही बड़ा। वे बहुत बुद्धिमान व्यक्ति थे। उन्होंने धर्मसंघ में बहुत सेवाएं दीं। तेरापंथ धर्मसंघ की श्रीवृद्धि में उनका योगदान उल्लेखनीय है। धर्मसंघ के प्रतिकूल कभी कोई स्थिति बनती वे आधी रात काम करने के लिए तैयार रहते। उन्होंने सरदारशहर के तेरापंथ समाज का कुशल नेतृत्व किया। समाज ने उनको मान्यता दी।
श्रीचंदजी और उनकी पत्नी दोनों शासन के भक्त थे। सरदारशहर में उनकी हवेली बड़े शहरों के गढ़ जैसी लगती है। श्रीचंदजी के पुत्र गणेशदासजी और वृद्धिचंदजी ने भी धर्मसंघ की निष्ठा से सेवा की।
*52. शोभा• (शोभाचंदजी)*
बीदासर के बैंगानी परिवार में शोभाचंदजी बैंगानी का नाम प्रसिद्ध है। वे निर्भय और दबंग व्यक्ति थे। तेरापंथ को थली प्रदेश में लाने का श्रेय जिन श्रावकों को जाता है, उनमें प्रमुख नाम शोभाचंदजी का है। उन्होंने विक्रम संवत 1886 में पाली जाकर ऋषिराय के दर्शन किए और थली पधारने की प्रार्थना की।
शोभाचंदजी अपने समय के प्रसिद्ध श्रावक तो थे ही प्रसिद्ध व्यवसायी भी थे। उनको 'कयावन्ना' सेठ से उपमित किया गया है। अर्थार्जन के लिए वह कभी देश-परदेश नहीं गए। फिर भी वे सेठ कहलाते थे और अनेक लोगों की जीविका में सहयोगी बनते थे। समाज में उनका गहरा प्रभाव था। जहां वे जूते खोलते, वहां 20 व्यक्तियों के जूते खुल जाते। उनका प्रभाव इसी से परिलक्षित होता है। मेवाड़, मारवाड़ और किसी भी क्षेत्र से कोई परिवार आता, उनका घर सबके लिए खुला था। उनके घर आकर कोई भूखा नहीं लौटता था। उन जैसी साधर्मिक वत्सलता कम लोगों में मिलती है।
वे शासनभक्त और आचार्यों के कृपापात्र श्रावक थे। शासन के हर काम को उन्होंने अपना दायित्व समझकर किया। उन्होंने आचार्यों की उपासना और पात्रदान का जी भरकर लाभ उठाया।
*तेरापंथ की प्रमुख श्राविकाओं* के प्रेरक जीवन प्रसंग पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 83* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*सदगुण-रत्न-महोदधि आचार्य महागिरी*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
आचार्य सुहस्ती से महातपस्वी आचार्य महागिरि का परिचय पाकर श्रेष्ठी वसुभूति अत्यंत प्रभावित हुआ। आचार्य सुहस्ती श्रेष्ठी परिवार को उद्बोधन देकर स्वस्थान पर लौट आए।
आचार्य महागिरि को लक्षित कर अपने पारिवारिक जनों को श्रेष्ठी वसुभूति ने कहा "आचार्य महागिरि विशिष्ट साधक हैं। उग्र तपस्वी और घोर अभिग्रही हैं। इनका कभी अपने घर में आगमन हो तो भोजन को प्रक्षेप योग्य कह करके उन्हें दान देना। तभी इनका अभिग्रह पूर्ण हो सकेगा।"
उर्वर धरा में बोए गए बीजों की परिणति अत्यंत शुभ एवं लाभदायक होती है। इसी भांति त्यागी संतो को प्रदत्त दान विशेष फलदाई होता है। इससे जन्म-जन्मांतर के कल्मष दूर जाते हैं, दुनिया में यश की प्राप्ति होती है।
आचार्य महागिरि भिक्षाचरी करते हुए संयोगवश पुनः किसी एक दिन श्रेष्ठी वसुभूति के घर पहुंचे। उस दिन वसुभूति श्रेष्ठी के घर में मोदक बने हुए थे। आचार्य महागिरि को देखते ही सबके मन खुशी से भर गए। दान देने के लिए उद्यत श्रेष्ठी वसुभूति के पारिवारिक सदस्यों ने मोदकों को लक्षित कर भक्ति भावित हृदय से निवेदन किया "मुने! ये मोदक हमने अपने लिए तैयार किए हैं, खाने में भी स्वादिष्ट हैं। हम प्रतिदिन दूध के साथ इन्हें खाते हैं। आज हमने अत्यधिक सरस घृत शक्कर परिपूरित भोजन कर लिया है। गरिष्ठ भोजन करने के बाद अब इन मोदकों की आवश्यकता नहीं रही है। ये सारे मोदक हमारे लिए प्रक्षेप योग्य हो गए हैं, आप इन्हें ग्रहण कर हमें कृतार्थ करें। इससे हम सबको बड़ी प्रसन्नता होगी।"
आचार्य महागिरि अपनी वृत्ति में पूर्ण सजग एवं अभिग्रह में सुदृढ़ थे। श्रेष्ठी वसुभूति के पारिवारिक सदस्यों की मर्यादातिक्रांत भक्ति एवं अपूर्व चेष्टाएं देखकर उन्होंने विशेष उपयोग लगाया एवं प्रदीयमान भोजन सामग्री को अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप न समझकर उसे ग्रहण नहीं किया। अनाचरणीय मार्ग का अनुगमन करने से कल्याण नहीं होगा यह सोच कर आत्म-गवेषक आचार्य महागिरि बिना भोजन ग्रहण किए वन की ओर चले गए।
आचार्य महागिरि से आचार्य सुहस्ती जब मिले तब उन्होंने वसुभूति के घर पर घटित घटना से अवगत कराते हुए कहा "सुहस्ती! तुमने श्रेष्ठी वसुभूति के सम्मुख मेरा सम्मान कर मेरे लिए अनेषणीय स्थिति उत्पन्न कर दी है।"
परम विनीत आचार्य सुहस्ती ने आचार्य महागिरि के चरणों में नत होकर क्षमा प्रार्थना की और बोले "इस भूल का भविष्य में पुनरावर्तन नहीं होगा।"
*आचार्य महागिरि के जीवन-वृत्त* के बारे में और जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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News in Hindi
*महासभा में महातपस्वी का मंगल प्रवचन*
*तेरापंथी महासभा को आचार्यश्री ने संस्था शिरोमणि अलंकरण से किया अलंकृत*
कोलकत्ता तेरापंथी महासभा के मुख्यालय भवन में पधारे तेरापंथ धर्म संघ के ग्यारवें *आचार्यश्री महाश्रमण जी* ने अपना मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए तेरापंथी महासभा को तेरापंथ समाज की समस्त संस्थाओं में *संस्था शिरोमणि* अलंकरण से अलंकृत किया।
दिनांक - 17-06-2017
प्रस्तुति - *तेरापंथ संघ संवाद*
👉 *महासभा में 'महातपस्वी' आचार्य श्री महाश्रमण..*
👉 *महातपस्वी के मंगल चरण पड़ते ही पुलकित हो उठा महासभा भवन..*
👉 *58 वर्षों बाद* कोलकाता महानगर में तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता के आगमन से *पूरा कोलकाता महानगर श्रद्धालुओं के समुद्र से लहरा उठा..*
👉 *आचार्यश्री का प्रवास तेरापंथ भवन में स्थापित श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी विद्यालय में..*
👉 *महासभा के अध्यक्ष एवं पदाधिकारियों ने अपने आराध्य का अभिवादन किया..*
👉 *असाधारण साध्विप्रमुखा श्री कनकप्रभा जी..*
👉 *आज प्रातः के कुछ विशेष दृश्य..*
दिनांक: 17/06/2017
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
Source: © Facebook
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