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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 138* 📝
*भव्य जन-उद्बोधक*
*आचार्य भद्रगुप्त और श्रीगुप्त*
*आचार्य भद्रगुप्त*
आचार्य भद्रगुप्त आगम वाणी के विशिष्ट ज्ञाता थे। ज्योतिष विद्या के प्रकांड विद्वान् थे एवं दशपूर्वों की विशाल ज्ञान राशि के वे स्वामी थे। इतिहास प्रसिद्ध वज्रस्वामी ने दशपूर्वों का ज्ञान आचार्य भद्रगुप्त से ग्रहण किया था।
आचार्य भद्रगुप्त वी. नि. 449 (वि. पू. 21) में मुनि बने। आचार्य धर्म के बाद वी. नि. 494 अथवा 495 (विक्रम संवत् 24 या 25) में युगप्रधान बने थे।
आचार्य भद्रगुप्त की अनशन की स्थिति में आर्य रक्षित ने उनकी उपासना की थी। आर्य रक्षित के अनुकूल सेवा सहयोग से आचार्य भद्रगुप्त को परम समाधि का अनुभव हुआ था।
आर्य रक्षित वी. नि. 522 में जन्मे। आचार्य तोषलिपुत्र से उन्होंने वी. नि. 544 में मुनि दीक्षा स्वीकार की। आचार्य भद्रगुप्त का वी. नि. 533 में स्वर्गवास हुआ। आचार्य भद्रगुप्त के स्वर्गवास के समय आर्य रक्षित 11 वर्ष के थे। उनकी मुनि दीक्षा हुई ही नहीं थी अतः आचार्य भद्रगुप्त की अनशन की स्थिति में आर्य रक्षित द्वारा अंतिम आराधना कराने का प्रसंग अवश्य ही विशेष चर्चनीय है।
*आचार्य श्रीगुप्त*
दुस्सम-काल-समय-संघत्थव युगप्रधान के अनुसार आचार्य भद्रगुप्त के बाद श्रीगुप्त युगप्रधान आचार्य बने। दशपूर्वधर आचार्यों में आचार्य श्रीगुप्त के नाम का उल्लेख है।
आचार्य श्रीगुप्त का जन्म संवत् वी. नि. 448 (वि. पू. 22) तथा मुनि दीक्षा संवत वी. नि. 483 (विक्रम संवत 13) बताया गया है। वे युगप्रधान पद पर वी. नि. 533 (विक्रम संवत 63) में आसीन हुए।
आचार्य श्रीगुप्त के जीवन प्रसंग लगभग अज्ञात हैं।
कल्पसूत्र स्थविरावली में कौशिक गोत्रीय षडुलूक रोहगुप्त को आचार्य महागिरि का शिष्य एवं त्रैराशिक मत का संस्थापक बताया गया। निह्नव परंपरा में षडुलूक रोहगुप्त छठा निह्नव हुआ। उसके द्वारा त्रैराशिक मत की स्थापना वी. नि. 544 के बाद हुई। आचार्य महागिरि का स्वर्गवास वी. नि. 245 (विक्रम पूर्व 225) में ही हो गया था वह कई विद्वानों का अनुमान है त्रैराशिक मत-संस्थापक रोहगुप्त को आचार्य महागिरि का साक्षात् शिष्य नहीं माना जा सकता। वह आचार्य महागिरि का शिष्यानुशिष्य एवं युगप्रधान आचार्य श्रीगुप्त का साक्षात् शिष्य होना चाहिए।
*समय-संकेत*
आचार्य भद्रगुप्त की कुल आयु 105 वर्ष की थी। उनका जन्म वी. नि. 428 (वि. पू. 42) और स्वर्गवास वी. नि. 533 अथवा 35 (विक्रम संवत् 63 अथवा 65, ईसवी सन् 6 या 8) में हुआ।
आचार्य भद्रगुप्त 38 अथवा 39 वर्ष तक युगप्रधान पद पर रहे। वल्लभी युगप्रधान पट्टावली में आचार्य भद्रगुप्त का आचार्य-काल 41 वर्ष का माना गया है।
आचार्य श्रीगुप्त की आयु 100 वर्ष की थी। उन्होंने 15 वर्ष तक युगप्रधान पद के दायित्व का सम्यक् संचालन किया। उनका जन्म वी. नि. 448 (वि. पू. 22) एवं स्वर्गवास वी. नि. 548 (विक्रम संवत् 78, ईस्वी सन् 21) में हुआ। आचार्य धर्म, आचार्य भद्रगुप्त, आचार्य श्रीगुप्त ये तीनों आचार्य दशपूर्व ज्ञान संपदा के स्वामी थे।
*आचार्य भद्रगुप्त का आचार्य-काल*
(वी. नि. 495-533)
(विक्रम संवत् 25-63)
(ईस्वी पूर्व 32-ईस्वी सन् 6)
*आचार्य श्रीगुप्त का आचार्य-काल*
(वी. नि. 533-548)
(विक्रम संवत् 63-78)
(ईस्वी सन् 6-21)
*विलक्षण वाग्मी आचार्य वज्रस्वामी के प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 138📝
*व्यवहार-बोध*
*जिनशासन*
(मुक्त छन्द)
*80.*
दर्शन जीवन एक दिशा में वीर निदर्शन,
समता सहिष्णुता बन जाए जीवन-दर्शन।
वीतरागता लक्ष्य स्वयं की स्वयं गवाही,
अनेकांत की उज्जवल धारा सतत प्रवाही।।
*47. दर्शन जीवन एक दिशा में...*
दर्शन कितना ही ऊंचा और अच्छा हो, जीवन उसके अनुरूप न हो तो उसका कोई उपयोग नहीं होता। दर्शन शिखर पर और जीवन पाताल में यह बहुत बड़ी विसंगति है। महापुरुष ऐसी विसंगतियों को पनपने का मौका नहीं देते। दर्शन और जीवन को एक दिशागामी बनाया जा सकता है क्या? इस प्रश्न का उत्तर है भगवान महावीर। उन्होंने जो कुछ कहा वह जीकर दिखाया अथवा जो जीवन जीया वही कहा।
भगवान महावीर के दर्शन के महत्त्वपूर्ण घटकों में समता और सहिष्णुता प्रमुख हैं। उनके जीवन को पढ़ें तो लगता है कि जहां-जहां उनकी कसौटी हुई वहां समता और सहिष्णुता की प्रतिमा उभर कर सामने आ गई। उनके इस दर्शन को हम अपना जीवन दर्शन बनाएं, यह जरूरी है। हमारा लक्ष्य है वीतरागता। वीतराग बनने के साधन हैं– समता और सहिष्णुता। हमारे जीवन में इनका कितना विकास हुआ है? हम दूसरों से क्यों पूछें। हम स्वयं अपने साक्षी बनें। भगवान महावीर ने अनेकांत कि इस उज्ज्वल धारा को प्रवाहित किया, हम उसमें अवगाहन करते रहें। अनेकांत में अवगाहन करने वाला समता और सहिष्णुता को अपने जीवन के साथ सहज ही जोड़ लेता है।
*जिनशासन* के बारे में आगे और जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 पेटलावद - तिविहार संथारा प्रत्याख्यान
👉 हिसार - विकास महोत्सव का कार्यक्रम आयोजित
👉 नोहर - महामंत्र जप अनुष्ठान
👉 कटक - अणुव्रत के प्रचार-प्रसार हेतु कार्य
👉 राजमहेन्द्रवरम - सामूहिक खमतखामना का कार्यक्रम
👉 जयपुर - विकास महोत्सव का कार्यक्रम आयोजित
👉 सरदारशहर - विकास महोत्सव का आयोजन
👉 औरंगाबाद - पर्युषण महापर्व की आराधना
👉 मलेरकोटला (पंजाब) - पर्युषण महापर्व की आराधना
👉 भिक्षु साधना केंद्र, जयपुर - विकास महोत्सव का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 #ह्यूस्टन (#अमेरिका) - पर्युषण महापर्व की आराधना
👉 #जकार्ता (#इंडोनेशिया) - विदेश की धरा पर तपस्या की लहर
👉 #कांटाबांजी (#उडिशा): समण सिद्धप्रज्ञ जी का “मंगल भावना” समारोह
👉 #तुषरा (#ओडिशा) - पर्युषण महापर्व की आराधना
👉 #राजाजीनगर, #बेंगलुरु: "क्षमापना दिवस" कार्यक्रम
👉 #केलवा - ज्ञान का T20 प्रतियोगिता
👉 #प्रियापटना - संवत्सरी महापर्व का आयोजन
👉 #बारडोली - मूल्य परक शिक्षा पर अणुव्रत व जीवन विज्ञान का प्रचार प्रसार
👉 #सिलीगुड़ी: समणी वृन्द का "मंगल भावना" समारोह एवं तपस्वी "तपोअभिन्दन" कार्यक्रम
👉 #शाहीबाग, #अदमदबाद - विकास महोत्सव का आयोजन
👉 #मदुराई - #विकास #महोत्सव का आयोजन
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 137* 📝
*परोपकार परायण आचार्य पादलिप्त*
*साहित्य*
पादलिप्त सूरि अपने युग के विश्रुत विद्वान् थे। वह युग प्राकृत भाषा का उत्कर्ष काल था। पादलिप्त सूरि ने *'तरंगवई'* (तरङ्गवती) कथा की रचना प्राकृत भाषा में की। इसमें दस हजार पद्य थे। निर्वाणकालिका और प्रश्नप्रकाश नामक कृतियों के रचनाकार भी पादलिप्त सूरि थे। इन तीनों कृतियों का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार से है।
*तरंगवई (तरङ्गवती)* तरङ्गवती कथा पादलिप्त सूरि की सरस प्राकृत रचना है। जैन प्राकृत कथा तथा साहित्य का यह आदि ग्रंथ है। अनेक जैन विद्वानों ने इस कथा का अपने ग्रंथों में उल्लेख किया है। आचार्य शीलाङ्क 'चउपन्न महापुरिसचरिय' नामक ग्रंथ में लिखते हैं
*सा णत्थि कला तं णत्थि लक्खणं जं न दीसई फुडत्थं।*
*पालित्तपाइयविरइय तरंगवइयासु य कहासु।।123।।*
*(पृष्ठ 38)*
कलाशास्त्र और लक्षणशास्त्र का सर्वांग विवेचन इस कथा में है। जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने विशेषावश्यक भाष्य में वासवदत्ता कथा के साथ इसका उल्लेख किया है। आगम साहित्य और चूर्णि ने इस कथा को लोकोत्तर धर्मकथा कहा है।
तरङ्गलोला ग्रंथ के रचनाकार नेमिचंद्रगणी के मतानुसार तरङ्गवती कथा जन भोग्य नहीं किंतु विद्वद्-भोग्य थी। गहन युगलों और दुर्गम षटकलों के कारण यह अतिशय गंभीर कृति थी। सामान्य मनुष्य के लिए इस कथा को समझ पाना कठिन था।
तरङ्गवती कृति के आधार पर नेमिचंद्रगणी ने 1942 गाथाओं में तरङ्गलोला कृति की रचना की।
*निर्वाणकलिका और प्रश्नप्रकाश*
निर्माणकलिका को दीक्षा और प्रतिष्ठा विधिविषयक तथा प्रश्नप्रकाश को ज्योतिष विषयक ग्रंथ माना गया है। प्रभावक चरित्र आदि ग्रंथों में पादलिप्त सूरि के उक्त तीन ग्रंथों का ही उल्लेख है। चूर्णि साहित्य में पादलिप्त सूरि के कालज्ञान नामक ग्रंथ का भी उल्लेख मिलता है।
*विद्या का प्रभाव*
पादलिप्त सूरि के जीवन से स्पष्ट है मंत्र विद्याओं का पादलिप्त सूरि के पास अतिशय बल था। जिस प्रकार पारस के स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है। पादलिप्त सूरी द्वारा मंत्रित प्रश्रवण के स्पर्श से प्रस्तर खंड स्वर्ण में परिवर्तित हो जाता था। पारस पुरुष विशेषण पादलिप्त सूरि की इस क्षमता की अभिव्यक्ति के साथ उनकी अन्य क्षमताओं का द्योतक है।
मंत्र विद्या का प्रयोग कर पादलिप्त सूरि ने पाटण के राजा मुरुण्ड को, मानखेट के राजा कृष्ण को, ओंकारपुर के राजा भीम को, प्रतिष्ठानपुर के राजा शातवाहन को प्रभावित कर धर्म प्रचार में उन्हें सहयोगी बनाया। आश्चर्यजनक कवित्व शक्ति के द्वारा उन्होंने विद्वद्जनों में आदर पाया। पादलिप्त सूरि के संबंध में उद्द्योतन सूरी लिखते हैं
*णिम्मलमणेण गुणगरुयएण परमत्थरयणसारेण।*
*पालित्तएण हालो हारेण व सोहई गोट्ठीसु।।*
*(कुवलयमाला)*
शातवाहन वंशी राजा हाल की विद्वद्गोष्ठियों में आचार्य पादलिप्त सूरि कंठहार के समान सुशोभित हुए।
शातवाहन वंशी राजा हाल के द्वारा संकलित 'गाथा सप्तति' नामक कृति में वृहद्कथा के रचनाकार गुणाढ्य और पादलिप्त सूरि की रचनाओं का भी उपयोग किया गया था।
*स्वर्गवास*
पादलिप्त सूरि योग विद्या सिद्ध प्रभावी आचार्य थे। शत्रुंजय पर्वत पर 32 दिनों के अनशन में उनका स्वर्गवास हुआ। पादलिप्त सूरि के योग विद्या से एवं मंत्र विद्या के प्रयोगों से जैनशासन की विशेष प्रभावना हुई।
*समय-संकेत*
पादलिप्त सूरि के दीक्षा गुरु नागहस्ती थे। नागहस्ती का समय वी. नि. 620 से 698 (विक्रम संवत 150 से 219, ईसवी सन् 93 से 162) माना है। नागहस्ती सूरि ने पादलिप्त सूरि की 10 वर्ष की अवस्था में आचार्य पद पर नियुक्ति की। अतः पादलिप्त सूरि का समय वी. नि. की 7वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध (विक्रम की तृतीय शताब्दी का पूर्वार्द्ध) सिद्ध होता है।
प्रोफैसर लाॅयमन ने पादलिप्त सूरि का समय ईस्वी सन् दूसरी, तीसरी शताब्दी माना है। इस आधार पर भी पादलिप्त सूरि वी. नि. की 7वीं, 8वीं (विक्रम की द्वितीय व तृतीय) शताब्दी के विद्वान हैं।
*भव्य जन-उद्बोधक आचार्य भद्रगुप्त और श्रीगुप्त* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 137📝
*व्यवहार-बोध*
*आत्मा*
*46. मौत सामने है खड़ी...*
गतांक से आगे...
युवक के मन में आकर्षण जागा। वह जाते-जाते वहां जमकर बैठ गया और बोला— 'महात्माजी! आपको कुछ तो बताना ही होगा।' संत टालना चाहते थे। इसलिए उन्होंने कहा— 'भाई बहुत बुरी सूचना है। मैं तुम्हें बता नहीं सकता।' युवक घबरा गया। पर ऊपर से साहस दिखाता हुआ वह बोला— 'आप मुझे कमजोर क्यों मानते हैं। मुझे बुरी से बुरी बात बता दें। मैं सुनने के लिए तैयार हूं।'
युवक की जिज्ञासा और उत्सुकता को चरम शिखर पर पहुंचाकर संत ने कहा— 'भाई! क्या बताऊं, जबान जड़ हो रही है। तुम इतना आग्रह करते हो तब बताना पड़ता है। बात यह है कि तुम्हारे हाथ की रेखा टूट रही है। इसके अनुसार आज से सातवें दिन तुम्हारी मौत है।' यह बात सुनते ही युवक का चेहरा सफेद हो गया। उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया। वह बोला— 'महात्माजी! आप तो संत हैं। आपने साधना की है। कोई उपाय बताओ। मैं अभी तो पढ़कर लौटा हूं। मैंने अपने जीवन में कुछ भी नहीं किया। मुझे थोड़ा-सा समय चाहिए।' संत ने कहा— 'भाई! यह ऐसा मामला है कि इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता। यह भवितव्यता है। होनी होकर रहेगी। इसको बदला नहीं जा सकता।'
जीवन से निराश को युवक वहां से उठा तो उठना मुश्किल हो गया। चलना मुश्किल हो गया। जैसे-तैसे वह घर पहुंचा। शरीर की सारी शक्ति बिछड़ गई। परिवार वालों ने पूछा— 'क्या हुआ?' वह बोला— 'मौत का बुलावा आ गया।' उसकी गिरती हालत ने सबको चिंतित कर दिया। डॉक्टर आए। दवा दी। लाभ नहीं हुआ। पांच दिनों में बीस किलो वजन घट गया। छठे दिन वह मरणासन्न अवस्था में था। पूरे घर में चिंता और निराशा का माहौल था।
सातवें दिन अचानक संत एकनाथ वहां पहुंचे। लोगों से बात की तो पता चला युवक मृत्युशय्या पर आखिरी सांसें गिन रहा है। परिवार वालों से इजाजत ले संत युवक के पास गए। युवक ने मुश्किल से आंखें खोलीं। उसने पूछा— 'महात्माजी! कितनी देर है?' संत ने कहा— 'बेटा! मैं तुम्हें खुशखबरी देने आया हूं कि अभी मौत नहीं होगी।' युवक को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। पर जब संत ने उसको अच्छी तरह से आश्वस्त कर दिया तो वह उठ बैठा। जैसे बुझते दीए में तेल डालते ही उस की रोशनी तेज हो जाती है उसी प्रकार उसके शरीर में शक्ति का संचार हो गया।
उसे कुछ स्वस्थ देख संत ने कहा— 'बेटा! इन सात दिनों में तुम्हें गुस्सा कितनी बार आया? वासना ने कितनी बार सताया?' युवक बोला— 'महात्माजी! इन सात दिनों में मैंने मौत के अतिरिक्त कुछ भी नहीं देखा। मौत के सामने न गुस्सा आ सका और न वासना सता सकी।' संत ने उसको प्रतिबोध देते हुए कहा— 'यह तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। सात दिन के बाद मौत की कल्पना ने तुमको इतना बदल दिया। मुझे तो क्षण-क्षण मौत दिखाई देती है। मैं क्रोध कैसे करूंगा?' युवक का दुराग्रह समाप्त हो गया। वह संत एकनाथ का भक्त बन गया।
*जिनशासन के दर्शन* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 किसी भी कार्य को करने का सही समय *आज* होता है।
प्रस्तुति: तेरापंथ नेटवर्क
संप्रसारक: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 136* 📝
*परोपकार परायण आचार्य पादलिप्त*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
*सीसं कहवि न फुट्टं जमस्स पालित्तयं हरंतस्स।*
*जस्स मुहनिज्झराओ तरंगलोला नई वूढ़ा।।341।।*
*(प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 39)*
जिनके मुखर निर्झर से 'तरंगलोला' नदी प्रवाहित हुई उन पादलिप्त के प्राणों का हरण करने वाले यमराज का सिर फूटकर दो टूक क्यों नहीं हो गया।
कवि पांचाल के मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर पादलिप्त सूरि उठ बैठे और बोले "मैं कविजी के सत्य वचन से जीवित हो गया हूं।" पादलिप्त सूरि में प्राणशक्ति का संचार देखकर सभी के मुख कमल खिल उठे।
प्रबंध कोश के अनुसार इस विस्मयकारी घटना को देखकर गणिका बोली "मुने! आप मरकर भी हमारे मुख से स्तुति पाठ करवाते हैं।"
पादलिप्त सूरि ने कहा "पंचम वेद का संगान मृत्यु के बाद होता है।" पादलिप्त सूरि के इस उत्तर से शोकपूरित वातावरण खिलखिला उठा।
मुनिचंद्र सूरि के शब्दों में पादलिप्त सूरि ज्ञान के सागर थे। अमम चरित्र ग्रंथ में वे लिखते हैं
*पालित्तसूरिः स श्रीमानपूर्वः श्रुतसागरः।*
*यस्मात्तरगंवत्याख्यं कथास्रोतो विनिर्ययौ।।*
पादलिप्त सुरि के श्रुत से तरङ्गवती काव्य का स्रोत प्रवाहित हुआ।
पादलिप्त सूरि ने *'पादलिप्ता'* भाषा की रचना की थी पर उसके संकेतों को समझने वाले विद्वानों के अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति उसको नहीं समझ सकता था। पादलिप्ता भाषा में पादलिप्त सूरि रचित किसी ग्रंथ की सूचना भी उत्तरवर्ती ग्रंथों में नहीं है।
प्रभावक चरित्र के उल्लेखानुसार पादलिप्त सूरि ने खपुटाचार्य के पास विद्याभ्यास किया था पर यह बात कालक्रम से ठीक नहीं है। पादलिप्त सुरि और खपुटाचार्य के मध्य लगभग दो शतक से अधिक का अंतराल है।
नरेश शातवाहन ने अपने मंत्री के सहयोग से भरौंच नरेश बलमित्र और भानुमित्र को पराजित किया। शातवाहन के मंत्री को प्रभावक चरित्र ग्रंथ में पादलिप्त सूरि का शिष्य बताया गया है पर यह इतिहास सम्मत प्रतीत नहीं होता। भरौंच नरेश बलमित्र और भानुमित्र दोनों कालकाचार्य के भागिनेय थे अतः उनका राज्य कालकाचार्य के समय में सिद्ध होता है। खपुटाचार्य के समय में बलमित्र और भानुमित्र के राज्य का संध्याकाल था एवं नभसेन का शासन प्रारंभ होने जा रहा था। ऐसी स्थिति में कालक और खपुटाचार्य के समय में होने वाले बलमित्र-भानुमित्र को पादलिप्त सूरि के समय में मानना विशेष समालोच्य बन जाता है।
*आचार्य पादलिप्त सूरि द्वारा रचित साहित्य इत्यादि* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 136📝
*व्यवहार-बोध*
*आत्मा*
(कुंडली)
*79.*
मौत सामने है खड़ी फिर कैसी घुसपैठ?
भीतर विषय कषाय की? सारा जीवन सेट।
सारा जीवन सेट, अरुणता मिटी तरुण की,
जीवन में बदलाव मिली करुणा सकरुण की।
भरी जवानी में हुई ऐसे गुरु से भेंट,
मौत सामने है खड़ी, फिर कैसी घुसपैठ।।
*46. मौत सामने है खड़ी...*
संत एकनाथ पहुंचे हुए साधक थे। उन्होंने अपने संवेगों पर नियंत्रण पा लिया। उनकी वृत्तियां शांत थीं। वासना उन्हें सताती नहीं थी। क्रोध, लोभ आदि भाव उन्हें परेशान नहीं करते थे। संत की महिमा फैली। उनके प्रति लोगों में श्रद्धा के भाव प्रगाढ़ हो गए। उन्हीं दिनों एक युवक विश्वविद्यालय की पढ़ाई पूरी कर शहर से अपने गांव आया। वहां उसने संत एकनाथ के बारे में सुना। उसे विश्वास नहीं हुआ। वह बोला— 'संत हो या महात्मा, है तो आदमी ही। अन्न खाने वाले आदमी को गुस्सा न आए, वासना न सताए, इस बात को मैं नहीं मानता। मैं पहले संत की परीक्षा करुंगा, फिर आपसे चर्चा करुंगा।'
युवक संत एकनाथ के पास पहुंचा। न हाथ जोड़े, न नमस्कार किया। संत कुछ बोले नहीं। युवक बोला— 'महात्माजी! आपके बारे में काफी अफवाहें फैल रही हैं, आप उनका खंडन क्यों नहीं करते? लोग कहते हैं कि आपको क्रोध नहीं आता। वासना नहीं सताती। क्या यह बात सही है?' संत ने शांति के साथ कहा— 'मैं ऐसी साधना कर रहा हूं।' संत के शब्दों ने आग में ईंधन का काम किया। युवक थोड़ा आवेश में आकर बोला— 'आपके कहने से क्या हो, मैं यह मानने के लिए तैयार नहीं हूं।' संत ने कहा— 'मैंने कब कहा कि तुम मानो।' युवक इधर-उधर की बातें कर संत को उत्तेजित करने का प्रयास कर रहा था। संत मौन होकर शांति से बैठ गए। इससे युवक के अहं पर चोट हुई। वह बोला— 'आप जैसे पाखंडी साधु ही इस भोली दुनिया को ठग रहे हैं। आप में ही कुछ होता तो मेरी बात का जवाब देते, यों मौन होकर नहीं बैठते।'
संत को उत्तेजित करने में असफल हो युवक वहां से उठने लगा। संत ने उसके हाथ पर एक गहरी नजर डाली। युवक ने पूछा— 'क्या देखते हो?' संत ने कहा— 'कोई खास बात नहीं है। ऐसे ही तुम्हारे हाथ की रेखाओं पर दृष्टि चली गई।' इस बार युवक कुछ शांत होकर बोला— 'आप हाथ देखना जानते हैं क्या?' संत ने कहा— 'हां! थोड़ा बहुत जानता हूं।' युवक अपने भविष्य के बारे में जानने के लिए उत्सुक हो गया। उसने विनम्रता से पूछा— 'महात्माजी! आपने मेरे हाथ में क्या देखा?' संत ने कहा— 'मैंने जो देखा है, वह बताने का नहीं है। तुम अपने घर लौट जाओ।'
*संत एकनाथ ने युवक के हाथ की रेखाओं में क्या देखा...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 गांधीनगर, बेंगलुरु: "विकास महोत्सव" का कार्यक्रम आयोजित
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 कोयम्बत्तूर: "विकास महोत्सव" कार्यक्रम
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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👉 चूरू - तप अभिनन्दन समारोह
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👉 कोयम्बत्तूर: "क्षमापना दिवस" कार्यक्रम
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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