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संयम के द्वारा चरित्र की रक्षा की जा सकती है: मुनि किषनलाल
हांसी, 14 अक्टूबर 2017।
ज्ञान दर्षन एक दूसरे के पूरक है ज्ञान और दर्षन के बाद चरत्रि की महत्त है। ‘पदम नाणं तमो दयां’ पहले ज्ञान फिर आचरण अगर आचरण और चरित्र ठीक नहीं है तो ज्ञान और दर्षन का कोई मूल्य नहीं। उदाहरणों के द्वारा चरित्रिक उन्नयन के उपायों पर चर्चा करते हुए आचार्यश्री महाश्रमण के आज्ञानुवर्ती ‘षासनश्री’ प्रेक्षाप्राध्यापक मुनि किषनलाल ने कहा कि प्रत्येक श्रावक यह भावन रखे कि वह साधुत्व व संयम को प्राप्त करे और साधु अपने उच्च चरित्र के द्वारा साधुत्व की सुरक्षा करे। चरित्र बल को पुष्ठ करने के लिए ध्यान, स्वाध्याय, जप और तप की साधना करे। इसी प्रकार से गृहस्थ भी चरित्र का पालन करने के लिए पारिवारिक सौहार्द, मैत्री भावना, समन्वय के सिद्धांतों की पालना करें। पूरा परिवार मर्यादा व अनुषासन की नीति पर चले।महासती चन्दनबाला के जीवनवृतांत से उदाहरण प्रस्तुत करते हुए मुनिश्री किषनलाल ने कहा कि चरित्र की पवित्रता बनाए रखने के लिए हम महासती के जीवन से षिक्षा ग्रहण करें। अनुषासन व मर्यादा से चरित्र की रक्षा की जा सकती है। इस अवसर पर धर्मसभा में प्रेक्षा प्रषिक्षक लाजपतराय जैन, अणुव्रत समिति अध्यक्ष अषोक जैन, श्रीमती षिल्पा जैन, श्रीमती कृष्णा जैन व श्रीमती शारदा जैन आदि उपस्थित थे।- अषोक सियोल9891752908
English by Google Translate:
Character can be protected by restraint: Muni Kishan Lal
October 14, 2017
Knowledge is complementary to each other, after the knowledge and the message is important for the church. 'Padam Naanam Tamo Daya' First knowledge after conduct If conduct and character are not good then there is no value of knowledge and expression. Discussing the steps for the development of the character by upgrading the examples of Acharyashree Mahasraman, the monumental teacher of 'Acharyashree Mahasraman', 'Munshi Shree', said that every Shravak should keep an impression that he can achieve saintliness and restraint and the sage protects the saint by his high character. In order to strengthen the character force, practice meditation, self-study, chanting and penance. In this way householders also follow the principles of family harmony, friendship, coordination to follow the character. The entire family went on the policy of limit and discipline.
While presenting the examples from the life story of Mahasati Chandanbala, Munishri Kishan Lal said that in order to preserve the purity of the character, we should take education from the life of the Mahasati. Character can be protected from grace and dignity. On this occasion, Pracharak Lajpat Rai Jain, Nirvrat Committee President Ashok Jain, Smt. Shilpa Jain, Smt. Krishna Jain and Shrimati Sharda Jain were present on the occasion.
- Ashok Sion
9891752908