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2000 मई जून के महीने का यह प्रसंग जब राजस्थान प्रांत में पानी की बहुत कमी होने से वहां के जानवर भूख और प्यास से मरने लगे,यहां तक कि वहां के किसान उन जानवरों को बिना पैसे में ही देने को तैयार थे, लेकिन कोई लेने के लिए तैयार नहीं था। #आचार्यविद्यासागर जी को जब यह बात मालूम पड़ी तो उन्होंने एक-दो ब्रहमचारी भाइयों को बुलाकर कहा...
...आप लोग राजस्थान जाकर वहां के जानवरों को यहां MP में लाकर गौशाला आदि में सब जानवरों को भिजवा दो। आचार्य भगवन का आशीर्वाद लेकरब्रह्मचारी भैया राजस्थान पहुंचे और सैकड़ों जानवरों को अजमेर (राजस्थान) में इकट्ठा करना शुरु कर दिया, जब राजस्थान और आसपास के प्रमुख गणमान्यों को (जो आचार्य श्री जी से जुड़े हुए व्यक्ति थे) यह मालूम चला कि- यह सारे जानवर आचार्य श्री जी की आशीर्वाद से mp में गौशालाओं में जाना है, तो उन लोगों ने एक पूरी की पूरी ट्रेन मालगाड़ी भारत सरकार से लिखा पढ़ी करवाकर बुक कर ली और उन सैकड़ों जानवरों को सारे डिब्बों में धीरे-धीरे भरकर उन डिब्बों में पानी घुसा आदि की व्यवस्था भी कर दी (क्योंकि यह ट्रेन अजमेर से पेंड्रास्टेशन आने में 3 दिन लगते हैं)उस समय आचार्य भगवन अमरकंटक में विराजमान थे,उन्हे जब मालूम चला कि अजमेर से गायों को भरकर पूरी ट्रेन आ रही है और 3 दिन में पेंड्रा स्टेशन पर आ जाएगी क्योंकि अमरकंटक से पेंड्रा स्टेशन मात्र 50 किलोमीटर दूरी पर ही था,आचार्य भगवन ने सोचा चातुर्मास स्थापना का समय करीब में है इसलिए पेंड्रा स्टेशन पर चलकर गायों को देख लेंगे। इसके बाद आगे चले जाएंगे इस सोचकर उसी दिन उन्होंने अमरकंटक से विहार कर दिया।
3 दिन में आचार्य भगवन पेंड्रा संघ सहित पहुँच गये,चूंकि मंदिर के पास ही स्टेशन था और स्टेशन के बाहर ही प्रवचन के लिए मंच बनाई गई आचार्य भगवन के अंदर उन सैकड़ों गायों को देखने की भावना थी इसलिए पैर दर्द ज्यादा ध्यान ना देकर दोपहर में मंच पर पहुंच गए और प्रवचन पूरे ही नहीं हो पाए कि उसी दिन अजमेर से 3 दिन में चलकर गायों से भरी ट्रेन (उसी दिन आचार्य श्री जी का दीक्षा दिवस भी था) आ गई सारे श्रावकों ने ताली बजा दी आचार्य भगवन ने प्रवचन पूरे करके स्वयं स्टेशन पर जा कर डिब्बों में सुरक्षित जानवरों को देखकर बहुत बहुत प्रसन्न हुए सारे जानवरों को आशीर्वाद दिया।आचार्य भगवन के सामने उन डिब्बों से धीरे-धीरे गायों का निकाल कर सुरक्षित पहुँचाया गया।
धन्य है आचार्य भगवन के अंदर की सोच, करुणा,दया और परोपकार की भावना जबकि आज का मनुष्य मनुष्य के प्रति अच्छे भाव नहीं ला पाते।ऐसे समय में दूसरे प्रदेश से सैकड़ों जानवरों को बुलाकर उनको गौशालाओं में सुरक्षित रखना कितना बड़ा कार्य है इसके बाद आचार्य भगवन के उपदेश से तथा आशीर्वाद से बहुत सारे स्थानों पर लगभग 100 से ज्यादा गौशालाओं का निर्माण करा कर उनमें मूक जानवरों को शरण देकर उनकी रक्षा हो रही है यह सब गुरुदेव की अनुकंपा का फल है।और उनके जीवन में ही है जिनवाणी की गाथा की पंक्ति जीवनम रक्खाणम धर्मों साक्षात दिखाई दे रही है ऐसे गुरुदेव के चरणों में बारंबार नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु।
संकलनकर्ता-मुनि श्री पूज्यसागरजी महाराज, प्रस्तुतिकर्ता - नरेन्द्र जबेरा (सांगानेर)* 8005626148
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News in Hindi
धन्य हुई ये तिथि कि जिसमें प्रभु ने योग निरोध किया, मन वच काय वश करके आत्मतत्त्व को शोध लिया । #धन्यतेरस have a Real #DhanyaTeras
-आज वह पावन दिन है जब भगवान श्री महावीर स्वामी ने समवसरन का त्याग कर दिया था और वह योग निरोध [ मन वचन और काया से कोई भी क्रिया नहीं करना ] की अवस्था में चले गये थे। भगवान ने अपनी सबसे बड़ी विभूति समवसरन को छोड़ा था। यानि आज महात्याग का दिन है। देवों ने गर्जना की और धन्य हो, धन्य हो कहा। कालान्तर में यही दिन धनतेरस के नाम से जाना है।
इस सदी के महानायक विश्व को अहिंसा का उपदतेश देने वाले महावीर स्वामी हमेशा ही हमारे हृदये में जीवंत रहे! आज के दिन भगवान ने योग निरोध किया तथा अमावस्या को मोक्ष प्राप्त कर लिया, योग निरोध का मतलब मन, वचन और काय की प्रवृति बंद हो जाना, मतलब उस दिन से महावीर स्वामी ने समवसरन का भी त्याग कर दिया और बस पद्मासन अवस्था में एक पेड़ के निचे विराजमान हो गए और ना मन से प्रवृत्ति करेंगे ना तन से करेंगे और ना ही कुछ बोलेंगे... वीर प्रभु के योगों के निरोध से त्रयोदशी धन्य हो उठी, इसीलिये यह तिथि “ धन्य-तेरस [त्रयोदशी]” के नाम से विख्यात हुई लेकिन समय से प्रभाव से यह धन्य त्रयोदशी का नाम रूढ़ि में बदल गया और फिर धनतेरस में फिर सिर्फ धन की पूजा होने लगी, लोग शब्द का सही अर्थ ना जानने के कारण और धन के लालच से इसको धन/पैसे से जोड़ने लगे! धन-तेरस के दिन हम लोग धन-संपत्ति, रुपये-पैसे को लक्ष्मी मान कर पूजा करते हैं और हमने अब सारे पर्व को बस पैसे से जोड़ लिया है, जो Wise है Intelligent है उनको इस पर विचार करना चाहिए और साधू जानो और ज्ञानीजनो से पूछना चाहिए, ग्रंथो को देखना चाहिए!
हजारो साल पहले भगवान् ने अपने जीवन को इस दिन ही धन्य कर लिया था, जिससे त्रियोदशी भी धन्य कही जाने लगी थी, आओ हम भी कुछ संयम नियम आदि जीवन में आचरण में उतार ले ताकि हम भी धन्य हो जाए! धन है या नहीं लेकिन आप आचरण से अपने को धन्य तो कर ही सकते है, आज धन्य तेरस को पावन करदे! महावीर भगवान् के आचरण से अपने जीवन को सजा लेना ही... महावीरा स्वामी को सही मायने में मानना है! #DhanyaTeras
@ article written by nipun jain..
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