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❖ हम आनंद लें उस चीज़ में जो हमें प्राप्त है| यह ना देखें की दूसरे के पास क्या है, जो हमारे पास है,उस में खुश रहे अन्यथा मुश्किलें पैदा होती हैं |अपनी ऐसी ही मुश्किलों को आसान करने के लिए हमारे मन में सरलता होना चाहिए, ईमानदारी होना चाहिए,हमारे भीतर उन्मुक्त ह्रादयता होनी चाहिए. और इतना ही नहीं हम स्पष्टवादी होवें, बहुत सीधा-सादा जीवन जीने का प्रयास करें, जितना बन सकें भोलापन लावें| बच्चों में भी होता है भोलापन, पर वह अज्ञानतापूर्वक होता है |
लेकिन ज्ञान हासिल करने के बाद का भोलापन ज्यादा काम का होता है | निशंक होकर, बहुत सहज होकर, भोलेपन से जियें तो हमारा जीवन बहुत ऊँचा और बहुत अच्चा बन सकता है | जो
मलिनताएँ हमारे भीतर हैं उन्हें कैसे हटायें और कैसे हम अपने जीवन को, अपनी वाणी को, अपने मन को, अपने कर्म को पवित्र बनाएं |
जो आतंरिक सुचिता या आतंरिक निर्मलता का भाव है वही शौच धर्म है |लोभ के अभाव में शुचिता आती है |हम लोभ के प्रकार देखते हैं -
पहला है वित्तेषणा -> यह है धन- पैसे का लोभ | धन कितना ही बढ़ जाए कम ही मालुम होता है| धन का लोभ कभी रुकता नहीं है, बढ़ता ही चला जाता है |
दूसरा है पुत्रेषणा-लोकेषणा -> यह है अपने पुत्र और परिवार का लोभ |
तीसरा है समाज में अपनी प्रतिष्ठा का लोभ | यह तीन ही प्रकार के लोभ होते हैं, इन तीनों का लोभ हमें मलिन करता है | बस इन तीनों पे नियंत्रण पाना ही हमारे जीवन को बहुत निर्मल बना सकता है | लोभ की तासीर यही है की आशाएं बढ़ती हैं, आश्वासन मिलते हैं और हाथ कुछ भी नहीं आता | जो अपने पास है वह दिखने लगे तो सारा लोभ नियंत्रित हो जायेगा | व्यक्तिगत असंतोष, पारिवारिक असंतोष, सामाजिक असंतोष - कितने तरह के असंतोष हमें घेर लेते हैं | अगर हम समझ लें दूसरे के पास जो है वह उस में खुश है, और जो अपने पास है उस में हम आनंद लें तोह जीवन का अर्थ मिल जायेगा |
जीवन में निर्मलता के मायने हैं - जीवन का चमकीला होना | निर्मलता के मायने हैं - मन
का भीगा होना | निर्मलता के मायने हैं- जीवन का शुद्ध होना | निर्मलता के मायने हैं -जीवन का सारगर्भित होना | निर्मलता के मायने हैं - जीवन का निखालिस होना | इतने सारे मायने हैं पवित्रता के, निर्मलता के | जब मुझे मलिनतायें घेरें तो उनपे मियंत्रण रखना ज़रूरी है | हमारा मन जितना भीग जाता है उतना ही निर्मल हो जाता है |
अगर किसी की आँख भर जाए तो वह कमज़ोर माना जाता है | आज कोई रोने लगे तो बिलकुल बुद्धू माना जाए |
आज अगर मन भीग जाए तो हम आउट ऑफ़ डेट माने जायें | बहुत कठोर हो गए हैं हम, हमारी निर्मलता हमारे कठोर मन से गायब हो गयी | जबकि हमारा मन इतना निर्मल होना चाहिए था की दूसरो के दुःख को, संसार के दुखों को देखकर द्रवित हो जाएँ उसमें डूब जाएँ |इसी तरह हमें जो प्राप्त है हम उसमें संतुष्ट होंगे और जो हमें प्राप्त नहीं है उसे पाने का शांतिपूर्वक सद्प्रयास करेंगे तोह हम जीवन में सदेव आगे बढ़ते जायेंगे |
- मुनि श्री क्षमासागर जी..
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मथुरा के कंकाली टीला की खुदाई का चित्र। ये फोटो 1886 की है। इसमें 2000 साल पुराने सैकड़ो जैन स्तूप, स्तम्भ, मूर्तिया और अयागपट्ट प्राप्त हुए थे।
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लीक से हट कर प्रवचन:- इण्डिया नहीं है भारत की गौरवगाथा -आचार्य श्री विद्यासागर जी ➽ #AcharyaVidyasagar
आचार्य श्री ने कहा... आज जवान पीढ़ी का ख़ून सोया हुआ है। कविता ऐसी लिखो कि रक्त में संचार आ जाय। उसका इरादा 'इण्डिया' नहीं 'भारत' के लिये बदल जाय। वह पहले भारत को याद रखें। भारत याद रहेगा, तो धर्म-परम्परा याद रहेगी। पूर्वजों ने भारत के भविष्य के लिये क्या सोचा होगा? उन्होंने इतिहास के मंन्र को सौंप दिया। उनकी भावना भावी पीढ़ी को लाभान्वित करने की रही थी। वे भारत का गौरव, धरोहर और परम्परा को अक्षुण्ण चाहते थे। धर्म की परम्परा बहुत बड़ी मानी जाती है। इसे बच्चों को को समझाना है। आज ज़िंदगी जा रही है। साधना करो। साधना अभिशाप को भगवान बना देती है। जो हमारी धरोहर है। जिसे हम गिरने नहीं देंगे। महाराणा प्रताप ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। उनके और उन जैसों के स्वाभिमान बल पर हम आज हैं।
भारत को स्वतन्त्र हुए सत्तर वर्ष हो गए हैं। स्वतन्त्र का अर्थ होता है-'स्व और तन्त्र'। तन्त्र आत्मा का होनाचाहिए। आज हम, हमारा राष्ट्र एक-एक पाई के लिए परतंत्र हो चुका है। हम हाथ किसी के आगे नहीं पसारें। महाराणा प्रताप को देखो, उन जैसा स्वाभिमान चाहिए। उनसे है भारत की गौरवगाथा। आज हमारे भारत की पूछ नहीं हो रही है? मैं अपना ख़ज़ाना आप लोगों के सामने रख रहा हूं। आप लोगों में मुस्कान देख रहा हूँ। मैं भी मुस्करा रहा हूं। हमें बता दो, भारत का नाम 'इण्डिया' किसने रखा? भारत का नाम 'इण्डिया' क्यों रखा गया? भारत 'इण्डिया' क्यों बन गया? क्या भारत का अनुवाद 'इण्डिया' है? इण्डियन का अर्थ क्या है? है कोई व्यक्ति जो इस बारे में बता सके? हम भारतीय है, ऐसा हम स्वाभिमान के साथ कहते नहीं हैं। अपितु गौरव के साथ कहते हैं, 'व्ही आर इण्डियन'। कहना चाहिए- 'व्ही आर भारतीय'। भारत का कोई अनुवाद नहीं होता। प्राचीन समय में 'इण्डिया' नहीं कहा जाता था। भारत को भारत के रूप में ही स्वीकार करना चाहिए। युग के आदि में ऋषभनाथ के ज्येष्ठ पुत्र 'भरत' के नाम पर भारत नाम पड़ा है। उन्होंने भारत की भूमि को संरक्षित किया है। यह ही आर्यावर्त 'भारत' माना नाम गया है। जिसे 'इण्डिया' कहा जा रहा है। आप हैरान हो जावेंगे, पाठ्य-पुस्तकों के कोर्स में 'इण्डियन' का जो अर्थ लिखा गया है, वह क्यों पढ़ाया जा रहा है? इसका किसी के पास क्या कोई जवाब है? केवल इतना लिखा गया है कि अंग्रेज़ों ने ढाई सौ वर्ष तक हम पर अपना राज्य किया, इसलिए हमारे देश 'भारत' के लोगों का नाम 'इण्डियन' का पड़ गया है। इससे भी अधिक विचार यह करना है कि है कि चीन हमसे भी ज़्यादा परतन्त्र रहा है। उसे हमसे दो या तीन साल बाद स्वतन्त्रता मिली है। उससे पहले स्वतन्त्रता हमें मिली है। चीन को जिस दिन स्वतन्त्रता मिली थी, तब के सर्वे सर्वा नेता ने कहा था कि हमें स्वतन्त्रता की प्रतीक्षा थी। अब हम स्वतन्त्र हो गए हैं। अब हमें सर्व प्रथम अपनी भाषा चीनी को सम्हालना है। परतन्त्र अवस्था में हम अपनी भाषा चीनी को क़ायम रख नहीं सके थे। साथियों ने सलाह दी थी कि चार-पाँच साल बाद अपनी भाषा को अपना लेंगे। किन्तु मुखिया ने किसी की सलाह को नहीं मानते हुए चीना भाषा को देश की भाषा घोषित किया। नेता ने कहा चीन स्वतन्त्र हो गया है और अपनी भाषा चीनी को छोड़ नहीं सकते हैं। आज की रात से चीन में की भाषा चीनी प्रारम्भ होगी और उसी रात से वहाँ चीन की भाषा चीनी प्रारंभ हो गयी। भारत में कोई ऐसा व्यक्ति है जो चीन के समान हमारे देश की भाषा तत्काल प्रारम्भ कर दें?
कोई भी कठिनाई आ जाय देश के गौरव और स्वाभिमान को छोड़ नहीं सकते हैं। सत्तर वर्ष अपने देश को स्वतन्त्र हुए हो गए हैं। हमारी भाषाऐं बहुत पीछे हो गयी हैं। इंग्लिश भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने की ग़लती हो हैं। मैं भाषा सीखने के लिए इंग्लिश या किसी भी अन्य भाषा को सीखने का विरोध नहीं करता हूँ। किंतु देश की भाषा के ऊपर कोई अन्य भाषा नहीं हो सकती है।इंग्लिश भारत भाषा कभी नहीं थी और न है। वह अन्य विदेशी भाषाओं के समान ज्ञान प्राप्त करने का साधन मात्र है। विदेशी भाषा इंग्लिश में हम अपना सब कुछ काम करने लग जाय, यह ग़लत है। हमें दादी के साथ दादी की भाषा जो यहाँ बुन्देलखण्डी है, उसी में बात करना चाहिए। जो यहाँ सभी को समझ में आ जाती है। मैं कहता हूँ ऐसा ही अनुष्ठान करें।
send by निर्मलकुमार पाटोदी
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