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01 नवम्बर का संकल्प
*तिथि:- कार्तिक शुक्ला द्वादशी*
मन में रहेंगे जब संतोष के भाव व्याप्त।
जीवन का मिलेगा तभी आंनद पर्याप्त।।
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🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻
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👉 होस्पेट - जैन जीवन शैली कार्यशाला का आयोजन
👉 कालू - जैन जीवन शैली कार्यशाला एवं बदरवाल प्रतियोगिता आयोजित
👉 बैंगलोर - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 रायपुर - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 सादुलपुर-राजगढ़: अणुव्रत समिति द्वारा राजकीय मोहता उच्च माध्यमिक बालिका विद्यालय में 'अणुव्रत' कार्यशाला का आयोजन
👉 राजसमंद/राजनगर: तेरापन्थ महिला मण्डल द्वारा आयुर्वेदिक चिकित्सा शिविर का आयोजन
👉 गुवाहाटी - अणुव्रत महासमिति टीम संगठन यात्रा के अंतर्गत गुवाहाटी पहुंची
📍 अणुव्रत प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन
👉 सरदारशहर: "तप अभिनंदन समारोह" का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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दिनांक 31-10-2017 राजरहाट, कोलकत्ता में पूज्य प्रवर के आज के प्रवचन का संक्षिप्त विडियो..
प्रस्तुति - अमृतवाणी
सम्प्रेषण -👇
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👉 अहमदाबाद - शासन श्री साध्वी श्री शुभवती जी द्वारा तिविहार संथारा प्रत्याख्यान
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 186* 📝
*अर्हन्नीति-उन्नायक आचार्य उमास्वाति*
प्रभावक आचार्यों की परंपरा में उमास्वाति वाचक का विशिष्ट स्थान है। वे संस्कृत भाषा के धुरंधर विद्वान् थे। उन्हें आगमों का गंभीर अध्ययन था। जैन वाङ्मय का सुप्रसिद्ध ग्रंथ तत्त्वार्थ सूत्र उनकी बहुश्रुतता का द्योतक है।
*गुरु-परंपरा*
उमास्वाति की गुरु परंपरा श्वेतांबर और दिगंबर दोनों के ग्रंथों में भिन्न है। श्वेतांबर विद्वानों ने उमास्वाति की गुरु परंपरा को श्वेतांबर गुर्वावली से संबद्ध माना है। दिगंबर विद्वान् उमास्वाति की गुरु परंपरा को दिगंबर परंपरा से संबंधित मानते हैं।
उमास्वाति द्वारा रचित तत्त्वार्थ भाष्य प्रशस्ति के अनुसार उमास्वाति के दीक्षा गुरु घोषनन्दि श्रमण थे घोषनन्दि एकादशांग के धारक एवं वाचक मुख्य शिव श्री के शिष्य थे। उमास्वाति के विद्यागुरु 'मूल' वाचनाचार्य थे। वाचनाचार्य 'मूल' महावाचक मुण्डपाद के शिष्य थे। उच्चनागर शाखा में उमास्वाति को वाचनाचार्य का पद प्राप्त था।
पंडित जुगलकिशोरजी मुख्त्यार आदि ने उमास्वाति को दिगंबर परंपरा का माना है। वे भाष्य को स्वोपज्ञ मानने के पक्ष में नहीं है।
पंडित सुखलालजी ने उमास्वाति को कई प्रमाणों के आधार पर श्वेतांबर परंपरा का सिद्ध किया है। उनके अभिमत से तत्त्वार्थ भाष्य उमास्वाति की स्वोपज्ञ रचना है। भाष्य प्रशस्ति में संदेह करने का कोई कारण नहीं है।
दिगंबर परंपरा की नंदीसंघ पट्टावली में भद्रबाहु द्वितीय, गुप्ति गुप्त, माघनंदी, जिनचंद्र, कुन्कुन्दाचार्य, उमास्वामी का क्रमशः उल्लेख है। प्रस्तुत उल्लेखानुसार उमास्वाति को कुन्द-कुन्द का शिष्य माना गया है। दिगंबर परंपरा में उमास्वामी और उमास्वाति दोनों नाम प्रचलित हैं।
श्रवणबेलगोला के 65वें शिलालेख में प्राप्त उल्लेखानुसार उमास्वाति कुन्द-कुन्द के अन्वय में हुए हैं। इस शिलालेख के आधार पर कुन्द-कुन्द और उमास्वाति का साक्षात् गुरु-शिष्य संबंध सिद्ध नहीं होता।
इंद्रनंदी के श्रुतावतार में कुन्द-कुन्द का उल्लेख होने पर भी उमास्वाति का कहीं उल्लेख नहीं किया है।
आदि पुराण तथा हरिवंश पुराण में भी प्राचीन आचार्यों के गुरुक्रम में उमास्वाति का नाम नहीं है।
आचार्य कुन्द-कुन्द और उमास्वाति के संबंध को बताने वाले श्रवणबेलगोला के सभी शिलालेख शोध विद्वानों के अभिमत से विक्रम की 10वीं, 11वीं शताब्दी के बाद के हैं। इससे पहले के किसी भी शिलालेख में ऐसा उल्लेख नहीं है।
तत्त्वार्थ भाष्य की कारिकाओं में नन्द्यन्त प्रधान नामों के आधार पर तथा कई सैद्धांतिक मान्यताओं के आधार पर पंडित नाथूराम प्रेमीजी ने आचार्य उमास्वाति का संबंध यापनीय संघ परंपरा के साथ अनुमानित किया है।
*मैसूर नगर ताल्लुका के शिलालेख में एक श्लोक उमास्वाति के लिए प्रयुक्त हुआ है उससे क्या सिद्ध होता है...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
📙 *'नींव के पत्थर'* 📙
📝 *श्रंखला -- 10* 📝
*मूणदासजी कोठरी*
गतांक से आगे...
मूणदासजी को जब उक्त घटना का पता लगा तो उनके मन में स्वामीजी के दर्शनों का भाव जागा। कुछ व्यक्तियों के साथ उन्होंने स्वामीजी के दर्शन किए। बातचीत करने बैठे तो बहुत प्रभावित होकर उठे। व्याख्यान सुना तो लगा कि आगम स्वयं मुखरित हो उठे हैं। वे प्रतिदिन आने लगे। उनके पारिवारिक जन भी धीरे-धीरे स्वामीजी की ओर झुकने लगे। व्याख्यान-श्रवण, तत्त्व-चर्चा और जिज्ञासा के निरंतर क्रम ने उनमें से कईयों को अच्छा तत्त्वज्ञ बना दिया। मूणदासजी उनमें अग्रणी थे। उनके कारण पूरा कोठारी परिवार तथा अनेक अन्य परिवार भी स्वामीजी के पास आने और समझने लगे।
केलवा से सर्वप्रथम तेरापंथी बनने का श्रेय कोठारी परिवार को ही है। वह उस समय वहां का सर्वाधिक समर्थ परिवार था। साधारण परिवार के लिए तो विरोध की उस प्रबल झंझा के सम्मुख टिक पाना कम ही संभव था। स्थानीय विरोध का सामना करना भी कठिन होता है, फिर तेरापंथी बनने के लिए तो उस समय सार्वदेशिक विरोध पग-पग पर मुंह बाए खड़ा था। उस स्थिति का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए प्रबल मानसिक साहस और अखंड पारिवारिक व आर्थिक क्षमता की आवश्यकता होती है। कोठारी (चौरड़िया) परिवार में उक्त तीनों विशेषताएं थीं। उस परिवार के जिन व्यक्तियों ने गुरु धारणा की, उनमें मुख्य थे– मूणदासजी, भैरोजी, केसोजी आदि।
मूणदासजी केलवा ठिकाने के प्रधान थे। सत्ता संपन्न होने के कारण सारा गांव उनके प्रभाव में था। पारिवारिक और आर्थिक संपन्नता ने प्रभाव को और भी अधिक कार्यकारी बना दिया। ऐसे समर्थ व्यक्ति के आगे हो जाने पर अन्य परिवारों की झिझक मिट गई। इतने दिन जो व्यक्ति स्वामीजी के पास आने में घबराते थे, उनकी घबराहट दूर हो गई। वे सब निःसंकोच भाव से आकर तत्त्व-जिज्ञासा करने लगे। धीरे-धीरे सारा केलवा स्वामीजी का भक्त बन गया। प्रवेश के समय जहां सामने आने वाला तथा ठहरने के लिए स्थान बतलाने वाला तक कोई नहीं था, यहां विहार के समय अनुगमन करने वालों की भीड़ लग गई। इस सुखद परिवर्तन के मूल में जहां स्वामीजी के परिश्रम का जल सींचा गया था, वहां स्थानीय प्रथम श्रावक मूणदासजी के साहस की खाद ने भी अपना कार्य किया था।
*आमेट के प्रसिद्ध श्रावक पेमजी कोठारी का जीवनवृत्त* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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News in Hindi
👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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