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आज आचार्य श्री ने केशलुंचन किया, इसलिये आज उनका उपवास् रहा.. दिगंबर मुनि अपने बालो को कम से कम 2 महीने और ज्यादा से ज्यादा 4 महीने में अपने हाथो से उखाड़ लेते हैं, वे कटवाते नहीं हिं क्योकि उनके पास ना तो कैची हैं और श्रावक से कभी कुछ मांग नहीं सकते हैं... अपरिग्रह का आजीवन पालन करते हैं.. मयूर के पंख की बनी पिंची रखते हैं जिससे उठाते बैठते चलते कोई जीव आगे आजाये तो उसको हटा दे क्योकि मयूर की पंख सबसे कोमल होते हैं.. एक जल का कमण्डलु रखते हैं उसमे पानी पिने के लिए नहीं बल्कि लघुशंका/ हाथ धोने आदि के लिए करते हैं.. ओर वो जल रोज़ श्रावक लोग अच्छे से छान कर ओर गरम करके उनके कमंडलु में भर देते हैं और ग्रन्थ रखते हैं पढने और स्वाध्याय के लिए:) #AcharyaVidyasagar वर्तमान में आचार्य विद्यासागर जी आदर्श मुनि और आचार्य माने जाते हैं जैन धर्मं के जो महाबीर स्वामी के मार्ग को जिवंत प्रदर्शित कर रहे हैं!!
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ओरंगजेब ने अस्त्र उठाया.. प्रभु के चरण भी छु ना पाया, हैं अंगूठे पे जिसके निशान.. बड़े बाबा मेरे.. ये तो जैन धर्मं की शान.. #Kundalpur
बुन्देलखंड के राजा छत्रसाल ने पुण्य कमाया.. मंदिर जीर्णोधार कराया! है आदिनाथ भगवान्... बड़े बाबा मेरे... #AncientJainism
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News in Hindi
श्रवणबेलगोला में आज होगा बहुत ही अद्भुत नजारा -84 संत का एक साथ पिच्छी परिवर्तन समारोह, आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज #AcharyaVardhmansagar #Shravanbelgola
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आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य मुनि समयसागर जी के सानिध्य में अशोकनगर में कीर्ति स्तम्भ का शिलान्यास हुआ। #MuniSamaysagar • #AcharyaVidyasagar
गुरु के बिना श्रावकों का ज्ञान अधूरा - मुनि समयसागरजी (आचार्य श्री विद्यासागर जी के गृहस्थ के सगे भाई तथा संघ में सबसे पहले दीक्षित मुनि)
मुनि समयसागरजी महाराज ने कहा कि गुरु और शिष्य की बात किस को अच्छी नहीं लगती है, गुरु के बिना श्रावकों का ज्ञान अधूरा रहता है। संयम के माध्यम से जिन्होंने केवल ज्ञान को प्राप्त किया है उसे उस ज्ञान का महत्व प्राप्त नहीं होता है। ज्ञान पूज्य नहीं बल्कि पूजनीय होता है। हम सभी ध्यान की सिद्धी के लिए गौतम स्वामी को याद करते है। वर्तमान में कई ध्यान केन्द्र खुले किन्तु इन केन्द्रो से भी आत्मा कल्याण नहीं होता है वह तो केवल शरीर के आराम देने के लिए ही है। वीतरागता के साथ किया गया ध्यान आत्म कल्याणकारी होता है। मुनि ने कहा कि केवल ज्ञान के माध्यम से ही भगवान महावीर समवशरण में विराजमान है।
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