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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 194* 📝
*कीर्ति-निकुञ्ज आचार्य कुन्दकुन्द*
*साहित्य*
अध्यात्म की भूमिका पर रचित आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रंथरत्न महत्वपूर्ण हैं। समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, अष्टपाहुड़ (प्राभृत), दसभत्ती अथवा भत्ती संग्गहो (दस भक्ति अथवा भक्ति संग्रह) एवं वारस अणुवेक्खा (द्वादशानुप्रेक्षा) ये ग्रंथ आचार्य कुन्दकुन्द के हैं। इन ग्रंथों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है।
*समयसार—* समयसार आर्यावर्त में गुम्फित प्राकृत शौरसेनी भाषा का उत्तम कोटि का ग्रंथ है। टीकाकार आचार्य अमृतचंद्र के अभिमत से इस ग्रंथ की 415 गाथाएं और टीकाकार जयसेन के अभिमत से 439 गाथाएं हैं। यह ग्रंथ नौ अधिकारों में विभक्त है। अधिकारों के नाम ये हैं— *(1)* जीवाजीवाधिकार, *(2)* कर्ताकर्माधिकार, *(3)* पुण्य-पाप अधिकार, *(4)* श्रावक अधिकार, *(5)* संवर अधिकार, *(6)* निर्जरा अधिकार, *(7)* बंध अधिकार, *(8)* मोक्ष अधिकार, *(9)* सर्व विशुद्ध ज्ञान अधिकार।
आचार्य कुन्दकुन्द की कृतियों में यह ग्रंथ शीर्ष स्थानीय है। इस ग्रंथ में सर्वप्रथम सिद्धों को नमस्कार किया गया है। वह पद्य इस प्रकार है—
*वंदितु सव्वसिद्धे धुवमचलमणोवमं गइं पत्ते।*
*वोच्छामि समयपाहुड़ मिणमो सुयकेवलीभणियं।।*
निश्चय और व्यवहार की भूमिका पर विशुद्ध आत्म तत्त्व का विस्तृत विवेचन इस ग्रंथ में है। आचार्य अमृतचंद्र की आत्मख्याति नामक टीका और जयसेन की तात्पर्य वृत्ति इस ग्रंथ पर उपलब्ध है।
*प्रवचनसार—* यह उत्तम अध्यात्म ग्रंथ है। इसकी शैली सरस और सुबोध है। इस ग्रंथ पर अमृतचंद्र और जयसेन की संस्कृत टीकाएं हैं। अमृतचंद्र की टीका के अनुसार इस ग्रंथ के तीन प्रकरण, कुल 275 गाथाएं हैं। जयसेन की टीका के अनुसार इस ग्रंथ के तीन प्रकरण, 317 गाथाएं हैं। प्रथम अधिकार में आत्मा और ज्ञान के संबंधों की चर्चा है, दूसरे अधिकार में द्रव्य, गुण, पर्याय आदि ज्ञेय पदार्थों का विस्तृत वर्णन है, तथा सप्तभङ्गी का सम्यक् प्रतिपादन है और तृतीय अधिकार में चरित्र के स्वरूप का विवेचन है। इस ग्रंथ में तीर्थंकर के प्रवचन का सार संग्रह है। अतः इस ग्रंथ का प्रवचनसार नाम सार्थक है।
तीन अधिकारों में परिसमाप्य यह ग्रंथ जैन तत्त्व की गहनता को समझने के लिए विशेष पठनीय है। इस ग्रंथ का द्वितीय प्रकरण सबसे बड़ा है। इसमें 108 गाथाएं हैं। तृतीय अधिकार में दिगंबर परंपरा संबंधी मुनि चर्या का वर्णन मुख्यतः है। सचेलकत्व निषेध, स्त्री मुक्ति निषेध, केवली कवलाहार निषेध आदि विषय इस अधिकार में चर्चित हैं।
*आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित अन्य ग्रंथों* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
📙 *'नींव के पत्थर'* 📙
📝 *श्रंखला -- 18* 📝
*शोभजी कोठारी*
*दरसण किण विध होय*
गतांक से आगे...
स्वामीजी शोभजी की कोठरी के पास पहुंचे तो देखा कि वे आंखें मूंदे ध्यान-मग्न गुनगुनाते हुए कुछ गा रहे हैं—
स्वामीजी रा दरसण किण विध होय?
भाऊं इण पर भावना मैं, पण जोर न चालै कोय।
स्वामीजी रा दरसण किण विध होय?
पूज जी रा दरसण किण विध होय?
स्वामीजी कुछ क्षणों के लिए रुके और उनकी तल्लीनता निहारने लगे। शोभजी भाव-विभोर होकर मानो स्वामीजी के ही चरणों में अपनी विवशता रखते हुए कह रहे थे—
मोटो फंद इण जीव रै रे, कनक कामणी दोय।
उलझ रह्यो निकल सकूं नहीं रे,
दरसण रो पड़ियो बिछोय।
स्वामीजी रा दरसण किण विध होय?
स्वामीजी के क्रांतिकारी व्यक्तित्व को शोभजी ने बड़ी निकटता से देखा और परखा था। उसी की स्मृति को शब्दों का परिधान देते हुए उनके स्वर फूटे—
पाखंड जाडो इण जगत में रे,
भीखण दिया भगोय।
भीनो चीर जवान निचोड़ियो रे,
ज्यूं चरचा में लिया नीचोय।
स्वामीजी रा दरसण किण विध होय?
उनके हृदय में एकमात्र स्वामीजी बसे हुए थे। अन्य किसी की वहां तक पहुंच संभव ही नहीं थी। आस्था के उद्दाम प्रवाह में डूबते उतराते वे अपनी मस्ती में गा रहे थे—
गुण बिन दरसण भेख रा रे,
कर-कर डूबै सोय।
पूज बिन दरसण किणरा करूं मैं,
दूजो आप समो नहीं कोय।
स्वामीजी रा दरसण किण विध होय?
स्वामीजी के सान्निध्य का अभाव उनके मन में बेचैनी भर रहा था। उनकी तड़प उस मछली की तड़प जैसी थी जो जल से दूर छिटक गई हो। उनके मन की वेदना पुकार उठी—
तड़फड़ तड़फै माछलो रे,
कद मिलसी मोये तोय।
तिम दरसण बिन तुम सेवगो रे,
कमल ज्यूं रह्यो कुमलोय।
स्वामीजी रा दरसण किण विध होय?
अंतःकरण की प्यास के प्रकटीकरण में उपमाएं बहुत छोटी पड़ जाती हैं, फिर भी निरुपाय में उन्हीं का सहारा लेकर बोल उठे—
करसै रो मन साख में रे,
चांद चकोरो टोय।
पपैयो ज्यूं मेघ री रे,
बाट शोभो रह्यो जोय।
स्वामीजी रा दरसण किण विध होय?
अगले ही क्षण बढ़ते हुए स्वामीजी ने कहा— "शोभाचंद! कर दर्शन, तुझे दर्शन देने के लिए हम यहीं आ गए हैं।"
*स्वामीजी के वहां पधारने से एक चमत्कार घटित हुआ। वह चमत्कार क्या था...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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News in Hindi
*प्रेक्षाध्यान जिज्ञासा समाधान श्रृंखला*
उद्देश्य - साधकों के मन में उठने वाली जिज्ञासाओं का समाधान ।
*स्वयं प्रेक्षा ध्यान प्रयोग से लाभान्वित हो व अन्यो को भी लाभान्वित करे ।*
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*प्रेक्षा फाउंडेशन*
प्रसारक - तेरापंथ *संघ संवाद*
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻
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👉 अहिंसा यात्रा के बढ़ते कदम
👉 पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ विहार करके "महेशपुर" पधारेंगे
👉 आज का प्रवास - महेशपुर
प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*
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